"राष्ट्रधर्म से ऊपर कोई सन्देश या सेवा नहीं"
"राष्ट्रधर्म से ऊपर कोई सन्देश या सेवा नहीं"
राष्ट्र से ऊपर कोई भी धर्म या जाति नहीं हैं । मानवता की सेवा से भी बढ़कर राष्ट्रसेवा है । अगर देश ही नहीं रहे, तो हम कहीं के रह नहीं पाएंगे। तब हमारी मानसिकता गुलामी से जकड़ जायेगी, इसलिए मेरा मत है कि मंदिर में सुबह की प्रार्थना से पहले, मस्जिद में उसदिन के प्रथम अजान से पहले व अन्य धर्मों के पूजास्थल में सुबह की प्रार्थना-सत्र से पहले 'राष्ट्रगान' गायन को अनिवार्य कर देना चाहिए । इस सम्बन्ध में माननीय सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए ! इतना नहीं, राष्ट्रगान की अनिवार्यता सभी तरह के न्यायालय, संसद, विधानसभा आदि में भी कार्यवाही प्रारम्भ की जाने से पूर्व अवश्य होनी चाहिए । ऐसी प्रासंगिकता के मद्देनज़र सिनेमाघरों में 'ब्लू फ़िल्म' नहीं दिखाए जाने चाहिए।
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
0 comments:
Post a Comment