आजकल प्रेम-सन्देश भेजने के अनेक सोशल-मीडियाई नुस्खें हैं । कुछ दशक पहले तक प्यार के जो इजहार होते थे, वो तरीके अब है ही नहीं ! परंतु दशक पुराने नुस्खे को अभी के परिप्रेक्ष्य में अहसास पाकर सिर्फ अनुभूति ही महसूस कर सकते हैं !अरे, वही तरीके -- दिमाग में नहीं आया क्या ? पतंग पर I LOVE U लिखकर पसंदीदा लड़की के घर पर कटी पतंग को गिराना और यदि होने वाली 'प्रेमिका' को पतंग-प्रेमी नहीं चाहिए तो उन्हें दिखाते इकतरफा प्रेम दर्शाने के प्रेमी 'पतंग' को ऐसे फाड़ते हैं कि कहिये मत-- पाठकगण काफी समझदार हैं, समझ सकते हैं ! कुछ यादें हमें पतंगों -से विचलित कर देते हैं । हम ये सोचने लगते हैं , काश ! हम फिर उसी उम्र में पहुँच जायें , पर ऐसा नहीं हो पाता है, क्योंकि 'कटी-पतंग' प्रेम के डोर से वैसे ही बिछुड़ जाती हैं, जैसी कि यादें यानी खुशियाँ भरा दुःख अथवा दुःखयारी ख़ुशी ! लो, मैं भी कहाँ आ फंसा ? चलिए आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट आज आपको मिलाते हैं, कवि अरुण शर्मा और उनकी कविता 'पतंग' से ! तो आइये पढ़ते हैं , उनकी कविता........
पतंग
सच में !
आज कल जिंदगी भी
एक पतंग हो गई है
इसे उड़ान भरने के लिए
मन मुआफिक हवाएं नहीं मिलती,
वहीं सांसें तो मिलती
पर वफाएं नहीं मिलती !
दो रुपये की पतंगों को
लूटने के लिए
दो किलोमीटर भागते थे,
क्योंकि खुशियाँ मिलती थी
तो भागना आज भी याद है,
पर खुशियाँ पाने की
आज भी फरियाद है !
दौड़ती-भागती जिंदगी की
आपा-धापी में लोग
पतंगों को भूल गए
क्योंकि / उन्हें परेशानियाँ मिलती हैं ,
अब तो मान लो पतंग की तरह,
हमारा अस्तित्व भी है कुछ
जो छोड़ गयी है, नयी निशानियाँ !
हमें भी कभी हवाओं में
कभी फिजाओं में,
तो कभी दिल से ऊंची उड़ान
भरनई चाहिए,
फिर कट कर / कहीं दूर गिरना चाहिए ।
मैं कटने के लिये तैयार हूँ
कोई लूट ले तो, ...और अच्छा !
हमें भी तब मिल जाएगा,
अपना बचपना !
वो आजादी और वो मजा भी
जो अब फ़ख़्त घड़ी के सुइयों में ही
सिमट कर रह गया है !
पतंग
सच में !
आज कल जिंदगी भी
एक पतंग हो गई है
इसे उड़ान भरने के लिए
मन मुआफिक हवाएं नहीं मिलती,
वहीं सांसें तो मिलती
पर वफाएं नहीं मिलती !
दो रुपये की पतंगों को
लूटने के लिए
दो किलोमीटर भागते थे,
क्योंकि खुशियाँ मिलती थी
तो भागना आज भी याद है,
पर खुशियाँ पाने की
आज भी फरियाद है !
दौड़ती-भागती जिंदगी की
आपा-धापी में लोग
पतंगों को भूल गए
क्योंकि / उन्हें परेशानियाँ मिलती हैं ,
अब तो मान लो पतंग की तरह,
हमारा अस्तित्व भी है कुछ
जो छोड़ गयी है, नयी निशानियाँ !
हमें भी कभी हवाओं में
कभी फिजाओं में,
तो कभी दिल से ऊंची उड़ान
भरनई चाहिए,
फिर कट कर / कहीं दूर गिरना चाहिए ।
मैं कटने के लिये तैयार हूँ
कोई लूट ले तो, ...और अच्छा !
हमें भी तब मिल जाएगा,
अपना बचपना !
वो आजादी और वो मजा भी
जो अब फ़ख़्त घड़ी के सुइयों में ही
सिमट कर रह गया है !
नमस्कार दोस्तों !
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