MESSENGER OF ART

  • Home
  • About Us
  • Contact Us
  • Contribute Here
  • Home
  • इनबॉक्स इंटरव्यू
  • कहानी
  • कविता
  • समीक्षा
  • अतिथि कलम
  • फेसबुक डायरी
  • विविधा

2.26.2017

'आर्केस्ट्रा पर नाचती लड़कियां'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     26 February     कविता     No comments   

दुनिया तेजी से बदल रही है, सभ्यता के शुरुआत से लेकर 21 वीं सदी तक 'कुँवारी-महिलाओं' के माँ बनने पर 'चरित्रहीन' की उपाधि मिलती हैं , पर दूजे तरफ अगर पुरुष 'कुँवारे पिता' बने तो हॉलीवुड , बॉलीवुड और राजनेता तक इन्हें शुभकामनायें देते-देते थकते  नहीं हैं ! क्या समाज इतना गिर गया है कि शब्दों के जाल बन सृष्टि की भीनी कलाओं पर भी दाग लगा देती हैं --एक अनोखा-विस्मय प्रश्न है अभीतक ! मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट  के आज के अंक में श्रीमान् विहाग वैभव की कुछ नारीवादी कविता  'अनारकली ऑफ़ आरा' के विहित आर्केस्ट्रा की मज़बूरी को  अपनी अद्भुत लेखनी से न केवल हमें विभोर करते हैं, अपितु उद्भूत भी करते हैं, आर्केस्ट्रा में उदात्त-कला भी नृत्य करते दिखाई पर रही हैं !आइये इसे हम पढ़ते हैं--------




आर्केस्ट्रा पर नाचती लड़कियां 

जमीन काठ की हुई
आसमान कपड़े का
और निर्लज्जता के सारे मानक ध्वस्त करके खड़े
पुरुषों के आँखों के मंच पर उतर आयीं
आर्केस्ट्रा पर नाचती लड़कियां

जैसे गोबर पाथना एक कला है
घास काटना एक कला है
गेहूं बोना एक कला है
रोटी बनाना एक कला है
वैसे ही, नाचना एक कला है
लेकिन आर्केस्ट्रा पर नाचती लड़कियां
कला से कोसों दूर हैं
मजबूरियों का सल्फास घोंटकर
आत्मा की सारी इमारतों में
समझौते का बम फोड़
बदनदिखाऊ हरकतों से
मर्दों को मस्त कर देना कोई कला नहीं

जब गाँव की घरेलू महिलाएं
पूरे दिन की थकन को
बिस्तर पर धकेल
चित्त पड़ जाती हैं
और अगली भोर तक के लिए
मर जाती हैं
ठीक उसी घड़ी
उनके नामित मर्द
चोर कदम
या कभी कभी धड़ल्ले से भी
निकलते हैं आर्केस्ट्रा देखने
बाप, चाचा,भाई, भतीजा
सब साथ देखते हैं आर्केस्ट्रा
अतः सिर्फ एक पुरुष देखता है आर्केस्ट्रा

भयानक अश्लील इशारों की धनी
ये आर्केस्ट्रा पर नाचती लड़कियां
अपने एक झुकाव से
उपस्थित मर्द के मर्दानेपन को
नचा देने की काबिलियत रखती हैं

ये लड़कियां आखिर कौन होती हैं ?
कोई मुसहर,धोबी,पासी,खटिक
गोंड, मीना, चमाइन, मियाईन
या सिर्फ एक लड़की !
रात के साथ बदलता रहता है नाम इनका
स्थायी पहचान
इनके होने के लिए घातक है

ये लड़कियां कहाँ से आती हैं ?
नहीं, धरती फाड़कर नही निकलती ये लड़कियां
ये लड़कियां उपजती हैं
बिहार , मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश , राजस्थान के
सुदूर बंजर इलाकों में
या अनाथालयों की प्रयोगशाला में
समय की परखनली में
एक बच्ची से एक कमसिन लड़की
तैयार की जाती है
और फिर सौंप दी जाती है
नेताओं , बाबाओं, इंजीनियरों , पुलिसों के साथ
समाज- सेवा में
जहाँ एक ग्लास ज़िन्दगी को
दो चम्मच जहर के साथ रोज घोटना पड़ता है

ध्यान से देखिये इन्हें
फिर सोचिये जरा
ये लड़कियां क्या नही कर सकती ?
ये लड़कियां अध्यापक हो सकती हैं
ये लड़कियां वकील हो सकती हैं
ये लड़कियां डॉक्टर हो सकती हैं
ये लड़कियां लेखक हो सकती हैं
ये लड़कियां फोटोग्राफर , फैशन डिजाइनर
प्रशासक, पुलिस हो सकती हैं
ये लड़कियां वह सबकुछ हो सकती हैं
जो एक लड़की हो सकती है ।

साथियों! हाथ बढ़ाओ
इन्हें काठ की जमीन से अपनी हथेली पर उतार
पलकों पर बैठा लो
यही हमारे ज़िन्दा होने का सुबूत होगा
अन्यथा
आर्केस्ट्रा देखते पुरुषों के
सख्त विशेषांगों की कसम
अगर ये लड़कियां यूँ ही नाचती रह गयीं
तो देखना
इनके पाँव से ऐसा छाला फूटेगा
कि देवताओं को भी कोढ़ हो जायेगा ।


दुनिया की सबसे हसीन औरत

समुद्री लहरों का कोई अक्खड़ बंजारा कबीला 
चूमकर माथा बस गया है वहीं अभी के अभी
लम्बाई औसत से अधिक नीची होने के बावजूद 
आवाज उम्मीद से अधिक ऊँची है 
नाक थोड़ी तिरछी है मगर
किसी भी धूर्त विषैली मुस्कान पर फूलने में माहिर 
सांवले से अधिक सांवले उसके होंठ 
बाख़ुशी विरोध के तीखे शब्द ढो रहे हैं
इसकी आँखे , उफ्फ़..
सदियों से जमे ताजे खून के कुण्ड से 
नहाकर निकली सी , बिल्कुल लाल आँखें

ये औरत एकसाथ 
मेरी माँ, बहन, दोस्त और प्रेमिका न होती तो 
मैं इसे समसारा कहता और चूम लेता
लेकिन जब नाम बंधन का पहला हथियार हो तो 
मैं नाम देने से बचता हूँ फिलहाल

समसारा ने परिचय कराते हुए बताया कि 
इसे हर गलत बात पर 
मुठ्ठियों के कस जाने और 
पूरे बदन के थरथराने लगने की 
एक खास तरह की बीमारी है

अब मैं यह जानकर 
आश्चर्यचकित उत्सुकता और ख़ुशी से भर पड़ा हूँ 
कि मैं दुनिया की सबसे हसीन औरत के सामने खड़ा हूँ । 


अमेरीकी राष्ट्रपति का स्वागत वक्तव्य 

यह सन् सोलह के
नवम्बर का दूसरा बुधवार है 
और अब 
वैश्विक इतिहास के 
उग्रकाल के पहले दिन में 
तुम्हारा स्वागत है समसारा !

हालाँकि मुझे कहते हुए अफ़सोस हो रहा है 
पर ये मेरी दिमागी बदहाली के लिए खुराक है 
कि अब तुम अपने मुस्लिम दोस्तों से नहीं मिल सकोगी 
ऐसा करने पर 
तुम्हें देशद्रोही करार करते मुझे अच्छा नहीं लगेगा

अब तुम्हें मुझे प्यार करना ही होगा 
क्यूँ कि ऐसा मैं चाहता हूँ

आओ मेरे साथ तुम भी स्वागत करो 
और देखो कि 
मेरे आने से 
बारूदों की बाँहें फिर से फड़कने लगी हैं 
बन्दूकों की फसल में बहार आने को ही है 
और एक बार फिर से 
जंग खाते मिसाइलों को लग गए पंख

मैं चाहता हूँ कि विभिन्न देशों से 
बम के विभिन्न नमूने लाये जाएं
जिन्हें पिघलाकर 
मेरे स्वागत योग्य ताज बनाया जाये

तुम सैनिकों की उदास होती पत्नियों का ध्यान मत करो 
प्यार को मत कोसो समसारा 
आखिर हत्या कब तक 
अपराध बने रहने के लिए शापित रहेगा 
मैं हत्या को शौक घोषित करूँगा 
और तुम्हारे अन्य सभी प्रेमियों को मार दूँगा 
कृपया तुम उन्हें भूल जाना

उदार राष्ट्रवाद किसी की बपौती नहीं है 
मैं उसे सोने के शराब में मिलाकर पी जाऊँगा 
नीतियों की पीठ से दीवाल तैयार कर 
आलीशान हरम बनाऊंगा 
सुनिश्चित करूँगा स्थान 
गर्भपाती रोजगारियों के लिए

समसारा !
इस दुनिया ने अभी नस्लीय युध्द में मरे 
इंसानों की अधजली टंगड़ियां नहीं खायी है 
मेरे धर्म समर्थक लोगों ने अभी नहीं लगायी है 
अपनी आँखों में वो काजल 
जो विधर्मियों की चिता से उठती 
खूबसूरत धुँए से बनती है 
मेरे लोगों ने नही सुना है अभी वो संगीत 
जो विरोधियों की छटपटाती चीखों का राग अलापती है

समसारा मैं इस दुनिया को 
बहुत कुछ पहली बार देने वाला हूँ 
जिसके लिए मेरा स्वागत होना ही चाहिए

और अन्त में सबसे जरूरी बात
तुम्हें कभी नहीं पढ़नी चाहिए कवितायेँ 
लिखनी तो बिल्कुल भी नहीं चाहिए । 

© विहाग वैभव

नमस्कार दोस्तों ! 


'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।

  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg
Newer Post Older Post Home

0 comments:

Post a Comment

Popular Posts

  • 'रॉयल टाइगर ऑफ इंडिया (RTI) : प्रो. सदानंद पॉल'
  • 'महात्मा का जन्म 2 अक्टूबर नहीं है, तो 13 सितंबर या 16 अगस्त है : अद्भुत प्रश्न ?'
  • "अब नहीं रहेगा 'अभाज्य संख्या' का आतंक"
  • "इस बार के इनबॉक्स इंटरव्यू में मिलिये बहुमुखी प्रतिभाशाली 'शशि पुरवार' से"
  • 'बाकी बच गया अण्डा : मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट'
  • "प्यार करके भी ज़िन्दगी ऊब गई" (कविताओं की श्रृंखला)
  • 'जहां सोच, वहां शौचालय'
  • "शहीदों की पत्नी कभी विधवा नहीं होती !"
  • 'कोरों के काजल में...'
  • "समाजसेवा के लिए क्या उम्र और क्या लड़की होना ? फिर लोगों का क्या, उनका तो काम ही है, फब्तियाँ कसना !' मासिक 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में रूबरू होइए कम उम्र की 'सोशल एक्टिविस्ट' सुश्री ज्योति आनंद से"
Powered by Blogger.

Copyright © 2025 MESSENGER OF ART