जहाँ न जाय रवि, वहाँ पहुँच जाय कवि और जहाँ न पहुंचे कवि , वहाँ पहुँचे अनुभवी । श्रीमान् रामबन्धु वत्स' रवि और कवि से भी आगे बढ़कर अनुभवी हैं तथा 'ब्रह्मा' के चतुरानन की तरह अपनी चारों कविताओं में ब्रह्म-सत्य उकेरते हुए दिख रहे हैं । यद्यपि इन कविताओं में हू-ब-हू यहाँ रखने के प्रयास में व्याकरणिक-त्रुटि रह-सी गयी हैं, तथापि ये कविताएं, खासकर चौथे नंबर की 'बिग बैंग' से कम नहीं है, किन्तु अंतिम कविता किन घटनाओं के परिणामस्वरूप हैं, सुस्पष्ट नहीं हो रहा है । कुल मिलाकर 'मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' की यह प्रस्तुति आपको अवश्य ही सोचने को विवश करेगा, तो पढ़िए......
'ख्वाबों के ख्यालों में एक कवि'
कैनवास की उकेरी रेखाऐं,
बड़ी नादान हो तुम,
मुस्कुराती भी हो, मचलती भी हो,
इंद्रधनुष के सतरंगी बुँदो की तरह ।
तुम एक नज़रिया हो,
किसी चित्रकार की.... बस,
कोई नियती नहीं,
सुनहरी धूप में खिली गुलाबी पात की तरह ।
हम इत्तेफाक़ नहीं रखते किसी की आहट से,
यूँ ही गली में झाक कर ....... ,
थिड़कती भी हो, सँवरती भी हो,
किसी आँखो के साकार हुए सपने की तरह ।"
पता नहीं क्या आस बिछाय,
अपनी चौखट से बार-बार,
एकटक से क्षितिज निहार रहीं हो...,
स्वाती बुँद की आस लगाये चातक की तरह ।
पीली सरसों पे तितँली को मचलते देख,
तुम भी मिलन की आस लगा लिये,
तेज तुफाँ में भी दीये की लौ जला लिये,
मृगतृष्णा में दौडती रेत की हिरण की तरह ।
बड़ी नादान हो तुम ।
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मैं छोटी ख्यावों वाला हूँ ,
तुम बड़ी बड़ी बातो वाली,
तेरी बातों की लहरों से ,
टूटा मेरे घर का हाला ।
तेरी बातो से छोटी हैं ,
इस जहां का आसमाँ,
छोटी यह धरती भी हैं ,
छोटा है चाँद हर तारा,
सागर की हर लहरें छोटी ,
सूरज से निकली किरणे भी ,
सब छोटी है तेरी बातो से ,
पर , मेरा क्या लेना देना है ।
मैं छोटी ख्याबों वाला हूँ ,
छोटी - सी बातो वाला हूँ ,
छोटीे है सपने सारे ,
छोटी अरमा की दुनिया है ,
मैं किसी किनारे बैठ कर ,
नन्हे पेड़ों की छावं में ,
नन्ही खुशियों की आड़ में ,
एक छोटा -सा घर बनाता हूँ ,
यूँ ही, सारी उमर बिताता हूँ ।
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खामोश राहों पे उस अँधेरी रात में ,
जब चल रहे थी सपने मेरे ,
ठीक आधी रात को नव वर्ष आया,
उस अँधेरी रात को नव वर्ष आया।
लड़खराती काँपती थी अजीब बैचैन सी ,
पता नहीं मंजिल का अब तक ,
इसीलिए परेशान थी,
ठीक उसी वक्त नव वर्ष आया ,
उस अँधेरी रात को नव वर्ष आया ।
भागकर कर जाऊं किधर मैं ,
उस अँधेरी रात को ,
मैंने कहा - तुम लौट जाओ
पास न आयो मेरे ,
ठीक मुझे धिक्कारने ,
नव वर्ष आया ,
उस अँधेरी रात को नव वर्ष आया ।
उस ने कहा -मैं काल हूँ
लौट सकता हूँ नहीं ,
पायो मंजिल या न पायो ,
रुक नहीं सकता कभी ,
ठीक यही फटकारने ,
नव वर्ष आया ,
उस अँधेरी रात को नव वर्ष आया ।
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आज शहर में फिर गूंजी है चीत्कार कई ,
लगता है गलियों पे बिछ गई है लाश कई ,
लाशों के ढ़ेर में अब अपनों की तलाश है
उस बीबी की बाँहों में शौहर की लाश है
कोई अम्मा कोई खाला ये तो अम्मी की लाश है
हाथ जोडूं कोई बता मुझे मुन्नी की तलाश है
बाबा कहाँ तूं, मेरे गोंद में छोटी की लाश है
कहाँ गया मुन्ना मेरा, मेरा मन हताश है
कितनी बदनसीब माँ गोद में बेटे की लाश है
खुशनसीब यहाँ केवल बबलू की लाश है
क्योंकि उसके संग पड़ी उसकी अम्मी की लाश है
कई लाशो को अब तक कफन की तलाश है ,
फिर शहर में सड़ रही कई लाश है ।
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