"*सुधन्वा*" (गीति नाट्य) -- डॉ. एस पॉल ।
(प्रस्तुत गीति-नाट्य में 12 पात्र 12 आयामों का प्रकटीकरण है, यथा:- कालचक्र, अश्वमेध-यज्ञ, अश्व, महाभारत, काल, चम्पकपुरी, राजा हंसध्वज, शंख-लिखित, अवतार, भारतवर्ष, कृष्णार्जुन और सुधन्वा । ध्यातव्य है, 'सुधन्वा' ऐतिहासिक नायक थे । )
अवतार
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सर्व सिद्धांत व नियम का , पालन किया यीशु ,
तू पिता , परमेश्वर के पूत , मैं तेरा शिशु ।
यीशु है प्रभु , पिता ,पूत , नीति - रीति, युद्ध - शान्ति है,
गाँधी औ' मार्क्स - विचार ही, महाबुद्ध - क्रान्ति है ।
मठ - मस्ज़िद या श्री गिरजा में, न रहता मेरा यीशु ,
तू पिता , परमेश्वर के पूत , मैं तेरा शिशु ।
यीशु के लीक पर , या लीक में संत मेंहीं है ,
जगत मिथ्या औ' वर्तमान भी , पर ब्रह्म सही है ।
धन गया , धर्म गया या सबकुछ जाते रहा है ,
आदि का अंत होना , यही तो गुण - धरा है ।
कर्म का मर्म लिए धर्म का संगम अनूठा है ,
सत्यम् वद , पर अविश्वास - कारण झूठा है ।
मुझे तारण भी , दुलारन भी , करते हैं यीशु ,
तू पिता , परमेश्वर के पूत , मैं तेरा शिशु ।
क्रमशः...
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