आज से पढ़ते है ...विश्वफूल की कविताओं की हर सप्ताह एक कड़ी ...आइये पढ़े...
"बरबादी बनाम पलभर"
नीड़ बनायी हूँ / अपनी चोंच से,
टहनियों के छोटे-छोटे टुकड़े कर,
तृण-पात / चुन-चुनकर ।
लगी है, बड़ी मेहनत और काफी वक्त,
इस नीड़ के निर्माण में ।
....और तूफ़ान को सब पता,
जो केवल उजाड़ना ही जानता !
×× ×× ××
बनने में समय लगा मुझे,
बरस-दस बरस
बरबाद होने के लिए / फ़ख़त
पलभर ही काफी है ।
×× ×× ××
"बरबादी बनाम पलभर"
नीड़ बनायी हूँ / अपनी चोंच से,
टहनियों के छोटे-छोटे टुकड़े कर,
तृण-पात / चुन-चुनकर ।
लगी है, बड़ी मेहनत और काफी वक्त,
इस नीड़ के निर्माण में ।
....और तूफ़ान को सब पता,
जो केवल उजाड़ना ही जानता !
×× ×× ××
बनने में समय लगा मुझे,
बरस-दस बरस
बरबाद होने के लिए / फ़ख़त
पलभर ही काफी है ।
×× ×× ××
0 comments:
Post a Comment