मेरे प्यारे फौजी भाइयों ,
नमस्कार !!
नमस्कार !!
हर रात हम चैन की नींद सोते हैं आराम से खर्राटे के साथ और आप वहां सरहदों पर 'ठंडी के दिनों' में ठंडी हवाओं के साथ 'ठण्ड' को अपनी 'शौर्यता' से डराते हुए कहते हैं ---
''अरे पगले ! भाग, भाग अभी !! मुझे अभी अपनी 'वतनपरस्ता' निभाने दे, तू बाद में आना, क्योंकि अभी मेरे सवा सौ करोड़ माँ, चाचा-चाची, बहनें और भाईजान 'चैन की नींद सोये हुए हैं और उनकी 'रक्षा' करना मेरा कर्तव्य हैै।" यही नहीं, आप 'सूर्य भगवान' की 'तापसी' को बर्दाश्त करते हुए 'दुश्मनों' से हमारी रक्षा करते हैं।
हमलोग 'ईदगाह' के मेले में घूम रहे होते हैं और आपलोग 'पैगम्बर' की तरह 'हमारी' रक्षा के लिए डटे रहते हैं । हम मंदिर की घंटियों के साथ गुरद्वारे में 'गुरु ग्रन्थ साहिब' में ध्यान लगाए रहते हैं और आप अपने माँ-बाप, भाई-बहन, पत्नी और बच्चों से दूर, लेकिन भारत माँ के नजदीक रहकर सपूत का फ़र्ज़ निभाते हैं । हमलोग 'शिवाजी' को याद करते हैं, बन्दा बहादुर को याद करते हैं और आपलोग कभी 'शिवाजी', तो कभी 'बन्दा बहादुर' बनकर 'दुश्मनों' के "12" बजाते हैं । हमलोग बुद्ध और महावीर के जन्मोत्सव पर सिर्फ पर्व मनाते हैं और आपलोग उनकी शिक्षा को आत्मसात् करते हुए 'निष्कपट' मन से 'देशसेवा' में लगे रहते हैं ।
हमारे प्यारे सैनिक भाइयों ! दीवाली आ रही है , एतदर्थ शुभकामनायें -- मेरे तरफ से, मेरे पूरे परिवार की तरफ से, मेरे गाँव-जँवार की तरफ से, ज़िला-प्रांत-राष्ट्र की तरफ से आपको, आपके पूरे परिवार को श्रद्धान्वत नतमस्तक ।
देश में हर कोई दीये जला रहे हैं, हर माँ का 'दीया यानि प्रकाश' उनके बच्चे होते हैं, लेकिन 'दीपावली' में दीये जलाकर हम अपनी खुशियाँ व्यक्त करते हैं । यह दीये क्यों न हम सरहदों पर रक्षा करनेवालों के लिए जलाएँ ? अपने वीर शहीदों के लिए जलाएँ, क्योंकि वक़्त-बेवक्त उन्हें हम ही याद आते हैं । यह उजियारा सतत् जलते रहने चाहिए, ताकि कोई 'बिच्छु, साँप' (आतंकवादी और घुसपैठिये) अंधकार का फ़ायदा उठाकर हमें न काट ले ! परंतु सबसे बड़े दीप तो आप सब हैं भाई, क्योंकि आपके जलने से ही देश सुरक्षित रह सकता है । इस दिन पूरा देश खुशियाँ तो मनाते ही हैं । अयोध्यावासी की ख़ुशी दूज़ी है कि उनके बेटे और भाई 'राम' उसी दिन 'घर' को आये थे, इसी भाँति हर माँ-बाप भी आशान्वित रहते हैं कि उनका भी "राम" आज घर आयेगा, लेकिन 'जननी माँ' से बड़ी 'देश माँ' के रक्षार्थ इस दिन वे घर को नहीं आ पाते हैं, क्योंकि देश के बाहर-अंदर से आने वाले 'रावण-हिरण्यक-कंश' को आप मार रहे होते हैं ।
हम 'दीपावली' में माँ लक्ष्मी की भी पूजा करते हैं कि आप यदि घर नहीं आ पाते हैं, तो घर की "लक्ष्मी" के रूप में हमारी बहन, बेटियां और बहुऐं पूजा-अर्चना के लिए पहले से तिल-अक्षत-रोली सहित रंगोली बनाती हैं और घर पर माँ तब एक स्वर-निनाद से कह उठती हैं-- 'भारत माता की जय' ।
क्या सियाचिन का बर्फ दोनों देशों के दिल को नहीं पिघला पायेगी ? या यूं ही प्रकृति अपने बच्चों को हनुमंथप्पा आदि के रूप में ...अपने पास बुलाती रहेंगी !
एक अन्य देश की बात करूँ -- यह सब कोई जानते हैं -- दीवार से तात्पर्य किसी 'दो' प्रगाढ़ प्रेम को अलग-थलग करना । अपने यहाँ दीवार बनाने वाले चीन (क्यों वहाँ है न, चीन की दीवार) से दोस्ती धार-साज़ नहीं है । चीन को अपनी दीवार तोड़नी चाहिए, विस्तार के चक्कर में दूसरे की जोरू और ज़मीन पर नज़रें गड़ा कर नहीं रखनी चाहिए । पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडीस की बात सही थी .... वो हमारे मित्र नहीं हो सकते ! हमें 'बकौलचंद-मूलचंद' में फ़र्क महसूस करना होगा !
चलिए ! हम कहाँ आ फँसे ? ऐरे-ग़ैरे देश को यहां ला बैठे, किन्तु उनके बिना बात अधूरी ही रह जाती ! ...... हमारे प्यारे फौजी भाइयों सहित उनके पारिवारिक सदस्यों को और सभी देशवासियों तथा प्रवासी भारतीयों को सरहद के रक्षादीपों को प्रज्जवलित कराने प्रसंगश: दीप जलाने के लिए अशेष शुभ मंगलकामनायें ।
आपका --
'अनुज' ।
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