**राखी वाले भैया या सैंया---आप हल कीजिये**
रक्षा बंधन अलौकिक पर्व है बहनें भाइयों को बंधन में बाँधती है और भाई "रक्षा" करने का संकल्प लेता है लेकिन आज का युग जहाँ सोशल मीडिया हाथ फैलाये हमारे आने का इंतेज़ार कर रहा है कि आओ ? जहाँ ठगी की मात्रा काफी बढ़ चुका है लोगों का सहोदर बहन या भाई नहीं होने के कारण फेसबुक , ट्विटर पर "e-भाई और e-बहन" बनाने का प्रचलन बढते जा रहा है । कुछ समय तक तो ये रिश्ते सहोदर 'भाई-बहन' की तरह ही होते है पर समय के साथ कुछ व्यक्तियों के कारण ये कलंकित तो होते ही है , साथ ही ठगी का अहसास करातेे हैं , सारे समाचार-पत्रों में ऐसी खबर देखने को मिलते रहते है लेकिन ये सिर्फ 'मॉडर्न era' का बात नहीं है क्योंकि पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं में भी ऐसा देखा गया है कि या तो राज्य को बचाने के लिए या तो अपनी रक्षा के लिए या फिर पति की ज़िन्दगी के लिए औरतें , बहनें "रक्षा-बंधन" पर्व का इस्तेमाल करते हैं । "इस्तेमाल" शब्द इसलिए कहा , क्योंकि पौराणिक कथाओं पर आप यदि द्रष्टव्य होंगे तो पाएंगे , रक्षा-बंधन सिर्फ भाई-बहन के पर्व तक सीमित नहीं है , बल्कि हर उस रिश्ते में यह सम्मिलित है जहाँ रक्षा का भाव हो तथा जहाँ किसी के जान को बचाने का भाव हो जैसे-भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। तब से लोगों में विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है,लेकिन यहाँ तो 'पत्नी' बहन बन गयी ! यदि हम अभी के अनुसार चले तो इनका यही मतलब होगा । ये तो "सोशल भाइयों" पर डिपेंड करता है कि वो घटना को कैसे लेते है ?
रक्षा बंधन अलौकिक पर्व है बहनें भाइयों को बंधन में बाँधती है और भाई "रक्षा" करने का संकल्प लेता है लेकिन आज का युग जहाँ सोशल मीडिया हाथ फैलाये हमारे आने का इंतेज़ार कर रहा है कि आओ ? जहाँ ठगी की मात्रा काफी बढ़ चुका है लोगों का सहोदर बहन या भाई नहीं होने के कारण फेसबुक , ट्विटर पर "e-भाई और e-बहन" बनाने का प्रचलन बढते जा रहा है । कुछ समय तक तो ये रिश्ते सहोदर 'भाई-बहन' की तरह ही होते है पर समय के साथ कुछ व्यक्तियों के कारण ये कलंकित तो होते ही है , साथ ही ठगी का अहसास करातेे हैं , सारे समाचार-पत्रों में ऐसी खबर देखने को मिलते रहते है लेकिन ये सिर्फ 'मॉडर्न era' का बात नहीं है क्योंकि पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं में भी ऐसा देखा गया है कि या तो राज्य को बचाने के लिए या तो अपनी रक्षा के लिए या फिर पति की ज़िन्दगी के लिए औरतें , बहनें "रक्षा-बंधन" पर्व का इस्तेमाल करते हैं । "इस्तेमाल" शब्द इसलिए कहा , क्योंकि पौराणिक कथाओं पर आप यदि द्रष्टव्य होंगे तो पाएंगे , रक्षा-बंधन सिर्फ भाई-बहन के पर्व तक सीमित नहीं है , बल्कि हर उस रिश्ते में यह सम्मिलित है जहाँ रक्षा का भाव हो तथा जहाँ किसी के जान को बचाने का भाव हो जैसे-भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। तब से लोगों में विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है,लेकिन यहाँ तो 'पत्नी' बहन बन गयी ! यदि हम अभी के अनुसार चले तो इनका यही मतलब होगा । ये तो "सोशल भाइयों" पर डिपेंड करता है कि वो घटना को कैसे लेते है ?
एक और रोचक कहानी यह है कि यह कथा स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में रक्षाबन्धन का ऐसा प्रसंग मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है:-- दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दिए। भगवान ने तीन पग में सारे आकाश, पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह उत्सव 'बलेव' नाम से भी प्रसिद्ध है। कहते हैं , राजा बलि जब रसातल में चले गये, तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया।भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी,लेकिन यहाँ भी चापलूसी और सुहाग बचाने के लिए भाई बनाया गया , क्या ऐसा रिश्ता एक कच्चे धागों के कारण रह पायेगा...................!!!!!
जवाब आप पर है ? यानि यहाँ भी फ़ायदा भगवान विष्णु को बचाने के लिए । यदि विष्णु जी अपने आप को भगवन कहते है तो वे खुद को नही बचा पाते ? क्या सारे मर्दों का रक्षा का संकल्प 'औरतों' ने ही ली है ।
यानि यहाँ भी इस पर्व का 'इस्तेमाल' ही हुआ न , बाकी 'e-भाइयों' की मर्ज़ी की वे "बाल की खाल निकालें" ??
या मुंडन ही करवालें ??
अब बढ़ते है -- मेवाड़ की रानी कर्मावती/कर्णावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी लड़ने में असमर्थ थी, अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की। अन्य प्रसंगानुसार-- सिकन्दर की पत्नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पुरू को राखी बाँधकर अपना मुँहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने का वचन लिया। पुरू ने युद्ध के दौरान हाथ में बँधी राखी और अपनी बहन को दिये वचन का सम्मान करते हुए सिकन्दर को जीवन-दान दिया।
यानि जहाँ जीवन की बात आये वहां "रक्षा-बंधन" याद आवे ?
निष्कर्ष:--
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उद्धृत कहानियाँ सच है या गप्प !!!! अगर सच भी मान ली जाय, तो यह सुस्पष्ट है कि 'रक्षा-बंधन' पर्व सहोदर या परोदर भाई-बहनों के बीच मनाये जाने के यथेष्ट प्रमाण नहीं मिलते हैं । यह स्वार्थ पर्व ज्यादा ही ठहरता है कि राजा को बचाना है, तो रानी आगे आयीं और दुश्मन को राखी बाँध उसे अपने पति का साला बनाया और राजा को जान बख्शा मिला । आजकल जिसे राखी बाँधती हैं, लड़कियां--- कालान्तर में वो शख्स उनकी 'सैंया' हो जाते हैं । यह वर-वधु तलाशने का विज्ञापन भर है । क्यों ज़नाब, चौंक गए ????????
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