'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' के "अतिथि कलम" में प्रस्तुत है कवि 'श्री सौरभ शर्मा' की लोकप्रिय प्रेम-कविता 'मैं तुम्हारी बुद्धू ही ठीक हूँ' ...इस कविता में कवि ने वास्तविक तथ्य को कल्पनाशीलता के सहारे कविता में पूर्णतः रच-बस कर अन्य प्रेमियों की तरह गलत स्टेप न उठाकर अपनी प्रेमिका के प्रति शादी के दिन भी अथाह स्नेह दिखाते हुए ज़िन्दगी भर के लिए 'शादी न करते हुए भी ' उनके दिल की हीरो बना रहते हैं । आगे आप ही पढ़िये ...
कवि सौरभ शर्मा की प्रेम-कविता
जब मिले थे हम पहली बार...
जब हम पडोसी बने थे..
पहली बार जब तुम आयी अपनी,
माँ के साथ आयीं थीं मेरे घर...
दो चोटी, गुलाबी फ्रॉक में
लाल लाल गोलू-मोलू से गालों
वाली "तुम"....
पहली नजर में ही मुझे पसन्द
आ गईं थीं, रोज पार्क में
संग संग खेलते हुए न जाने
कब "इश्क़" हो ही गया तुमसे...
जिसका इजहार मैं कभी कर ही नहीं
पाया तुमसे...!
अक्सर हमारे बीच होने वाली बातों
की पहल तुम्हीं करती थीं, और मैं
घबरा कर जवाब भी सही नहीं दे
पाता था, तुमने हैप्पी दिवाली विश
किया और मैं घबरा कर होली की
बधाई दे देता था, और "तुम"
मुझे "बुद्धू" कह खिलखिला
कर हंस पड़ती थीं, संग में मैं
भी...!
जान गयीं थीं तुम, की मैं
प्यार करता हूँ ,तुमसे...
पर चाहती थी की मैं पहल करूँ
पर मैं तो बुद्धू था और वही रहा,
अक्सर बातों बातों में तुम कह
भी गयीं थीं, पर मैं न
समझ पाया,
कॉलेज पास कर मैं जॉब
पर लग गया और तुम टीचर ट्रेनिंग
करने लगीं, पर रोज शाम हम
मिलते थे और अपनी दुनिया में
खो जाते थे, जब माँ आवाज दे कर बुला
न लेती थीं...!
एक दिन ऑफिस से लौटा तो
मेज पर शादी का कार्ड मिला,
हाँ ये तुम्हारी शादी का कार्ड था,
मैंने तुमको इस बात पर बहुत छेड़ा,
पर तुम कैरियर का बहाना ले अपनी उदासी
दिखा रहीं थीं और ख़ुशी का नाटक कर
अपनी उदासी छुपा रहा था,
तुम पराई जो हो रहीं थीं...!
वो दिन आ ही गया जब तुम नए
रिश्ते में बंधने जा रहीं थीं, और
तुम्हारे कमरे में मैं तुमसे मिलने आया,
और तुमने मेरा हाथ पकड़ कर कहा,
सुनो "बुद्धू" आज तो कह दो...
मैं चौंक गया, पर तुमने कह ही दिया
की मैं जानती हूँ, तुम करते हो प्यार
मुझसे, पर कहते नहीं, पर आज तो कह
दो, "मैंने" दो हाथ तुम्हारे गालों पर रख कर
पूछा, अगर आज कह दूं तो क्या कर लोगी
ये शादी रोक दोगी,
तुमने बड़े विश्वास और हक़ से कहा हाँ,
नहीं करुँगी किसी और से शादी, इसी
मंडप में तुमसे ही कर लुंगी, तुम कहो
तो, मैं कब से सुनना चाहती हूँ
तुमसे इश्क़ का इजहार...
बस कह दो आज...!
मैं बस इतना ही कह पाया कि, जाने दो
वो लड़का जो इतना खर्चा कर के,
नयी शेरवानी में सजा, घोड़ी पर बैठ
"तुमको" ब्याहने आया है न....
वो मुझसे ज्यादा खुशनसीब है,बचपन
से तुम्हारा हो कर तुमसे कह नहीं पाया,
और वो कुछ न कह भी "तुमको" पा गया,
"मैं" बस तुम्हारा बुद्धू ही अच्छा हूँ, सखी...!
बहुत ही अच्छी कविता ....
ReplyDeleteप्यार की परिभाषा...
सच्ची कविता |
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