"*सुधन्वा*" (गीति नाट्य) -- डॉ. एस पॉल ।
(प्रस्तुत गीति-नाट्य में 12 पात्र 12 आयामों का प्रकटीकरण है, यथा:- कालचक्र, अश्वमेध-यज्ञ, अश्व, महाभारत, काल, चम्पकपुरी, राजा हंसध्वज, शंख-लिखित, अवतार, भारतवर्ष, कृष्णार्जुन और सुधन्वा । ध्यातव्य है, 'सुधन्वा' ऐतिहासिक नायक थे । )
मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में आज से हर महीने पढ़ते है डॉ. एस.पॉल की कविताओं के बयान ,....'सुधन्वा', आइये पढ़े ...
कालचक्र
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सृष्टिपूर्व मैं शब्द था, फिर अंड - पिंड - ब्रह्माण्ड बना,
जनक-जननी, भ्रातृ-बहना, गुरु-शिष्य औ' खंड बना ।
हूँ काल मैं, शव-चक्र समान, सत्य-तत्व, रवि-ज्ञान भला,
प्रकाश-तम, जल-तल, पवन-पल, युद्ध-शांत, विद्या-बला ।
परम-ईश्वर, सरंग-समता, पूत - गुड़- गूंग आज्ञाकारी बना,
देव-दनुज, यक्ष-प्रेत-कीट, मृणाल-खग मनु उपकारी बना।
युग-युग में अनलावतार हो, जम्बूद्वीप में कर्म बना,
मर्म के जाति-खंड पार हो, कि कर्तव्य राष्ट्रधर्म बना ।
हूँ संत-पुरुष, अध्यात्म-विज्ञ, तो पंचपाप को पूर्ण जला,
अकर्म-शर्म, कर्मांध-दर्प, तांडव - नृत्य - कृत्य स्वर्ण गला ।
हर्ष - उत्कर्ष हो सहर्ष मित्र , अपना जीवन - संग बना ,
त्याग - सेवा, संतोष - उपासना का, क्लीव - अंग बना ।
रस - अपभ्रंश में, गीति - नाट्य - कवि, ऊँ - भक्ति बना ,
भक्ति की अभिव्यक्ति से , मुक्ति की शक्ति बना ।
क्रमशः ...
(प्रस्तुत गीति-नाट्य में 12 पात्र 12 आयामों का प्रकटीकरण है, यथा:- कालचक्र, अश्वमेध-यज्ञ, अश्व, महाभारत, काल, चम्पकपुरी, राजा हंसध्वज, शंख-लिखित, अवतार, भारतवर्ष, कृष्णार्जुन और सुधन्वा । ध्यातव्य है, 'सुधन्वा' ऐतिहासिक नायक थे । )
मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में आज से हर महीने पढ़ते है डॉ. एस.पॉल की कविताओं के बयान ,....'सुधन्वा', आइये पढ़े ...
कालचक्र
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सृष्टिपूर्व मैं शब्द था, फिर अंड - पिंड - ब्रह्माण्ड बना,
जनक-जननी, भ्रातृ-बहना, गुरु-शिष्य औ' खंड बना ।
हूँ काल मैं, शव-चक्र समान, सत्य-तत्व, रवि-ज्ञान भला,
प्रकाश-तम, जल-तल, पवन-पल, युद्ध-शांत, विद्या-बला ।
परम-ईश्वर, सरंग-समता, पूत - गुड़- गूंग आज्ञाकारी बना,
देव-दनुज, यक्ष-प्रेत-कीट, मृणाल-खग मनु उपकारी बना।
युग-युग में अनलावतार हो, जम्बूद्वीप में कर्म बना,
मर्म के जाति-खंड पार हो, कि कर्तव्य राष्ट्रधर्म बना ।
हूँ संत-पुरुष, अध्यात्म-विज्ञ, तो पंचपाप को पूर्ण जला,
अकर्म-शर्म, कर्मांध-दर्प, तांडव - नृत्य - कृत्य स्वर्ण गला ।
हर्ष - उत्कर्ष हो सहर्ष मित्र , अपना जीवन - संग बना ,
त्याग - सेवा, संतोष - उपासना का, क्लीव - अंग बना ।
रस - अपभ्रंश में, गीति - नाट्य - कवि, ऊँ - भक्ति बना ,
भक्ति की अभिव्यक्ति से , मुक्ति की शक्ति बना ।
क्रमशः ...
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