आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट लेकर आई है, 'इनबॉक्स इंटरव्यू' की अपनी 'चौथी कड़ी' में 'लेडी चेतन भगत' की चिर-परिचित भूमिका में लीन सुश्री विभा नाशीन और उनकी उपलब्धियों से रु-ब-रु कराने के सोद्देश्यत: । सुश्री नाशीन की दो उपन्यास "Falling in love with life...once again!!" और ''No Longer Caged'' पाठकों को काफी भायी है और काफी धमा-चौकड़ी मचाई है ।
इस इंटरव्यू के पूर्व से तय 14 बिंदुओं के फॉर्मेट में सभी के विस्तीर्ण उत्तर से 'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' के माध्यम से तमाम पाठकों, समीक्षकों, आलोचकों और कद्रदानों से सुश्री नाशीन रु-ब-रु हुई हैं । आइये, हम उनकी इंटरव्यू को पढ़ते हैं:-
प्र.(1.) आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:- मेरा कार्य क्षेत्र साहित्य और दूरसंचार से संबंधित है। यूँ कहिये लिखना जुनून है, जिससे जीवित हूँ और दूरसंचार तो जीविका है। अभी तक अंग्रेजी भाषा में दो उपन्यास लिख चुकी हूँ। छोटे-छोटे प्रेरक पद्य लिखना, शायरी लिखना, कविताएँ लिखना और सामाजिक कार्य में अपना अनुदान देना मुझे संतोषजनक लगता है । व्यव्यसायिक तौर से दूरसंचार के क्षेत्र में इस समय मैनेजर के रूप में कार्यरत्त हूँ । इसके अलावा मुझे रंगमंच का शौक है और तीन नाटकों में मुख्य भूमिकाएँ निभा चुकी हूँ।
प्र.(2.) आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:- मेरी पैदाइश और परवरिश दिल्ली में ही हुई है । अपने माता पिता की दूसरी संतान हूँ। पिताजी रिटायरमेंट तक सरकारी कार्य में कार्यरत रहे और माँ, आजीवन गृहिणी रही । माँ जहाँ पिताजी का हाथ बंटाने के लिए घर से ही एक क्रेच चलाती थी। मेरा बचपन क्रेच के बच्चों के बीच बीता। सीमित आय, घर में 18-20 बच्चों से भरे क्रेच के बीच मैंने स्कूल से उच्च शिक्षा प्राप्त की । उसके बाद 'सेक्रेटेरियल प्रैक्टिस' में डिप्लोमा ली । डिप्लोमा प्राप्ति के तुरंत बाद ही नौकरी शुरू की और कुछ एक साल में विवाह करके घर बसाया । जटिल परिस्थितियों के चलते विवाह के १४ साल बाद हम लोगो ने पथ-विच्छेद का फैसला लिये । इन सालो में जीवन के कई कठिन परिस्थितियों का सामना किया, जिसने मेरे व्यक्तित्व को काफी उभारा, मुझे सशक्त किया और वो रूप दिया जो आज मेरा है - स्वतंत्र, स्वावलंबी और संवेदनशील की । मुझे ख़ुशी है कि जीवन कि प्रतिवादित-दशाओं ने एक अत्युत्तम हीरे की मानिंद निखार दिया मुझे ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:- जो मैंने लिखा कि जीवन की कठिन परिस्थितियों ने ही मेरे व्यक्तित्व को निखारा। समय के साथ-साथ मैंने स्वयं झेली कठिनाइयों को दूसरों के प्रेरणास्वरुप उपयोग करने का निर्णय लिया । उनके बारे में लिखा और फिर facebook के ज़रिये, WhatsApp के ज़रिये और बाद में अपनी दोनों उपन्यास के ज़रिये लोगो को प्रोत्साहित किया। कहीं न कहीं पाठकों को उनके ज़रिये मेरी और पाठकों के आपबीती व्यक्त होती नज़र आई और जब ये जान पाए कि मैंने उन सब परिस्थितियों के मध्य अपने आप को दृढ किया है, अवस्थित किया है तो ये कार्य काफी सराहा गया।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:- साधारणत:, जब भी आप कुछ अलग करना चाहते हैं, तो विशेषकर आप अपने अनुभवों को बेझिझक होकर समाज के हित के लिए उपयोग करना चाहते हैं, तो ये वाजिबन है कि आपके आस-पास के लोग, संबधित मित्र इत्यादि उसके हित में नहीं होते हैं, क्योंकि यह निश्चित है कि हवा के वेग के साथ बहने में कोई बुराई नहीं है । पर यह भी बात निश्चित है कि हवा के विरोध में बहने के लिए मन को तटस्थ रखना ज़रूरी है और अपने जज्बे को हर समय ऊर्जस्विन रखना ज़रूरी है ।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:- ईश्वर कि कृपा से ऐसा कभी अनुभव नहीं हुआ ।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:- मैंने एक बार लिखा था कि 'कोरे पन्ने की झलक मुझे प्रेरणा देती है' । लेखन के ज़रिये अपने हृदय के भावों को व्यक्त करने में मदद मिलती है । 'कला' किसी भी रूप में क्यों ना हो, चाहे वो लेखन हो, गायन हो, वादन हो, चित्रण हो... ये सभी आपके मन में चलने वाली वेदनाओं और भावों को व्यक्त करने का जरिया है ।
मेरे पारिवारिक सदस्यों ने इस कार्य में मेरा पूरा साथ दिया है । मेरे माता,पिता, और मेरी संतान मुझे हमेशा बहुत प्रोत्साहित करते रहते हैं ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:- मेरा परिवार और मेरे घनिष्ठ मित्र मेरे सहयोगी रहे हैं । उनके उत्साहवर्धन हमेशा मेरे साथ हैं ।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:- भारतीय संस्कृति प्रारंभ से ही अपने सकरात्मक मूल्यों के लिए जानी जाती है। अपने लेखन और जीवन-शैली के ज़रिये मैं उन्ही मूल्यों का प्रोज्ज्वलित करने की चेष्टा करती हूँ।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:- भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने का ज़िम्मा हम सभी भारतवासियों का है और मैं विश्वास करती हूँ कि एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए सर्वप्रथम हम सबकी भावनायें शुद्ध होनी चाहिए । मैं अपने लेखन और पारस्परिक विचार-विमर्श के ज़रिये भावनाओं को उच्चता प्रदान करने की चेष्टा करती रहती हूँ।
प्र.(10.) इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:- आर्थिक रूप से तो नहीं, पर भावनात्मक रूप से और वैचारिक रूप से अपने मित्रो से काफी सहयोग मिला है ।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:- नहीं ।
प्र.(12.) कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:- मेरा अधिकतम कार्य इन्टरनेट पर उपलब्ध है Stop Acid Attack के “Blackrose कैंपेन” में मेरा लेखन पढ़ा जा सकता है।
प्र.(13.) इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:- जनकपुरी स्थित दिल्ली हाट के “Summer Festival” में मेरे लेखन को पुरस्कृत किया गया । “अमर उजाला” प्रकाशन ने मेरे रंगमच से सम्बंधित उपलब्धियों को सराहा है ।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:- मेरे कार्य मूलतः दिल्ली से संचालित हो रहे है । समाज और राष्ट्र के लिए यही सन्देश देना चाहूंगी कि कोई भी कार्य छोटा या बड़ा उसकी नियति या प्रयोजन से होता है । आप छोटे-छोटे कार्यो को अच्छी नियत से करे, वही सबसे बड़ा अवदान हो जाता है। दूसरा, स्वप्नों को छोटा मत समझिये – अगर स्वप्न देखते हैं, तो उसको पूरा करने के लिए आगे आइये । ईश्वर अपने आप पथ प्रदर्शित करेंगे ।
"आप इसी तरह लेखन करती रहें और रचनात्मक सहयोग द्वारा गंभीर मुद्दे को उठाटी हुई, यूँ ही शाही-अंदाज में हमेशा खुश रहे । सार्थ शुभकामना !"-- मैसेंजर ऑफ़ आर्ट ।
मित्रों !
इस इंटरव्यू के पूर्व से तय 14 बिंदुओं के फॉर्मेट में सभी के विस्तीर्ण उत्तर से 'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' के माध्यम से तमाम पाठकों, समीक्षकों, आलोचकों और कद्रदानों से सुश्री नाशीन रु-ब-रु हुई हैं । आइये, हम उनकी इंटरव्यू को पढ़ते हैं:-
प्र.(1.) आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:- मेरा कार्य क्षेत्र साहित्य और दूरसंचार से संबंधित है। यूँ कहिये लिखना जुनून है, जिससे जीवित हूँ और दूरसंचार तो जीविका है। अभी तक अंग्रेजी भाषा में दो उपन्यास लिख चुकी हूँ। छोटे-छोटे प्रेरक पद्य लिखना, शायरी लिखना, कविताएँ लिखना और सामाजिक कार्य में अपना अनुदान देना मुझे संतोषजनक लगता है । व्यव्यसायिक तौर से दूरसंचार के क्षेत्र में इस समय मैनेजर के रूप में कार्यरत्त हूँ । इसके अलावा मुझे रंगमंच का शौक है और तीन नाटकों में मुख्य भूमिकाएँ निभा चुकी हूँ।
प्र.(2.) आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:- मेरी पैदाइश और परवरिश दिल्ली में ही हुई है । अपने माता पिता की दूसरी संतान हूँ। पिताजी रिटायरमेंट तक सरकारी कार्य में कार्यरत रहे और माँ, आजीवन गृहिणी रही । माँ जहाँ पिताजी का हाथ बंटाने के लिए घर से ही एक क्रेच चलाती थी। मेरा बचपन क्रेच के बच्चों के बीच बीता। सीमित आय, घर में 18-20 बच्चों से भरे क्रेच के बीच मैंने स्कूल से उच्च शिक्षा प्राप्त की । उसके बाद 'सेक्रेटेरियल प्रैक्टिस' में डिप्लोमा ली । डिप्लोमा प्राप्ति के तुरंत बाद ही नौकरी शुरू की और कुछ एक साल में विवाह करके घर बसाया । जटिल परिस्थितियों के चलते विवाह के १४ साल बाद हम लोगो ने पथ-विच्छेद का फैसला लिये । इन सालो में जीवन के कई कठिन परिस्थितियों का सामना किया, जिसने मेरे व्यक्तित्व को काफी उभारा, मुझे सशक्त किया और वो रूप दिया जो आज मेरा है - स्वतंत्र, स्वावलंबी और संवेदनशील की । मुझे ख़ुशी है कि जीवन कि प्रतिवादित-दशाओं ने एक अत्युत्तम हीरे की मानिंद निखार दिया मुझे ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:- जो मैंने लिखा कि जीवन की कठिन परिस्थितियों ने ही मेरे व्यक्तित्व को निखारा। समय के साथ-साथ मैंने स्वयं झेली कठिनाइयों को दूसरों के प्रेरणास्वरुप उपयोग करने का निर्णय लिया । उनके बारे में लिखा और फिर facebook के ज़रिये, WhatsApp के ज़रिये और बाद में अपनी दोनों उपन्यास के ज़रिये लोगो को प्रोत्साहित किया। कहीं न कहीं पाठकों को उनके ज़रिये मेरी और पाठकों के आपबीती व्यक्त होती नज़र आई और जब ये जान पाए कि मैंने उन सब परिस्थितियों के मध्य अपने आप को दृढ किया है, अवस्थित किया है तो ये कार्य काफी सराहा गया।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:- साधारणत:, जब भी आप कुछ अलग करना चाहते हैं, तो विशेषकर आप अपने अनुभवों को बेझिझक होकर समाज के हित के लिए उपयोग करना चाहते हैं, तो ये वाजिबन है कि आपके आस-पास के लोग, संबधित मित्र इत्यादि उसके हित में नहीं होते हैं, क्योंकि यह निश्चित है कि हवा के वेग के साथ बहने में कोई बुराई नहीं है । पर यह भी बात निश्चित है कि हवा के विरोध में बहने के लिए मन को तटस्थ रखना ज़रूरी है और अपने जज्बे को हर समय ऊर्जस्विन रखना ज़रूरी है ।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:- ईश्वर कि कृपा से ऐसा कभी अनुभव नहीं हुआ ।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:- मैंने एक बार लिखा था कि 'कोरे पन्ने की झलक मुझे प्रेरणा देती है' । लेखन के ज़रिये अपने हृदय के भावों को व्यक्त करने में मदद मिलती है । 'कला' किसी भी रूप में क्यों ना हो, चाहे वो लेखन हो, गायन हो, वादन हो, चित्रण हो... ये सभी आपके मन में चलने वाली वेदनाओं और भावों को व्यक्त करने का जरिया है ।
मेरे पारिवारिक सदस्यों ने इस कार्य में मेरा पूरा साथ दिया है । मेरे माता,पिता, और मेरी संतान मुझे हमेशा बहुत प्रोत्साहित करते रहते हैं ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:- मेरा परिवार और मेरे घनिष्ठ मित्र मेरे सहयोगी रहे हैं । उनके उत्साहवर्धन हमेशा मेरे साथ हैं ।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:- भारतीय संस्कृति प्रारंभ से ही अपने सकरात्मक मूल्यों के लिए जानी जाती है। अपने लेखन और जीवन-शैली के ज़रिये मैं उन्ही मूल्यों का प्रोज्ज्वलित करने की चेष्टा करती हूँ।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:- भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने का ज़िम्मा हम सभी भारतवासियों का है और मैं विश्वास करती हूँ कि एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए सर्वप्रथम हम सबकी भावनायें शुद्ध होनी चाहिए । मैं अपने लेखन और पारस्परिक विचार-विमर्श के ज़रिये भावनाओं को उच्चता प्रदान करने की चेष्टा करती रहती हूँ।
प्र.(10.) इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:- आर्थिक रूप से तो नहीं, पर भावनात्मक रूप से और वैचारिक रूप से अपने मित्रो से काफी सहयोग मिला है ।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:- नहीं ।
प्र.(12.) कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:- मेरा अधिकतम कार्य इन्टरनेट पर उपलब्ध है Stop Acid Attack के “Blackrose कैंपेन” में मेरा लेखन पढ़ा जा सकता है।
प्र.(13.) इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:- जनकपुरी स्थित दिल्ली हाट के “Summer Festival” में मेरे लेखन को पुरस्कृत किया गया । “अमर उजाला” प्रकाशन ने मेरे रंगमच से सम्बंधित उपलब्धियों को सराहा है ।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:- मेरे कार्य मूलतः दिल्ली से संचालित हो रहे है । समाज और राष्ट्र के लिए यही सन्देश देना चाहूंगी कि कोई भी कार्य छोटा या बड़ा उसकी नियति या प्रयोजन से होता है । आप छोटे-छोटे कार्यो को अच्छी नियत से करे, वही सबसे बड़ा अवदान हो जाता है। दूसरा, स्वप्नों को छोटा मत समझिये – अगर स्वप्न देखते हैं, तो उसको पूरा करने के लिए आगे आइये । ईश्वर अपने आप पथ प्रदर्शित करेंगे ।
"आप इसी तरह लेखन करती रहें और रचनात्मक सहयोग द्वारा गंभीर मुद्दे को उठाटी हुई, यूँ ही शाही-अंदाज में हमेशा खुश रहे । सार्थ शुभकामना !"-- मैसेंजर ऑफ़ आर्ट ।
नमस्कार !!
सर्वप्रथम आप सभी प्रबुद्धजनों को भारतीय संस्कृति निहित महाशिवरात्रि की हार्दिक और अनंत शुभकामनाएं । 'मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com
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