मानव पृथ्वी पर एक ऐसा जटिल प्राणी हैं, जिनके बारे में मानव ही खुद कहते है,'जितना वे पाते हैं, उससे 100 गुना अधिक पाने की वे इच्छा रखते हैं ! यह कथन पूर्णतः सत्य है, लेकिन यह सत्य क्या हैं ? क्या महात्मा गांधीजी की आत्मकथा 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' सत्य है , पता नहीं ! लेकिन आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट लेकर आई है कवयित्री निक्की पुष्कर की कवितायेँ , जिन्हें पढ़ने के बाद लगेगा 'सत्य' क्या है ? आइये पढ़िए:-
"सच"
सच को जितना दबाओ
उसकी जड़ उतनी ही मजबूत हो जाती है
और फिर वह उभरता है,
पहले से अधिक शक्तिशाली रूप मे..!
सच दूब की तरह,
अपनी क़ब्र से जीवित हो जाता है
इतिहास गवाह है
सच को जितनी बार मारने की ।
कोशिश की गई वो
पर उतनी बार "अमर"हुआ है,
कभी "ईसा" के रुप में
कभी"मीरा"के रूप मे ..!
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"मैं"
तुम्हारी कला के सम्मुख
सदैव नतमस्तक मैं ...!
तुम्हारा सुन्दर शब्द--संयोजन,
अलंकारिक-- प्रस्तुति
आह...कितना आह्ललाद पूर्ण ।
सदैव गदगद होती मैं...!
तुम्हारा अभिनय
मंत्रमुग्ध कर देने वाला
संवाद-अदायगी
कितना स्वपनिल
सदैव हतप्रभ मैं...!
तुम्हारे तेज से चुंधयाती आँखें
गुदगुदाता हृदय
सदैव प्रफुल्लित मैं ...!
इस सबके बाद भी,
तुम्हारे 'आभामंडल 'के सम्मुख
कभी न धूमिल होने वाला
मेरा "व्यक्तित्व"
सदैव गौरवान्वित "मैं"...!
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नमस्कार दोस्तों !
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