"राष्ट्रीय गणित पखवाड़ा' में 'गणित' के सूत्र 'संगीत' में तलाशती इन दोनों विधा की जादूगरनी : डॉ0 सुमीता"
दोस्तों ! Messenger of Art ने बीते माह वादा किया था कि उनकी रिसर्च टीम द्वारा 14 गझिन सवालों को लेकर संसार भर के दृश्य-पाठकों के समक्ष किसी भी क्षेत्र या विधा के विद्वान अथवा विदूषी से माह में कम से कम एक ऐसे अध्येता से 14 उत्तर प्राप्त कर रू-ब-रू अवश्य करेंगे । इस सम्बन्ध में अपीलार्थ कई FB मित्रों को टैग भी किया, कुछ जगह टैग करने को लेकर निषेधात्मकता और उपहास के केंद्रबिंदु में रहा, परंतु कई वरिष्ठ मित्रों से बहुत अच्छा रिस्पांस मिला, तभी तो Messenger of Art ने तमाम ज़िल्लत झेलकर भी यहाँ 'इनबॉक्स इंटरव्यू' लिए पुनः हाज़िर हो सका है । अंग्रेजी लेखक श्रीमान् चेतन भगत सहित साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्तकर्त्ता आदि कई साहित्यकारों से भी संपर्क साधे गए, किन्तु इन 14 सवालों को ही प्रश्नगत किया गया ? खैर, इस 22 दिसंबर को हमने महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् के जन्म-जयन्ती पर 'राष्ट्रीय गणित दिवस' मनाया और उसी दिन इस आभासी दुनिया में Messenger of Art की मुलाक़ात संगीत और गणित के मेल से सं (संगीत) और ग (गणित) से 'संग' तथा संगीत के 'गीत' और गणित के 'नीत' से 'गीत-नीत संग' की अजस्र-धारा की जादूगरनी डॉ0 सुमीता से हुई ।
मूलरूप से बक्सर, बिहार की रहनेवाली श्रीमती सुमीता जी गणित में Ph.D. और जनसंचार में स्नातकोत्तर आदि सहित कई उपलब्धियों से नवाज़ी गई हैं, फ़िल्मी दुनिया और उनसे सम्बंधित पत्र-पत्रिकाओं में भी हाथ आजमाईश की हैं । कई अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में शोध-पर्चे पढ़ चुकी हैं । 'स्टारडस्ट', 'हेल्थ एंड न्यूट्रिशन' पत्रिकाओं में एसोसिएट एडिटर और सम्प्रति स्वतंत्र लेखन समेत 'समाधान' पत्रिका की सम्पादन कर रही हैं ।
वर्ष 2016 के अंतिम तारीख भी एक राजनीतिज्ञ बाप-बेटे में दूरी बनाकर ही बीतने को है, किन्तु इन राजनीतिज्ञ भाइयों में मेल देखने को भी मिला । चलिए, 'बीती ताहि बिसारिये, आगे की सुधि लेय'....... वर्ष 2017 का आगाज़ भी उसी अंदाज़ में होने को अतिशयातुर है । नववर्ष-2017 की हृदयश: सुकामनाएँ । अब पढ़िए गणित की जादूगरनी डॉ0 सुमीता से Messenger of Art की ली गई 'इनबॉक्स इंटरव्यू':-
प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ.(1): मेरे कार्यक्षेत्र शिक्षा, साहित्य और पत्रकारिता से जुड़े हैं। अकादमिक तौर पर मैंने गणित में पीएचडी और पत्रकारिता व जनसम्पर्क में एमए किया है।
मैं विश्वास करती हूँ कि इस सृष्टि का रचयिता अवश्य ही कोई परिशुद्ध गणितज्ञ होगा। प्रकृति और गणित के अन्तर्सम्बन्धों को समझना और विश्लेषण करने की कोशिश मेरे आकर्षण का विषय है। अबतक मैंने हिन्दुस्तानी संगीत, वनस्पतियों, खासकर फूलों के विकासक्रम, और ॐ के गणितीय विश्लेषण पर अपने सामर्थ्यानुसार कार्य जारी रखा है। साथ ही स्कूलों में गणित का रचनात्मक और दिलचस्प अध्यापन भी मेरी चिंताओं और कोशिशों में शामिल है।
कवि हूँ। शब्दों की शक्ति और सामर्थ्य जानती हूँ। इसीलिए अपने कहे शब्दों के प्रति जागरूक और जिम्मेदार हूँ। पत्रकारिता से संबंधित कार्यों में सम्प्रति 'समाधान' नामक दो पृष्ठों की दीवार पत्रिका (वॉल मैगजीन) सम्पादित कर रही हूँ। यह ग्रास रूट लेवल यानी ग्रामीण तबके के निचले स्तर तक पहुँच कर आमजन को जागरूक करने का प्रयास है।
ये सभी छोटे कदम हैं। आगे चलकर हम साहित्य, संगीत, गणित और सिनेमा से संबंधित एक रिसर्च सेंटर स्थापित करने के सपने को साकार करने की कोशिश करेंगे।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ.(2): हम बिहार राज्य के निवासी हैं। मेरी परवरिश बोकारो स्टील सिटी में हुई है जो अब झारखंड राज्य का हिस्सा है। मेरे पिताजी श्री राम नारायण उपाध्याय बोकारो स्टील प्लांट में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे। अब रिटायर हो चुके हैं। उनको साहित्यिक-सामाजिक-रंगकर्म जैसी गतिविधियों में सक्रिय देखते और प्रेरित होते हुए हम बड़े हुए। वे हिन्दी और भोजपुरी दोनों भाषाओँ के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। उनका लिखा भोजपुरी का पहला लघुकथा संग्रह 'जमीन जोहत गोड़' राँची विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम में शामिल है। मेरी माँ, श्रीमती कला अमनौरिया, रंगमंच की सम्मानित अभिनेत्री हैं।
मेरी बारहवीं तक की शिक्षा बोकारो में हुई जिसके बाद बीएचयू से बीएससी और एमएससी किया। बीएचयू में मैं 'समाधान' नामक प्रखर विद्यार्थियों की एक साहित्यिक-सांस्कृतिक समूह से जुड़ी। इस समूह के संस्थापक डॉ. अनुपम ओझा से विवाह के बाद यह तय कर कि अपने क्षेत्र में सांस्कृतिक आंदोलन की जमीन पुख्ता करने लौट आएँगे, हम मुम्बई चले गए। सिनेमा विषय के जाने-माने चिंतक और विद्वान के रूप में प्रतिष्ठित, कवि लेखक और फिल्म डायरेक्टर डॉ. अनुपम की दो पुस्तकें प्रकाशित हैं जिनमें राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित 'भारतीय सिने-सिद्धांत' आज कई विश्वविद्यालयों और पत्रकारिता संस्थानों में पढ़ाई जाती है। चौदह साल मुम्बई में बिताकर 2014 में हम अपने क्षेत्र में लौट आए हैं।
मध्यमवर्गीय गम्भीर शैक्षणिक और साहित्यिक परिवेश ने ही मेरा मानस और व्यक्तित्व गढ़ा है।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ.(3): मेरे सभी कार्य आमजनों को वैचारिक व व्यवहारिक स्तर पर परिष्कृत करने से ही संबंधित हैं।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ.(4): जड़ता और जहालत के ठहरे तालाब में परिवर्तन का एक भी कंकड़ उत्ताल विक्षोभ उत्पन्न करता ही है। बक्सर जिले में स्थित मेरी ससुराल में आमजन को जब 'समाधान' के माध्यम से हमने रोज-ब-रोज किसी न किसी वजह से तेज ध्वनि में लाउड स्पीकर न बजाने के लिए प्रेरित किया तो इसका पुरजोर विरोध किया गया।
हमारी जमीन-जायदाद का अबतक मनमाना उपभोग करने वाले मेरे पति के भाई-भतीजों की लिप्सा की जानलेवा आक्रामकता का पिछले एक साल में कई स्तरों पर मुकाबला करने की जरूरत सामने आती रही है। यहाँ तक कि मेरे पति पर हमले किए गए। अपने पैतृक घर में लगाया गया हमारा कम्प्यूटर, लैपटॉप और अन्य विद्युत संचालित उपकरणों को भी खराब कर दिया गया है।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ.(5): अबतक के हमारे कार्य व्यक्तिगत आर्थिक निवेश से ही संचालित होते रहे हैं। कार्य का स्वरूप बृहद होने की स्थिति में आर्थिक सहयोग की आवश्यकता जरूर पड़ेगी।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ.(6): यही क्षेत्र चुनने का कारण संभवतः हमारे दिमागी चिप की कोई खास डिजाइन हो। ठीक-ठीक बताना मुश्किल है लेकिन यह कुछ ऐसा ही है जैसे हम कोई अच्छी कहानी, कविता या चुटकुला पढ़कर अपने आसपास के लोगों या मित्रों के साथ साझा करना चाहते हैं, जैसे अपनी ख़ुशी सबके साथ बाँटना चाहते हैं वैसे ही अपने परिवेश की खामियों को दूर करने की या इसके संग्रणीय तत्वों को संग्रहित, संयोजित करने की चेष्टा को भी प्रेरित होते हैं।
परिवारजनों के संबल के बारे में पिछले प्रश्नों के उत्तर में काफी बातें आ चुकी हैं। माता-पिता के अतिरिक्त मेरे दोनों भाईयों राजन उपाध्याय (टेक्सटाइल इंजीनियर व मैन्युफैक्चरर, मुम्बई), डॉ. नीरज उपाध्याय (असिस्टेंट प्रोफेसर, रसायन विज्ञान, सागर यूनिवर्सिटी) और बहन का वैचारिक सहयोग व संबल मिलता रहता है। साथ ही ग्यारह वर्षीया मेरी बेटी का उत्साहपूर्ण सहयोग किसी नेमत से कम नहीं है।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ.(7): मेरा छोटा-सा परिवार और कुछ मित्रगण मेरे कार्यों में सहयोगी हैं।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ.(8): जब हम 'सांस्कृतिक क्रांति' जैसी पदावली का उपयोग कर रहे हैं, तो स्पष्ट है कि हम परम्परागत मूल्यों में से सकारात्मक तत्वों के संकलन-संवर्धन और नकारात्मक तत्वों के यथासंभव उन्मूलन की कोशिशों के लिए प्रयत्नशील होने की बात कर रहे हैं। लम्बे समय से आर्थिक और वैचारिक अभावग्रस्तता ने पूर्वांचल को कई तरह की व्याधियों से ग्रस्त कर दिया है। गैरबराबरी, असहिष्णुता, जातीयता, लिंगभेद, निम्न व्यवहारिक और वैचारिक रहन-सहन व जीवन स्तर आदि आधारभूत समस्याएं हैं इस क्षेत्र की।
जिस तरह राजा राम मोहन राय, दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, महात्मा ज्योति बा फूले जैसे विचारकों और जन-नायकों के प्रयत्नों से बंगाल और महाराष्ट्र सांस्कृतिक क्रांति के दौर से गुजर कर विकसित हुए वैसी ही जरूरत उत्तर भारत की हिन्दी पट्टी को आज भी है।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ.(9): मनुष्य का कोई भी समाज जैसे-जैसे आर्थिक असुरक्षा और अभावग्रस्तता से छूटता जाता है, वैसे-वैसे उसके उदार, परिष्कृत और सौजन्यपूर्ण होने की संभावना बढ़ती जाती है। साथ ही वैचारिक मजबूती और नैतिक उत्कर्ष की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है किसी समाज के भ्रष्टाचारमुक्त होने के लिए। अपने लोगों को वैचारिक स्तर पर परिष्कृत कर सकने की जिम्मेदारी का वहन ठीक-ठीक कर सकूँ, इसकी कोशिश हमेशा रहती है मेरी।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ.(10): आर्थिक मुरब्बा तो नहीं लेकिन मित्रों का वैचारिक और रचनात्मक सहयोग अवश्य मिलता है।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ.(11): विसंगति न तो हमारे कार्यों में है, न ही क्षेत्र में। हम अपने ही दयाद बांधवों की लिप्सा और जहालत से उत्पन्न क्रूरता के धोखे का शिकार हुए हैं। सनद रहे कि इसकी एक वजह हमारी इकलौती संतान का बेटी होना है। बेटियों को आज भी पैतृक संपत्ति का वाजिब अधिकारी मानने में बड़ी दिक्कत महसूस होती है हमारे समाज को।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ.(12): 'समाधान' के अंकों के प्रकाशन के अतिरिक्त कोई किताब या पम्फलेट इस संबंध में प्रकाशित नहीं हैं।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ.(13): कार्य अभी शुरुआती दौर में है। आमूल परिवर्तनकारी यह बृहद कार्य आगे बढ़ता हुआ अपने उद्देश्यों तक पहुँच सके यही सबसे बड़ा पुरस्कार और सम्मान होगा।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ.(14): वाराणसी और जिला बक्सर में डुमराँव के नजदीक स्थित बड़का सिंहनपुरा नामक गाँव, जो लहुरी (छोटी) काशी के नाम से भी ख्यात है, फिलहाल मेरी कार्यस्थली है।
सन्देश बस इतना देना चाहती हूँ कि मानव प्रवृत्तियों की नकारात्मकता पर आसानी से विश्वास कर लेने के बदले हम खुद में सकारात्मकता, सृजनात्मकता, सहिष्णुता और भाईचारे पर विश्वास करने की आदत शुमार करें। हमारे सकारात्मक विचारों का अच्छा प्रभाव पहले स्वयम् पर और फिर हमारे परिवेश पर पड़ना तय है।
साल तो हर वक़्त निकल जाते हैं, हम फिर मिलेंगे 'इनबॉक्स' के गलियारे में घूमते-घूमते और 'इंटरव्यू' के साथ 'अगले-साल' और अगली माह .....तो फटाफट अग्रिम वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें-- हमारे और प्यारे दृश्य-पाठकों की तरफ से 'गणितज्ञ' और उनके परिवार को, साथ ही पूरे देश को भी 'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' की ओर से 'नूतन वर्ष की शुभकामनायें' !
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