क्या आभासी दुनिया से जुड़े रिश्ते दिलों के इतने करीब हो जाते हैं कि वे सहोदर रिश्ते से भी बड़े और बढ़कर हो जाते हैं ? फेसबुक पर तो सुना हैं कि यहाँ युवा पीढ़ी तो फ़ख़्त मनरंजन के लिए आते हैं और मुश्त मित्र बनाते हैं । पर आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट पर कुछ ऐसी ही 'रियल-कहानी' लेकर आये हैं -- डॉ. तेजेन्द्र दाधीज की ऐसी ही व्यथा-कथा । अपने अनथक संस्मरण में बताते हैं कि कैसे 'दिलों के फुकरे' फेसबुक पर और भी गहरे होकर'भाई-बहन' की पवित्र रिश्ते तक बिंध जाते है, जो कभी छूटती नहीं है । यह संस्मरण रामधारी सिंह दिनकर की कविता 'भाई-बहन' की याद दिला देते है ,पढ़िए --
'आभासी-दुनिया के कुछ अटूट रिश्ते'
बहना ! आप मेरे संवैधानिक-जीवन की वो प्रस्तावना (preamble) हो, जिसका कोई उपसंहार (conclusion) नहीं है ! अब साल के दिन बीत गये हैं ! मेरी प्यारी बहना मोनिका दीदी आंध्रप्रदेश में निवासरत है ! बहना, आज से आपको मैं माँ शब्द कहकर ही संबोधित करूँगा ! कारण यह है कि मैंने अब आपने मेरे इस स्नेह को इतना विस्तारित कर दिया है कि जिसको बता पाना मेरी कलम से नि:सृत शब्दों मे नहीं है ! आप से मेरी मुलाकात पहली बार तब हुई, जब मेरे पिताजी आपके गाँव अरनिया रासा मे आये थे !
फिर एक दिन अनायास आप से इस आभासी दुनिया फेसबुक पर मुलाकात हुई ! दरअसल हम दोनों ने एकदूसरे को तब जाना, जब फेसबुक पर मैंने अपने विचारों का और आपने अपने विचारों का आदान प्रदान किया ! मैं जिंदगी मे कई बार असमंजस की स्थिति में आया, पर कभी भी किसी से मार्गदर्शन नहीं ले पाया कि इस संसार मे किसी पर विश्वास नहीं था मुझे । परन्तु एक दिन जब आपसे मेरे पिताजी के बारे मे विचार प्रकट किया, तो मुझे अहसास हुआ कि यही बहना है, जो मुझे अपनी मंजिल की राह दिखा सकती है ! बहुत से ऐसे सवाल थे, जिनके जवाब आपसे चाहिए थी, मगर झिझक महसूस होती थी !
मैं और आप एक-दूसरे से अनजान थे,परंतु कब भाई-बहन का पावन रिश्ता बन गया, पता ही नही चला ! आपका और मेरा रिश्ता खून का नही है, परंतु अपनों से लाख गुना पराये अच्छे होते हैं । यह आपसे मिलकर जाना , जब आप आंध्रप्रदेश से अरनिया रासा आये थे !
भले ही मेरा होना आपके लिए कोई ख़ास अर्थ न रखता हो ! परंतु मैनै तब जीना सीखा, जब आपसे मिला और आपने ही मेरी जिंदगी के कई अनसुलझे पहलुओं को सुलझा कर मुझे नया जीवन दिया । मेरा जो आज शेष-अस्तित्व है केवल आपके मार्गदर्शन का ही परिणाम है ।
मेरी जिदगी की इस यात्रा का आधार-स्तम्भ केवल और केवल आप हो बहना ! हिम्मत, रोशनी,सम्बल.... ये सब बाहर से भी मिल जाते हैं, परंतु मुझे हमेशा पवित्र ध्वनियों वाली आश्वस्ति मिली है, जिसके सहारे मेरा अस्तित्व और भी प्रखर हुआ है।
जानता हूँ आपका स्नेह इस छोटे भाई तेजेन्द्र पर हमेशा से रहा है और आपने भी कई बार यह सोचा कि मैं अपना ध्यान खुद रख सकता हूँ, कई बार मुझे ऐसा भी लगा कि मैं आपके मार्गदर्शन के बिना अधूरा हूँ !
मुझे आपसे एक भी शिकायत नहीं !
शायद दोबारा जिंदगी में ऐसा अवसर न मिले, इसलिए आज अपनी बात दुहराना चाहता हूँ कि प्यारी बहना आप मेरे जीवन की वो 'प्रस्तावना' हो जिसका कोई 'उपसंहार' नहीं है !
आपका भाई (जो अब थोड़ा बड़ा भी हो गया है).....!!!
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