हम 'सोशल मीडिया' के इस युग में जहाँ 'सतरंगी' दुनिया में जी रहे होते हैं । पोस्ट पर लाइक आ गई तो धन्य हो जाते हैं । कोई बड़ाई कर दिये तो आसमाँ में झूमने लगते हैं । खासकर यह लाइक / कमेंट किसी लड़की के द्वारा हो, तो ऐसा लगता है की जन्नत ही मिल गई । पर आज प्यार का स्थान 'चिट्ठी' से हटकर 'चैटिंग-चैटिंग' ने ले लिया है ! जहाँ सोशल मीडिया के काफी फायदे हैं -- 'नए पीढ़ी के नौजवान -- लड़का-लड़की' इसे फेमस होने का हथियार मानते हैं, वही कुछ फेमस लोगों के यह 'दोमुहे' राज को भी खोलता है ! जहाँ सिर्फ पुरुषवादी सोच पर महिलाएं -- गलत टिप्पणी करती है, वही यहाँ 'इन महिलाओं' का दूसरा-रूप भी देखने को मिलता हैं । आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट कुछ ऐसा ही आलेख लेकर आया है ... आइये पढ़ते हैं सुश्री सुमन कुमारी की प्रस्तुत आलेख ...
दोस्तों से मिलना, मिलकर घंटों बातें करना, रिश्तेदारों का आना-जाना, कभी यूं ही महफ़िल जमा लेना और वक्त से बेखबर महफ़िल में सराबोर रहना... आज यह सब कहीं गुम सा हो गया है. किसी के पास वक्त नहीं तो कोई बिना मतलब किसी को वक्त देना जरूरी नहीं समझता... इसी सोच की वजह से अपने अपनों से दूर होते जा रहे है, अपने अपनों को वक्त देने से महरूम हो रहे है. अपनों का प्यार-दुलार, अपनों का साथ और अपनेपन का एहसास इन सभी अनमोल रिश्तों को खोते जा रहे हैं.
इन सबकी जगह वर्तमान में आभासी दुनिया ने ले ली है, जो एक तरफ से लोगों को भीड़नुमा रिश्ते दे रही है और दूसरी तरफ इनके दिनचर्या का आधा वक्त भी अपने नाम कर रहा है. आभासी दुनिया का अभिप्राय ऐसी दुनिया है जिनसे हम वास्तविक दुनिया में मिलते नहीं , लेकिन फिर भी उनके साथ अपना हर लम्हा बांटते है. सोशल मीडिया ने लोगों को कई तरह की आभासी दुनिया उपलब्ध करा दी है, जिसमे शामिल होना और अपनी आदत में शुमार कर लेना लोगों ने जरूरी समझ लिया है. आज का युवा वर्ग इस आभासी दुनिया का सबसे ज्यादा शिकार हो रहा है. वह जितना ज्यादा आभासी दुनिया में शामिल हो रहा है, उतना ज्यादा वह अकेलेपन का शिकार हो रहा है. वाट्सअप, फेसबुक, टिवटर, इंस्टाग्राम और हाईक इत्यादि ऐसी ही तमाम आभासी दुनिया के प्रकार हैं, जो लोगों को अपने चंगुल में जकड़े हुए हैं.
ऐसी भी क्या वजह है जो हजारों की संख्या में लोगों से जुड़े रहने के बावजूद अकेलेपन और कुंठा के शिकार होते हैं और इनकी यही बीमारी कई बार इन्हें आत्मदाह तक करने को मजबूर करती है. हम हजारों की संख्या में दोस्त तो बना लेते है लेकिन यह भूल जाते हैं कि हम आभासी दुनिया में है जहाँ सच सिर्फ दस प्रतिशत ही होगा, इसकी भी पुष्टि पूरी तरह से नहीं है. हम आभासी दुनिया में जब भी जिससे भी बात करते है, हम सिर्फ वही सुनते है या बोलते है जो हम सुनना या बोलना चाहते है, हमारे मन के भीतर क्या चल रहा है या हम किस असमंजस में है यह कोई नहीं जाना पाता है या परख पाता है क्योंकि आभासी दुनिया में किसी का भी असली चेहरा सामने नहीं होता है, चेहरा वही सामने होता है जो सामने वाला दिखाना चाहता है. आभासी दुनिया के विपरीत अगर वास्तविक दुनिया में सामने रहकर बात की जाती है तो सामने वाला मन की हर बात चेहरा देख कर समझ जाता है और फिर वह सामने वाले को उसी की तरह समझा कर उसकी परेशानी को दूर कर देता है. वास्तविक दुनिया की ख़ुशी-गम मन से महसूस की जाती है और उसे आपस में आसानी से बांटा भी जाता है. यही वजह है की आभासी दुनिया के लोग अकेलेपन का शिकार होते जा रहे हैं.
आज की दुनिया की रफ़्तार देखते हुए सोशल मीडिया पर बने रहना भी समय की जरूरत है, लेकिन सोशल मीडिया को अपनी जिन्दगी पर किसी भी तरफ से हावी न होने दिया जाए. सोशल मीडिया को जहाँ तक हो सके सिर्फ अपने मनोरंजन या थोड़ी-बहुत अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए ही प्रयोग किया जाए. तब ही शायद आभासी दुनिया से होने वाले नकारात्मक परिणाम से बचा जा सकेगा. आभासी दुनिया की दोस्ती ज्यादा समय तक नहीं टिक पाती है, क्योंकि इस दोस्ती की नींव भी आभासी ही होती है... एक सच्ची वाक्या मेरे सामने ही घटित हुआ :-
एक वर्ष पूर्व मेरी एक दोस्त (अनन्या) की दोस्ती फेसबुक पर एक लडके (कार्तिक) से हुई . 2-3 दिन दोनों में पूरी-पूरी रात बात हुई, दोनों ने एक दूसरे को अपने-अपने बारे में सब बताया और उसके बाद मिलना तय कर लिया. तीसरे या चौथ दिन दोनों में मुलाकात हुई. मैं भी उन दोनों के साथ ही थी, अनन्या ने जैसे ही कार्तिक को देखा, वैसे ही उसने मुझसे कहा की फेसबुक पर तो अलग दीखता है लेकिन अभी तो बहुत अजीब दिख रहा है. मैं यह सुनकर उससे यही कहा की अभी ठीक से रहो.... जो करना हो बाद में सोच कर लेना. बात फिर आगे बड़ी, हम तीनों एक रेस्टुरेंट में गये और जब घर के लिए निकल रहे थे तब कार्तिक ने अनन्या को उसकी पसंद की एक किताब गिफ्ट की. अनन्या को उसका किताब गिफ्ट करना पसंद आया तो उसके मन में जो नकारात्मक विचार थे वो अब सकारात्मक रूप ले चुके थे. इन दोनों की दोस्ती ने बहुत तेज़ गति से आगे बढना शुरू किया, रोज़ मिलना, घंटों फोन पर-फेसबुक पर बातें करना, एक-दूसरे को कुछ न कुछ गिफ्ट करना. थोड़े-बहुत दोनों करीब भी आये, भविष्य के लिए ढेर सारे सपने भी सजाये गए. यह सब तीन से चार महीने तक बहुत अच्छा चला और उसके बाद दोनों को एक दूसरे में कमियां नज़र आने लगी, बात-बात पर दोनों में लड़ाई भी होने लगी. अनन्या के घर में भी यह बात पता चल गई थी. मुझे जब यह सब पता चला ‘तब मैंने अनन्या से सिर्फ यही कहा की रिश्ते को थोडा वक्त दो और थोड़े धीमे गति से आगे बढो’ लेकिन उस वक्त किसी को कुछ समझ नहीं आया. थोड़े दिनों में दोनों का रिश्ता खत्म हो गया. इसके बाद अनन्या डिप्रेसन का शिकार हो गई, लम्बे वक्त तक उसने खुद को अकेला रखा.
यहाँ छोटी सी घटना का उदाहरण देना इसलिए जरूरी लगा , ताकि आज के दौर में अकेलेपन और कुंठा जैसी बढ़ रही बीमारी पर गंभीर रूप से सोच-विचार किया जाए और आभासी दुनिया के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं पर गौर करते हुए इसका प्रयोग किया जाना चाहिए.
बशीर बद्र साहब ने कहा है ….
“हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझतें हैं
उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में
कोई जाने जानाँ भी बे-गरज नहीं मिलता
दोस्ती कहाँ होती है आज के
जमाने में ।।”
'सोशल मीडिया : आस्तीन के साँप
दोस्तों से मिलना, मिलकर घंटों बातें करना, रिश्तेदारों का आना-जाना, कभी यूं ही महफ़िल जमा लेना और वक्त से बेखबर महफ़िल में सराबोर रहना... आज यह सब कहीं गुम सा हो गया है. किसी के पास वक्त नहीं तो कोई बिना मतलब किसी को वक्त देना जरूरी नहीं समझता... इसी सोच की वजह से अपने अपनों से दूर होते जा रहे है, अपने अपनों को वक्त देने से महरूम हो रहे है. अपनों का प्यार-दुलार, अपनों का साथ और अपनेपन का एहसास इन सभी अनमोल रिश्तों को खोते जा रहे हैं.
इन सबकी जगह वर्तमान में आभासी दुनिया ने ले ली है, जो एक तरफ से लोगों को भीड़नुमा रिश्ते दे रही है और दूसरी तरफ इनके दिनचर्या का आधा वक्त भी अपने नाम कर रहा है. आभासी दुनिया का अभिप्राय ऐसी दुनिया है जिनसे हम वास्तविक दुनिया में मिलते नहीं , लेकिन फिर भी उनके साथ अपना हर लम्हा बांटते है. सोशल मीडिया ने लोगों को कई तरह की आभासी दुनिया उपलब्ध करा दी है, जिसमे शामिल होना और अपनी आदत में शुमार कर लेना लोगों ने जरूरी समझ लिया है. आज का युवा वर्ग इस आभासी दुनिया का सबसे ज्यादा शिकार हो रहा है. वह जितना ज्यादा आभासी दुनिया में शामिल हो रहा है, उतना ज्यादा वह अकेलेपन का शिकार हो रहा है. वाट्सअप, फेसबुक, टिवटर, इंस्टाग्राम और हाईक इत्यादि ऐसी ही तमाम आभासी दुनिया के प्रकार हैं, जो लोगों को अपने चंगुल में जकड़े हुए हैं.
ऐसी भी क्या वजह है जो हजारों की संख्या में लोगों से जुड़े रहने के बावजूद अकेलेपन और कुंठा के शिकार होते हैं और इनकी यही बीमारी कई बार इन्हें आत्मदाह तक करने को मजबूर करती है. हम हजारों की संख्या में दोस्त तो बना लेते है लेकिन यह भूल जाते हैं कि हम आभासी दुनिया में है जहाँ सच सिर्फ दस प्रतिशत ही होगा, इसकी भी पुष्टि पूरी तरह से नहीं है. हम आभासी दुनिया में जब भी जिससे भी बात करते है, हम सिर्फ वही सुनते है या बोलते है जो हम सुनना या बोलना चाहते है, हमारे मन के भीतर क्या चल रहा है या हम किस असमंजस में है यह कोई नहीं जाना पाता है या परख पाता है क्योंकि आभासी दुनिया में किसी का भी असली चेहरा सामने नहीं होता है, चेहरा वही सामने होता है जो सामने वाला दिखाना चाहता है. आभासी दुनिया के विपरीत अगर वास्तविक दुनिया में सामने रहकर बात की जाती है तो सामने वाला मन की हर बात चेहरा देख कर समझ जाता है और फिर वह सामने वाले को उसी की तरह समझा कर उसकी परेशानी को दूर कर देता है. वास्तविक दुनिया की ख़ुशी-गम मन से महसूस की जाती है और उसे आपस में आसानी से बांटा भी जाता है. यही वजह है की आभासी दुनिया के लोग अकेलेपन का शिकार होते जा रहे हैं.
आज की दुनिया की रफ़्तार देखते हुए सोशल मीडिया पर बने रहना भी समय की जरूरत है, लेकिन सोशल मीडिया को अपनी जिन्दगी पर किसी भी तरफ से हावी न होने दिया जाए. सोशल मीडिया को जहाँ तक हो सके सिर्फ अपने मनोरंजन या थोड़ी-बहुत अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए ही प्रयोग किया जाए. तब ही शायद आभासी दुनिया से होने वाले नकारात्मक परिणाम से बचा जा सकेगा. आभासी दुनिया की दोस्ती ज्यादा समय तक नहीं टिक पाती है, क्योंकि इस दोस्ती की नींव भी आभासी ही होती है... एक सच्ची वाक्या मेरे सामने ही घटित हुआ :-
एक वर्ष पूर्व मेरी एक दोस्त (अनन्या) की दोस्ती फेसबुक पर एक लडके (कार्तिक) से हुई . 2-3 दिन दोनों में पूरी-पूरी रात बात हुई, दोनों ने एक दूसरे को अपने-अपने बारे में सब बताया और उसके बाद मिलना तय कर लिया. तीसरे या चौथ दिन दोनों में मुलाकात हुई. मैं भी उन दोनों के साथ ही थी, अनन्या ने जैसे ही कार्तिक को देखा, वैसे ही उसने मुझसे कहा की फेसबुक पर तो अलग दीखता है लेकिन अभी तो बहुत अजीब दिख रहा है. मैं यह सुनकर उससे यही कहा की अभी ठीक से रहो.... जो करना हो बाद में सोच कर लेना. बात फिर आगे बड़ी, हम तीनों एक रेस्टुरेंट में गये और जब घर के लिए निकल रहे थे तब कार्तिक ने अनन्या को उसकी पसंद की एक किताब गिफ्ट की. अनन्या को उसका किताब गिफ्ट करना पसंद आया तो उसके मन में जो नकारात्मक विचार थे वो अब सकारात्मक रूप ले चुके थे. इन दोनों की दोस्ती ने बहुत तेज़ गति से आगे बढना शुरू किया, रोज़ मिलना, घंटों फोन पर-फेसबुक पर बातें करना, एक-दूसरे को कुछ न कुछ गिफ्ट करना. थोड़े-बहुत दोनों करीब भी आये, भविष्य के लिए ढेर सारे सपने भी सजाये गए. यह सब तीन से चार महीने तक बहुत अच्छा चला और उसके बाद दोनों को एक दूसरे में कमियां नज़र आने लगी, बात-बात पर दोनों में लड़ाई भी होने लगी. अनन्या के घर में भी यह बात पता चल गई थी. मुझे जब यह सब पता चला ‘तब मैंने अनन्या से सिर्फ यही कहा की रिश्ते को थोडा वक्त दो और थोड़े धीमे गति से आगे बढो’ लेकिन उस वक्त किसी को कुछ समझ नहीं आया. थोड़े दिनों में दोनों का रिश्ता खत्म हो गया. इसके बाद अनन्या डिप्रेसन का शिकार हो गई, लम्बे वक्त तक उसने खुद को अकेला रखा.
यहाँ छोटी सी घटना का उदाहरण देना इसलिए जरूरी लगा , ताकि आज के दौर में अकेलेपन और कुंठा जैसी बढ़ रही बीमारी पर गंभीर रूप से सोच-विचार किया जाए और आभासी दुनिया के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं पर गौर करते हुए इसका प्रयोग किया जाना चाहिए.
बशीर बद्र साहब ने कहा है ….
“हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझतें हैं
उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में
कोई जाने जानाँ भी बे-गरज नहीं मिलता
दोस्ती कहाँ होती है आज के
जमाने में ।।”
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