"राइफ़ल की नाल, भाग्यभरोसे, मोक्ष और बेशर्म तुला"
टटका पढ़ा -- ''मैं तुला हूँ'' । एक 'कविता-संकलन' , जिनके मनसुख कवि हैं-- कुणाल नारायण उनियाल और जिनमें 29 कविताएँ असंख्य-धार लिये हैं, किन्तु कुछ सहज और कुछ अपच । अपच कविताएँ पढ़ने में एक सप्ताह लग गया और सफ़र ईमानदारी का रहा ।
यह किताब जब मेरे पास नहीं था तो मुझे लगा, यह 'कहानी-संग्रह' है,परन्तु प्रथमावलोकन में किताब जब खुली तो उनके सफ़े ने चिल्ला-चिल्ला कर कहा-- नहीं !!!!! 'कविता-संकलन' है यह।
मुझे प्रस्तुत कविता-संग्रह में 'यम से बात' और 'माँ तुझे कैसे छोड़ू' आज के परिदृश्य को अवगत कराती है तथा 'एक मजदूर जो भवन बनाता है' से आज की वास्तविकता की झलक मुँहबाये मिलता है , यथा---
"ये कैसा अन्याय है मुझ पर,
मकान बनाया मैंने-
पर घर किसी और के हिस्से आया ।"
साथ ही 'जानवरों की दौड़' बाहरी सच्चाई की देह-रेखा भर प्रदर्शित करते हैं, परंतु 'हारा नहीं मैं' कविता में गरीबों को 'गिरा' कहकर उनका उपहास उड़ाना तो नहीं, द्रष्टव्य----
"मैं गरीब सही,
मैं गिरा सही,
पर हारा नहीं मैं !"
मैं नास्तिक विचारपाले इंसान हूँ , लेकिन जहाँ तक 'तुला' को मैं जानता हूँ, यह एक राशि है और इस राशि में जन्मे मानव के लिए हमेशा 'राममय' देखा जाता है, जो कि अकेले रहने में हस्त-मैथुनीय मजा पाता है । कवि कुणाल नारायण उनियाल के बारे में संकलित-काव्य की भूमिका में 'कैप्टन कुणाल' लिख संबोधित किया गया है । इस कैप्टन के लव, सेक्स, धोखा को फ्रांस (पेरिस) की सड़कों पर 'नमिता' के बहाने समझा जा सकता है, देखिये जरा---
"आज पेरिस की गलियों में घूमते हुए,
सहज ही पाँव ठिठक गए ।"
इतना ही नहीं, 'मुझे खुद में समा' नामक कविता हिंदी फ़िल्म 'फ़ना' के गानों की याद दिला देते हैं, तो 'परी की दुनिया' में कवि भी आम-आदमी की भाँति किसी परी के लिए कल्पनाजीवी हो जाते हैं ।
कैप्टन कवि की तुला भाग्य और कर्म के बीच द्वंद्वार्थ-बोध लिए है । कभी तो ऐसा लगता है, तुला की गहनता और प्रवीणता चित्रगुप्त के कर्तव्यों में बिंध से गए हैं, इसके बावजूद बकौल 'कविता की पोटली'---
"मीटिंग बहुत जरुरी है कल...................नौकरी वरना नहीं बच पाएगी ।"
कवि बातचीत शुरू करने में सामाजिकता पसंद करते हैं और खुद को लोगों से घिरा हुआ रखने की मिथ पाले हैं तथा तेजी से कैसे दूसरों से संबंध विकसित करे, इस पर ध्यान केंद्रित करते हैं । द्रष्टव्य---
"मुझे ऐसी ऊँचाई दे,
जहां से गिर न पाऊँ,
वो गहराई दे,
जहां से ढूढा न जाऊं,
....खुद से गहरा नाता दे ।"
प्रस्तुत कवितांश भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी की निम्न उद्धृत कवितांश से प्रभावित है, यथा---
"मेरे प्रभु !
मुझे उतनी ऊँचाई कभी मत देना,
कि गैरों के गले न लगा सकूं,
उतनी रूखाई कभी मत देना,
कि अपनों को अपना न सकूं,
क्योंकि ऊँचें पहाड़ों पर पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं जमते ।
वहाँ जमती है सिर्फ बर्फ,
जो कफ़न की तरह सफेद
और मौत की तरह ठण्डी होती है ।"
फिर तो ऐसे काव्यकार विवादों को निपटाने में कुशल होते हैं और इनमें न्याय की गहरी समझ होती है । निष्पक्षता की यह लगन इनकी व्यक्तिगत जरुरत है, तो संघर्ष और टकराव से बचने के लिए चतुर सुजान बन जाते हैं, जैसे कि ऐसे चीजों को अत्यंत शिष्टता के साथ गृहीत किया जा सके ।
ये अपने विचारों का दूसरों के साथ संचार करके आनंद लेते हैं । ये दूसरों को बेहतर तरह से जानने के लिए एक उचित तरीका अपनाते हैं । निष्पक्ष तर्क करने के लिए ये कूटनीतिक और समझौते के तमाम रास्ते अपनाते हैं । अगर ये इन सभी के एक संयुक्त प्रयास के रूप में वांछित प्रदर्शन करने में विफल रहते हैं,तो अपने प्रेरक आकर्षण का पूर्ण पैमाने में प्रयोग करते हैं । ये हमेशा क्रूरता और झगड़े से दूर रहते हैं और हमेशा बातचीत द्वारा विवाद दूर करने का प्रयास करते हैं । ये कभी जबान के कड़वे नहीं होते हैं । इनके साथ शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि इन्हे विरोध का सामना करना पड़ा हो । अगर इनके सामने ऐसी स्थिति आ भी जाए तो ये ठंडे दिमाग से और गहरी सांस लेकर सहयोग की भावना के साथ सभी विकल्पों पर विचार करते हुए कार्य करते हैं । इनका यह गुण उन्हें कैरियर के विविध विकल्पों के लिए अनुकूल बनाता हैं । ......... यह सम्पूर्ण दृष्टांतनुमा वाक्य तुला राशि के विषय में एक पंडित जी से पूछने पर उन्होंने मुझे बताया।
मैंने 'पंडित जी' से एक सवाल किया कि इतना 'गुण' जो आपने मुझे बताया , वह 'तुला' राशि का ही है न !
उन्होंने कहा --- हां श्रीमान् ।
मैंने तपाक से फिर प्रश्न ही पूछा --- जिनका नाम 'बचपन' से ही तुला हो, उनमें भी यह 'गुण' होने चाहिए ।
उनका उत्तर फिर से 'हां' में था ।
मैंने वहां तुलाराम नाम के बिलकुल खांटी और निज अंकल का जिक्र किया, जिसे पंडित जी भी ठीक तरह से जानते हैं । मैंने उनसे कहा ---पंडित जी, तुला चाचा का 'गुण' आपके बताये 'तुला' गुण से काफी भिन्न है , फिर उन्होंने जवाब तो नहीं दिया और बगलें झाँकने लगे ।
तुलाराम , जो पेशे से 'शिक्षक' थे पर इन 'तुला' की तरह उनमें कोई 'गुण' नहीं है । वह अकेला रहने के लिए 'सहोदर भाई' से भी नाता तोड़ लिए और धनकुंठित हो समाज के लोगों को अपने में मिला लिये ।
.....और फिर कविता 'हर इंसान कुछ खोजता है' में कवि के बोल हैं ---
"कभी हाथों की रेखाओं में कुछ ढूँढता ,
कभी पर्चे जीवन के पढ़ता,
आधी रात के गहन प्रहार में ,
उम्मीदों के दीए जलाता,
खुद के पाने की चाहत में,
न जाने कितनी दूर चले जाता । "
कवि मुक्तिबोध की भाँति कवि कुणाल ने भी सिर्फ अंतस को टटोला है । 'मुक्तिबोध' को बाजार ने छला था और यहाँ 'कुणाल' भी छला गया है पर फख़्त तुला से । बेशर्म बाट, बेशर्म तुला, बेशर्म ...................। कुल जमा कवि के नाम, उनके श्रम-साधना को सलाम ।
टटका पढ़ा -- ''मैं तुला हूँ'' । एक 'कविता-संकलन' , जिनके मनसुख कवि हैं-- कुणाल नारायण उनियाल और जिनमें 29 कविताएँ असंख्य-धार लिये हैं, किन्तु कुछ सहज और कुछ अपच । अपच कविताएँ पढ़ने में एक सप्ताह लग गया और सफ़र ईमानदारी का रहा ।
यह किताब जब मेरे पास नहीं था तो मुझे लगा, यह 'कहानी-संग्रह' है,परन्तु प्रथमावलोकन में किताब जब खुली तो उनके सफ़े ने चिल्ला-चिल्ला कर कहा-- नहीं !!!!! 'कविता-संकलन' है यह।
मुझे प्रस्तुत कविता-संग्रह में 'यम से बात' और 'माँ तुझे कैसे छोड़ू' आज के परिदृश्य को अवगत कराती है तथा 'एक मजदूर जो भवन बनाता है' से आज की वास्तविकता की झलक मुँहबाये मिलता है , यथा---
"ये कैसा अन्याय है मुझ पर,
मकान बनाया मैंने-
पर घर किसी और के हिस्से आया ।"
साथ ही 'जानवरों की दौड़' बाहरी सच्चाई की देह-रेखा भर प्रदर्शित करते हैं, परंतु 'हारा नहीं मैं' कविता में गरीबों को 'गिरा' कहकर उनका उपहास उड़ाना तो नहीं, द्रष्टव्य----
"मैं गरीब सही,
मैं गिरा सही,
पर हारा नहीं मैं !"
मैं नास्तिक विचारपाले इंसान हूँ , लेकिन जहाँ तक 'तुला' को मैं जानता हूँ, यह एक राशि है और इस राशि में जन्मे मानव के लिए हमेशा 'राममय' देखा जाता है, जो कि अकेले रहने में हस्त-मैथुनीय मजा पाता है । कवि कुणाल नारायण उनियाल के बारे में संकलित-काव्य की भूमिका में 'कैप्टन कुणाल' लिख संबोधित किया गया है । इस कैप्टन के लव, सेक्स, धोखा को फ्रांस (पेरिस) की सड़कों पर 'नमिता' के बहाने समझा जा सकता है, देखिये जरा---
"आज पेरिस की गलियों में घूमते हुए,
सहज ही पाँव ठिठक गए ।"
इतना ही नहीं, 'मुझे खुद में समा' नामक कविता हिंदी फ़िल्म 'फ़ना' के गानों की याद दिला देते हैं, तो 'परी की दुनिया' में कवि भी आम-आदमी की भाँति किसी परी के लिए कल्पनाजीवी हो जाते हैं ।
कैप्टन कवि की तुला भाग्य और कर्म के बीच द्वंद्वार्थ-बोध लिए है । कभी तो ऐसा लगता है, तुला की गहनता और प्रवीणता चित्रगुप्त के कर्तव्यों में बिंध से गए हैं, इसके बावजूद बकौल 'कविता की पोटली'---
"मीटिंग बहुत जरुरी है कल...................नौकरी वरना नहीं बच पाएगी ।"
कवि बातचीत शुरू करने में सामाजिकता पसंद करते हैं और खुद को लोगों से घिरा हुआ रखने की मिथ पाले हैं तथा तेजी से कैसे दूसरों से संबंध विकसित करे, इस पर ध्यान केंद्रित करते हैं । द्रष्टव्य---
"मुझे ऐसी ऊँचाई दे,
जहां से गिर न पाऊँ,
वो गहराई दे,
जहां से ढूढा न जाऊं,
....खुद से गहरा नाता दे ।"
प्रस्तुत कवितांश भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी की निम्न उद्धृत कवितांश से प्रभावित है, यथा---
"मेरे प्रभु !
मुझे उतनी ऊँचाई कभी मत देना,
कि गैरों के गले न लगा सकूं,
उतनी रूखाई कभी मत देना,
कि अपनों को अपना न सकूं,
क्योंकि ऊँचें पहाड़ों पर पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं जमते ।
वहाँ जमती है सिर्फ बर्फ,
जो कफ़न की तरह सफेद
और मौत की तरह ठण्डी होती है ।"
फिर तो ऐसे काव्यकार विवादों को निपटाने में कुशल होते हैं और इनमें न्याय की गहरी समझ होती है । निष्पक्षता की यह लगन इनकी व्यक्तिगत जरुरत है, तो संघर्ष और टकराव से बचने के लिए चतुर सुजान बन जाते हैं, जैसे कि ऐसे चीजों को अत्यंत शिष्टता के साथ गृहीत किया जा सके ।
ये अपने विचारों का दूसरों के साथ संचार करके आनंद लेते हैं । ये दूसरों को बेहतर तरह से जानने के लिए एक उचित तरीका अपनाते हैं । निष्पक्ष तर्क करने के लिए ये कूटनीतिक और समझौते के तमाम रास्ते अपनाते हैं । अगर ये इन सभी के एक संयुक्त प्रयास के रूप में वांछित प्रदर्शन करने में विफल रहते हैं,तो अपने प्रेरक आकर्षण का पूर्ण पैमाने में प्रयोग करते हैं । ये हमेशा क्रूरता और झगड़े से दूर रहते हैं और हमेशा बातचीत द्वारा विवाद दूर करने का प्रयास करते हैं । ये कभी जबान के कड़वे नहीं होते हैं । इनके साथ शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि इन्हे विरोध का सामना करना पड़ा हो । अगर इनके सामने ऐसी स्थिति आ भी जाए तो ये ठंडे दिमाग से और गहरी सांस लेकर सहयोग की भावना के साथ सभी विकल्पों पर विचार करते हुए कार्य करते हैं । इनका यह गुण उन्हें कैरियर के विविध विकल्पों के लिए अनुकूल बनाता हैं । ......... यह सम्पूर्ण दृष्टांतनुमा वाक्य तुला राशि के विषय में एक पंडित जी से पूछने पर उन्होंने मुझे बताया।
मैंने 'पंडित जी' से एक सवाल किया कि इतना 'गुण' जो आपने मुझे बताया , वह 'तुला' राशि का ही है न !
उन्होंने कहा --- हां श्रीमान् ।
मैंने तपाक से फिर प्रश्न ही पूछा --- जिनका नाम 'बचपन' से ही तुला हो, उनमें भी यह 'गुण' होने चाहिए ।
उनका उत्तर फिर से 'हां' में था ।
मैंने वहां तुलाराम नाम के बिलकुल खांटी और निज अंकल का जिक्र किया, जिसे पंडित जी भी ठीक तरह से जानते हैं । मैंने उनसे कहा ---पंडित जी, तुला चाचा का 'गुण' आपके बताये 'तुला' गुण से काफी भिन्न है , फिर उन्होंने जवाब तो नहीं दिया और बगलें झाँकने लगे ।
तुलाराम , जो पेशे से 'शिक्षक' थे पर इन 'तुला' की तरह उनमें कोई 'गुण' नहीं है । वह अकेला रहने के लिए 'सहोदर भाई' से भी नाता तोड़ लिए और धनकुंठित हो समाज के लोगों को अपने में मिला लिये ।
.....और फिर कविता 'हर इंसान कुछ खोजता है' में कवि के बोल हैं ---
"कभी हाथों की रेखाओं में कुछ ढूँढता ,
कभी पर्चे जीवन के पढ़ता,
आधी रात के गहन प्रहार में ,
उम्मीदों के दीए जलाता,
खुद के पाने की चाहत में,
न जाने कितनी दूर चले जाता । "
कवि मुक्तिबोध की भाँति कवि कुणाल ने भी सिर्फ अंतस को टटोला है । 'मुक्तिबोध' को बाजार ने छला था और यहाँ 'कुणाल' भी छला गया है पर फख़्त तुला से । बेशर्म बाट, बेशर्म तुला, बेशर्म ...................। कुल जमा कवि के नाम, उनके श्रम-साधना को सलाम ।
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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