"*सुधन्वा*" (गीति नाट्य) -- डॉ. एस पॉल ।
(प्रस्तुत गीति-नाट्य में 12 पात्र 12 आयामों का प्रकटीकरण है, यथा:- कालचक्र, अश्वमेध-यज्ञ, अश्व, महाभारत, काल, चम्पकपुरी, राजा हंसध्वज, शंख-लिखित, अवतार, भारतवर्ष, कृष्णार्जुन और सुधन्वा । ध्यातव्य है, 'सुधन्वा' ऐतिहासिक नायक थे । )
अश्व
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कोई गिनती नहीं,पशु में अश्व की,अश्व असत्य में सत्य है,
सृष्टि काल-ग्रास में, पृथ्वी पर जीवन, सबके सब मर्त्य है ।
रथ में जुते जहाँ अश्व है, कि सारथिहीन मन चंचल है,
राजप्रासाद की बात विदाकर, वन में ग्राम - अंचल है ।
अश्वारोही चमत्कृत, पामर - मन जब वश में हो ,
हस्ती औ' वनकेशरी - शक्ति, कि अश्व जब वश में हो ।
शांति - अश्म में रस्म देकर, अश्वमन जीता जाता है ,
शान्ति-द्वार से स्वर्गद्वार होकर, हरिद्वार खुल जाता है ।
रूप अश्व है, गंधहीन भी, ज्ञानहीन भी हो सकता है ,
चक्रवर्ती बननेवाले अश्व , दूसरे का उपभोक्ता है ।
मत्स्य, कच्छप, शूकर और पशु-ढंग नरसिंहावतार है ,
पशु है निश्चित ही महान, ज्ञान - रुपी दशावतार है ।
विशाल अश्व हूँह ! अश्व - पीठ पर चाबुक पड़े ,
वेदाध्ययन करते - करते , कि ज्ञानी शम्बूक मरे ।
क्रमशः ....
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