एक पुरानी कहावत है -- 'हम जहाँ खड़े हो जाते है , लाइन वहीं से शुरू हो जाती है।' यह बात कहाँ तक सही है, यह बता रहे है --पेशे से पत्रकार, नाम से शांत कवि शैलेंद्र शांत , यह साहब मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट में आज के अतिथि कलमकार हैं । शैलेन्द्र जी अपनी कविताओं के माध्यम से हमें हकीकत से रूबरू कराते हुए नजर आते हैं ! कवि शांत के काव्याणु ने कब से कविता में घुस और अशांत आंदोलन का दीर्घायन बन मुखर काव्य में आ चुके हैं, हमें तो मालूम नहीं ! आप पाठक-प्रियवर भी पढ़कर ही ऐसे कविता-आंदोलन का आकलन कर सकते हैं । तो आइये, पढ़ते हैं इसे........
आज का सबक !
मध्य में चलो
मध्य में
तकते चलो
मगर दायें -बायें
जाने कब किधर से
सुअवसर निकल आये !
^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^
तो कोई बात बने!
शोर तो बहुत है
लगभग कोलाहल
मगर उसमें जोर नहीं
दिल तक पहुंच ही नहीं पाता
कोई संदेश , बस आवेग
अरे भाई, तार को मंद्र पे ले जाओ
थोड़ा , कुछ तो दे सुनाई साफ-साफ
मेरे भाई,तो कोई बात बने!
^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^
सावन
कहां पड़े झूले
काट तो दिये
बहुत सारे
उधर
सजन जी
फिर रहे हैं
मारे - मारे !
थके - हारे !!
~_~~_~~_~~_~~_~~_~~_~~_~~_~~_~~_~
चोट पे चोट !
गाली पे गाली
देता ही जाये
क्या शरीफ
क्या मवाली
चाहे बहन हो
चाहे मां बेटी
या फिर घरवाली
मंशा वही
काली की काली
कोई निशाना
जाये न खाली
हर किसी के हाथ में
कट्टा दोनाली
चोट पे चोट देता
जैसे हर सवाली !
^_^^_^^_^^_^^_^^_^^_^^_^^_^^_^^_^
क्या कहें ?
पसंद अपनी अपनी
सुर और ताल
अपना अपना
किसी को लगे
हकीकत
किसी को सपना
एक ही समय में
सवाल अपना अपना
नजर का है फेर
बस इतना है कहना
जप लो जी जप लो
जिस नाम को चाहो जपना !
^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^
कि कुछ कहिए !
यह तो सचमुच है
बहुत खुशी की बात
कि है आपके पास
कुछ कहने को
कहिये साथी कहिये
दिल खोल कर कहिए
चुप-चुप रहने से बेहतर
कि कुछ कहिए
कहिये कभी अपना हाल
कभी पड़ोस की कहिये
कहिये कभी सूखे की बात
कभी बरसात की कहिये
प्रेम आंगन में पसर रहे
उत्पात पर कुछ कहिये
झूठे मक्कारों की जात पर
उनकी बात पर चाहें तो
कुछ कहिये , चुप मत रहिये
फूल पत्ती डाली हरियाली
जिस पर जी हो कहिये
कभी कभी ही सही
रोजी रोटी के सवाल पर
गढ़े गये बवाल पर
मर्जी हो तो कुछ कहिये
कहिये साथी कहिये
चुप चुप रहने से अच्छा !
'शांत कवि की बेचैन कवितायें'
आज का सबक !
मध्य में चलो
मध्य में
तकते चलो
मगर दायें -बायें
जाने कब किधर से
सुअवसर निकल आये !
^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^
तो कोई बात बने!
शोर तो बहुत है
लगभग कोलाहल
मगर उसमें जोर नहीं
दिल तक पहुंच ही नहीं पाता
कोई संदेश , बस आवेग
अरे भाई, तार को मंद्र पे ले जाओ
थोड़ा , कुछ तो दे सुनाई साफ-साफ
मेरे भाई,तो कोई बात बने!
^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^
सावन
कहां पड़े झूले
काट तो दिये
बहुत सारे
उधर
सजन जी
फिर रहे हैं
मारे - मारे !
थके - हारे !!
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चोट पे चोट !
गाली पे गाली
देता ही जाये
क्या शरीफ
क्या मवाली
चाहे बहन हो
चाहे मां बेटी
या फिर घरवाली
मंशा वही
काली की काली
कोई निशाना
जाये न खाली
हर किसी के हाथ में
कट्टा दोनाली
चोट पे चोट देता
जैसे हर सवाली !
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क्या कहें ?
पसंद अपनी अपनी
सुर और ताल
अपना अपना
किसी को लगे
हकीकत
किसी को सपना
एक ही समय में
सवाल अपना अपना
नजर का है फेर
बस इतना है कहना
जप लो जी जप लो
जिस नाम को चाहो जपना !
^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^^﹏^
कि कुछ कहिए !
यह तो सचमुच है
बहुत खुशी की बात
कि है आपके पास
कुछ कहने को
कहिये साथी कहिये
दिल खोल कर कहिए
चुप-चुप रहने से बेहतर
कि कुछ कहिए
कहिये कभी अपना हाल
कभी पड़ोस की कहिये
कहिये कभी सूखे की बात
कभी बरसात की कहिये
प्रेम आंगन में पसर रहे
उत्पात पर कुछ कहिये
झूठे मक्कारों की जात पर
उनकी बात पर चाहें तो
कुछ कहिये , चुप मत रहिये
फूल पत्ती डाली हरियाली
जिस पर जी हो कहिये
कभी कभी ही सही
रोजी रोटी के सवाल पर
गढ़े गये बवाल पर
मर्जी हो तो कुछ कहिये
कहिये साथी कहिये
चुप चुप रहने से अच्छा !
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