सुश्री आराधना शुक्ला की प्रस्तुत रसपूर्ण कविता में कवयित्री ने 'प्रेमिका' बन या माध्यम बनकर काव्य-शब्द के बदले लेखनी द्वारा अपनी टीस को उकेरी हैं, जो अपने बेवफ़ा प्रेमी के लिए 'वफ़ा' बन सबकुछ लूटा देना चाहती हैं, लेकिन शब्द-जाल से ऐसी चक्रव्यूह बन गयी है कि प्रेमी कौन हैं कवयित्री हमें अंत तक 'सस्पेंस' में डाले रखती है । कविता ख़त्म हो जाती है, फिर भी लगता है, कविता अभी बाकी है । यही तो कवयित्री की पहचान है और सुश्री शुक्ला जी की कविताई-आराधना है । मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट में आज पढ़िये 'एक इन्तेजार और कई कसक' को समेटी युवा कवयित्री की बिंदास-कविता 'मैं फिर आऊँगी' ...
'मैं फिर आऊँगी'
बहुत ही बढियां 👍
ReplyDeleteशुक्रिया !
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