"वो क्यों थी अम्मा ?"
उनकी अंतिम कार्यकाल की प्रथम दो वर्ष ही जया को 'अम्मा' बनायी, अन्यथा वो लोलिता (ललिता) ही रही थी ! विवादों से उनकी चोली-दामन का सम्बन्ध रही । हज़ार जोड़ी जूतियाँ, दस हजार साड़ियों के संग्रह से लेकर सत्ता का दुरूपयोग ऐसी-वैसी नहीं, मात्र 13 महीने में केंद्र की वाजपेयी सरकार को औंधे मुँह गिरा दी...... ऐसे डिक्टेटिव-सफ़र की खीझ जब 'ग्लैमरस' को डोला गयी और जेल-यात्रा का कारण बनी, तब वह 'कुँवारी अम्मा' बन बैठी और फिर तमिल प्रजा उनसे आरूढ़ प्रेम कर बैठे..... अपने समर्थकों के बीच वे देवी हो गयी । उनकी देवी की भाँति पूजा होने लगी । उन्हें सत्ता में देखने के लिए उनके कई समर्थकों ने जीभ काटकर मंदिरों में चढ़ाकर खुद उनकी लिए गूँगे हो गए । इतना ही नहीं, वर्ष 2014 में जब वे जेल गयी, तो उनके कई समर्थकों ने आत्महत्या कर लिए थे, अब जब वह साथ छोड़ गयी तो काफी लोग 'दिल के दर्द' को आत्मसात कर 'हार्ट-अटैक' के शिकार हो गए ।
अन्नादुरई और एम.जी.आर. के जाने के बाद ऐसे ही 'शोकाकुल' थी-- तमिल जनता । आज जब प्यारी अम्मा भी नहीं रही, तब उनके बारे में और भी कुछ जानने को जिज्ञासा उभरी । उनकी संघर्ष हमें यह बताती है कि कैसे बचपन में पिता के देहांत के बाद मैट्रिक की सेकंड टॉपर बनी, वे तो वकील बनना चाहती थी, परंतु होनी को तो और बदी थी, उनकी मासूम सुन्दर चेहरा और बोलाक- अदा से वे 'रील लाइफ' में आई, कई भाषा के सैकड़ों फिल्मों में नायिका रही । एम.जी. रामचंद्रन न केवल उनकी फ़िल्मी नायक रहे, अपितु एम. जी.आर. के राजनीति में आते ही जया का सफर भी इस ओर मुड़ गयी । एम.जी.आर. के तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बनने से लेकर 80 के दशक में जया 'राज्यसभा' सांसद बन माननीय हो गयी । फिर एम.जी.आर. की प्रेमिका का ठप्पा जब जया को लगी, तब एम.जी.आर. की पत्नी जानकी रामचंद्रन को वह भायी नहीं !
जिस हिम्मत से जया ने पग बढ़ाये, वह सचमुच काबिल-ए-तारीफ है । जया से 'अम्मा' तक का सफर एकदम रील-लाइफ की कहानी-सी है । लेकिन कब पर्दे से हटकर वह 'रियल लाइफ' में आ गयी, उन्हें भी मालूम नहीं हुई होगी । उनकी 'रील-लाइफ' की यात्रा भी घमासान रही कि उनकी पहली फ़िल्म को 'एडल्ट सर्टिफिकेट' मिला था और इस फ़िल्म की नायिका होने के बावजूद 'टीनएजर' होने के चलते वे खुद फ़िल्म देख नहीं पायी थी ।
वह वाकई मिसाल है, क्योंकि तमिलनाडु की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री से लेकर दक्षिण और उत्तर भारतीय भाषाओं की अनोखी जानकार के साथ वे भरतनाट्यम, मोहिनीअट्टम, मणिपुरी और कत्थक जैसी नृत्यों में उन्हें महारत हासिल थी । वे ऐसी CM थी, जिन्होंने मात्र वेतन के तौर पर एक रुपये लिए , परंतु दत्तक पुत्र की शादी में कई करोड़ फूँक दी ।
1991 में जब वे पहली बार CM बनीं और उसके अगले साल 1992 में ही तमिलनाडु के शिक्षा मंत्री ने घोषणा कि राज्य के जिलों में आदर्श विद्यालय खोले जायेंगे, जिनके नाम 'जयललिता विद्यालय' होंगे । इसी तरह कृषि मंत्री ने 'जया-जया-92' धान की नई किस्म का नाम दिया, तो आवास मंत्री ने 'जया नगर' बसा दिया । उनकी 'क्रेडल स्कीम', जो कि सभी का ध्यान अपनी ओर जरूर आकृष्ट करते हैं । स्कीम का उद्देश्य यह था कि "यदि बेटी आपको नहीं चाहिए, तो हमें दे दीजिये, हम पालेंगे ।" यानि अभी का 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' उन्हीं की देन है, तो ट्रांसजेंडर लोगों के लिए 'पेंशन योजना', जहाँ 'समानता' का भाव पैदा करते हैं, वही 'अम्मा' नाम से स्टार्ट 'स्कीम' उन्हें 'देवी' बना देती है !
1984 में उनके गुरु एम. जी.आर. अपोलो अस्पताल में भर्ती हुए थे, तब परिवार के सदस्यों ने जयललिता को उनसे मिलने नहीं दिए । ठीक वैसा ही अब 32 साल बाद जयललिता के भाई की बेटी जब उनसे मिलने अपोलो अस्पताल पहुंची,तो उन्हें भी मिलने नहीं दिया गया । एम.जी.आर. ने दुनिया रुखसत के वक़्त उनके कोई संतान नहीं थे, पर कुँवारी रही 'अम्मा' लाखों वारिस को छोड़ गयी, 'पनीरसेल्वम' भी उनमें से एक है, किन्तु देखना यह है कि उनके CM बनने से तमिल-राजनीति में अन्ना(दुरई) से लेकर अम्मा(जया) तक के सफ़र को वे किसप्रकार सफलीभूत कर पाते हैं, हालाँकि उन्हें मुख्यमंत्री का अनुभव तो है ही, परंतु 'जननायक' का अनुभव उन्हें नहीं है । देखना है,पनीरसेल्वम राजनीति की जड़ कितना धँसा पाते हैं और सत्ता के बेल को कितनी दूर ले जा पाते हैं, यह आने वाला वक़्त ही बताएगा !
अब वे इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके लाखों प्रशंसक उन्हें राजनितिक-यादों के साथ-साथ 'अम्मा-कैंटीन' , 'अम्मा-मिनरल वाटर' , 'अम्मा-मोबाइल', 'क्रेडल बेबी स्कीम' , 'अम्मा-नमक' , 'अम्मा-सीमेंट' , 'अम्मा-फार्मेसी' इत्यादि में रोजाना उन्हें ढूढेंगे और इसी में याद रखने की हरसंभव प्रयास करते रहेंगे ।
सिर्फ तमिल अम्मा नहीं, इस भारतीय अम्मा को मेरा सादर नमन् ।
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