प्यार और इकरार -- हालाँकि दो शब्द हैं,पर दोनों के दिल एक है । कविता जब शब्दों के बीच से निकलने की कोशिश करने लगे और नखरे दिखाने लगे, तो वो इकरार कहलाने लगता है । आइये, आज के अंक की कवयित्री के दो छाया-चित्र--- एक श्वेत-श्याम, तो दूजे रंग में लीन-- में श्वेत-श्याम के छाया-चित्र के साथ उनकी नज़्म को परखते हैं, तो रंगीन छाया-चित्र के साथ सुश्री वर्षा चतुर्वेदी की काव्याणु को 'माइल स्टोन' के तौर पर देखते हैं । कवयित्री किसी की प्रेमिका-प्रतीक बन अपनी कवितामयी 'फूलों' को जोड़कर 'उलझे हुए प्रेमपाश' को हरसंभव सुलझाने का प्रयास करती दिख रही हैं। 'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में पढ़िए 'अनकही प्रेम की दास्ताँया तितली' ...
'अनकही प्रेम की तितली'
एक दूसरे से अब किनारा कर लिया जाए ।
साथ नहीं था मुमकिन हमारे नसीब में--
कि दुनिया को कहने को बहाना कर लिया जाए ।
वो लम्हों खफा रह एक पल का सुकून देता है,
चाहती हूँ अब इसका भी सहारा ना लिया जाए ।
तमाम उलझनों से जो राहत दे रहा हो हमको--
फैसले वह लेने में यूं समय जाया ना किया जाए ।
चलो अब खुद को बेसहारा कर लेती हम--
कि एक दूसरे से अब किनारा कर लिया जाए ।
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तेरे जीवन सफर में
बस....
तेरे कदमो की धूल ही रही
मैं....
लाख सीने में
दबा के अपने गमो को
तेरी खुशियों में
मशगूल ही रही
मैं...
छोड़ के मुझको तूने
तेरे कुछ अपनों को ही चुना था...
थी तो मैं तेरी ही...
ये बात अलग है कि
तेरे लिए गैर ही रही
मैं...
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हाँ मैं थोड़ी सी नकारात्मक हूँ....
मगर ये नकारात्मकता
उन अभावों से है...
जिनके जन्मदाता तुम हो
तुम
मेरे प्रिय ।
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ख़ामोशी को चुना है
शेष सफर के लिए
तुमसे गुफ्तगू कर--
अब अल्फ़ाज़ों को खाली करना
बिलकुल हमें
अच्छा नही लगता....
वर्षा चतुर्वेदी
पहली बार 'अनकही प्रेम की तितली' की खूबसूरती को देखने का मौका मिला... प्रेम सफ़र जितना ख़ामोश उतना ही बहुत कुछ बयान करता सा दिखता है.
ReplyDeleteoutstanding
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