हमाम में सब नंगे हैं, परंतु कुछ पढ़े-लिखे लोग इन हमाम में सभ्य-नंगे हैं, तो कोई सांसारिक-मोह-माया में पड़े वासना के पीछे नंगे हैं ! इन्ही नंगी-सेना के बीच 'मध्यमवर्गीय-सभ्य-नंगे' पेण्डुलम की तरह कभी लेफ्ट तो कभी राईट डोलते रहते हैं और अच्छाई के फेर में दूसरे नग्ननाई हाथ की कठपुतली बने नाचते फिरते हैं । आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट लेकर आई है, श्रीमान् अलोक शर्मा द्वारा लिखित लेख जो जीवन की सच्चाई को करीने से पेश करती नजर आती है । आइये, इसे पढ़ते हैं :----------
"चुगलख़ोर की चाहत,नहीं मिलेगी राहत !"
अकारण ही व्यक्ति,परिवार व समाज के परेशानी का सबब बने एक विशेष कारण पर अपना विचार प्रस्तुत करना चाहता हूँ, क्योकि यह समस्या समाज के उन व्यक्तियो के बुरे विचारों की उपज है जिन्हें भोजपुरी में कुचुरा,हिंदी में चुगलखोर,अंग्रेजी में Tattler तथा संस्कृत में ग्रामकण्टक कहा गया है !
अमीर तथा गरीब दोनों वर्गो में पाये जाने वाले ये इंसान प्रायः अपने गांव,नगर,बाजार व शहर के विकसित या विकासशील वर्ग के स्त्री-पुरुष युवा व बच्चों को अपना निशाना बनाते रहते है !उदासीन,आलसी,अकर्मण्य तथा जिम्मेदारियों से मुक्त ये लोग या तो पैतृक धन पे राज करते हैं या फिर दीन-हीन दशा में क्षणिक स्वार्थ की पूर्ति हेतु अपने बॉस या खास को खुश करने के चक्कर में समय-समय पर अच्छे व्यक्तियों व विचारों की गलत निंदा करते रहते हैं !
वैसे तो इनके इस स्वभाव के कई कारण हैं, किन्तु कुछ विद्वान व सफेदपोश चुगलों के जन्म का एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक कारण यूँ है, जब कोई व्यक्ति समान कद व पद लिए कड़ी मेहनत के बाद भी जीवन की प्रतिस्पर्धा में अपने लोगों से पीछे छूट जाता है तथा साथ या बाद वाले आगे निकल जाते हैं तो इनके अंदर उदासीनता व अवसाद सहित हीनभावना प्रबल हो जाती है और वह समाज में अपना सम्मान सुरक्षित रखने हेतु कर्मठ,विकासशील लोगों के जीवन व चरित्र पर तरह-तरह के लांक्षण लगाते रहते हैं !
स्वयं के परिवार से उपेक्षित ये स्त्री-पुरुष दूसरे परिवार की उपेक्षा का विशेष ध्यान देते है !चौक की चटाई से महलों के दीवान-ए-खास तक घर,ऑफिस तथा बाज़ार हर जगह उपलब्ध ये प्राणी बहुत मीठा बोलते है,अचानक आपके समक्ष उपस्थित होकर आपकी चापलूसी के समानांतर किसी व्यक्ति-विशेष की बुराई करते हुए आपके प्रति प्रेम, आत्मीयता व सम्मान का इजहार करते हैं !
समाज के कुछ खास व्यक्तियों में लोकप्रिय ये कलाकार दूसरों के हर्ष,उल्लास,प्रसन्नता तथा विकास से हमेशा जलन रखते हैं !इतना ही नहीं, पारिवारिक व सामाजिक एकता के सबसे बड़े दुश्मन ये लोग कान के कच्चे व्यक्तियों के लिए विष के समान होते हैं !
अपने तमाम अवगुणों के शहंशाह इन व्यक्तियों का एक गुण भी होता है कि ये समाज के निरीह,लाचार, असहाय व अक्षम लोगों को अपना शिकार नहीं बनाते तथा बहुत जल्दी ही अपने कर्मो से समाज में पहचान लिए जाते है !हर युग व काल में उपलब्ध रहे इन प्राणियों का प्रारम्भिक सानिध्य मीठा, किन्तु अंत बहुत घातक होता है, इसलिए इनकी पहचान होते ही बिना विचारे दोस्ती व बैर दोनों का परित्याग कर देना चाहिए, क्योकि ये अपने श्रोताओं के ही सबसे बड़े दुश्मन होते हैं ।
एक बात स्पष्ट कर दूँ, वास्तविक बुराई पर विरोध करना,विचार प्रस्तुत करना,सच बोलना या वास्तविक प्रतिभा का सम्मान करना इस श्रेणी में नहीं आता क्योकि ये गुण समाजिक सुधार व विकास के स्तम्भ हैं !साथ ही मेरा यह लेख किसी व्यक्ति या व्यवस्था की आलोचना नहीं,बल्कि उन विचारों पर एक विचार-व्यवस्था है , जो तुच्छ स्वार्थपूर्ति हेतु अकारण ही परिवार या समाज में विघटन व दुःख के कारक हो जाते हैं !
"चुगलख़ोर की चाहत,नहीं मिलेगी राहत !"
अकारण ही व्यक्ति,परिवार व समाज के परेशानी का सबब बने एक विशेष कारण पर अपना विचार प्रस्तुत करना चाहता हूँ, क्योकि यह समस्या समाज के उन व्यक्तियो के बुरे विचारों की उपज है जिन्हें भोजपुरी में कुचुरा,हिंदी में चुगलखोर,अंग्रेजी में Tattler तथा संस्कृत में ग्रामकण्टक कहा गया है !
अमीर तथा गरीब दोनों वर्गो में पाये जाने वाले ये इंसान प्रायः अपने गांव,नगर,बाजार व शहर के विकसित या विकासशील वर्ग के स्त्री-पुरुष युवा व बच्चों को अपना निशाना बनाते रहते है !उदासीन,आलसी,अकर्मण्य तथा जिम्मेदारियों से मुक्त ये लोग या तो पैतृक धन पे राज करते हैं या फिर दीन-हीन दशा में क्षणिक स्वार्थ की पूर्ति हेतु अपने बॉस या खास को खुश करने के चक्कर में समय-समय पर अच्छे व्यक्तियों व विचारों की गलत निंदा करते रहते हैं !
वैसे तो इनके इस स्वभाव के कई कारण हैं, किन्तु कुछ विद्वान व सफेदपोश चुगलों के जन्म का एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक कारण यूँ है, जब कोई व्यक्ति समान कद व पद लिए कड़ी मेहनत के बाद भी जीवन की प्रतिस्पर्धा में अपने लोगों से पीछे छूट जाता है तथा साथ या बाद वाले आगे निकल जाते हैं तो इनके अंदर उदासीनता व अवसाद सहित हीनभावना प्रबल हो जाती है और वह समाज में अपना सम्मान सुरक्षित रखने हेतु कर्मठ,विकासशील लोगों के जीवन व चरित्र पर तरह-तरह के लांक्षण लगाते रहते हैं !
स्वयं के परिवार से उपेक्षित ये स्त्री-पुरुष दूसरे परिवार की उपेक्षा का विशेष ध्यान देते है !चौक की चटाई से महलों के दीवान-ए-खास तक घर,ऑफिस तथा बाज़ार हर जगह उपलब्ध ये प्राणी बहुत मीठा बोलते है,अचानक आपके समक्ष उपस्थित होकर आपकी चापलूसी के समानांतर किसी व्यक्ति-विशेष की बुराई करते हुए आपके प्रति प्रेम, आत्मीयता व सम्मान का इजहार करते हैं !
समाज के कुछ खास व्यक्तियों में लोकप्रिय ये कलाकार दूसरों के हर्ष,उल्लास,प्रसन्नता तथा विकास से हमेशा जलन रखते हैं !इतना ही नहीं, पारिवारिक व सामाजिक एकता के सबसे बड़े दुश्मन ये लोग कान के कच्चे व्यक्तियों के लिए विष के समान होते हैं !
अपने तमाम अवगुणों के शहंशाह इन व्यक्तियों का एक गुण भी होता है कि ये समाज के निरीह,लाचार, असहाय व अक्षम लोगों को अपना शिकार नहीं बनाते तथा बहुत जल्दी ही अपने कर्मो से समाज में पहचान लिए जाते है !हर युग व काल में उपलब्ध रहे इन प्राणियों का प्रारम्भिक सानिध्य मीठा, किन्तु अंत बहुत घातक होता है, इसलिए इनकी पहचान होते ही बिना विचारे दोस्ती व बैर दोनों का परित्याग कर देना चाहिए, क्योकि ये अपने श्रोताओं के ही सबसे बड़े दुश्मन होते हैं ।
एक बात स्पष्ट कर दूँ, वास्तविक बुराई पर विरोध करना,विचार प्रस्तुत करना,सच बोलना या वास्तविक प्रतिभा का सम्मान करना इस श्रेणी में नहीं आता क्योकि ये गुण समाजिक सुधार व विकास के स्तम्भ हैं !साथ ही मेरा यह लेख किसी व्यक्ति या व्यवस्था की आलोचना नहीं,बल्कि उन विचारों पर एक विचार-व्यवस्था है , जो तुच्छ स्वार्थपूर्ति हेतु अकारण ही परिवार या समाज में विघटन व दुःख के कारक हो जाते हैं !
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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