"उपन्यासकार वेदप्रकाश शर्मा को श्रद्धांजलि"
हिंदी जासूसी उपन्यासकारों में प्रमुख स्तम्भ वेदप्रकाश शर्मा नहीं रहे। हालाँकि वे पॉकेट बुक्स व लुगदी साहित्य के पुरोधा थे, तथापि उनके उपन्यास 'वर्दी वाला गुंडा' की लगभग 10 करोड़ प्रतियाँ बिकी थी, जो किसी भी भारतीय नामवरी-साहित्यकारों की कृतियों के लिए संभव नहीं रहा है। पाठकों में रोचकता लाने के मामले में उनके उपन्यास गोदान, मैला आँचल आदि से कतई कम नहीं है ।
इधर ही पटना पुस्तक मेला से लौटते वक़्त राजेंद्रनगर टर्मिनल के बुकस्टॉल में वेदप्रकाश शर्मा जी के जासूसी उपन्यास 'देवकांता-संतति' की सभी 14 पार्ट देखा और फ़ौरन खरीद लिया, जो कि मैं कई सालों से खोज रहा था । एक तिलिस्मी, रहस्यमयी और जासूसी लेखक का जादुई अंदाज़ में परलोक सिधार जाना, न केवल दिल में टीस उभार देता है, अपितु आँखों में अश्रु भी ला देते हैं । मैंने उनके लगभग नॉवेल्स को पढ़ा है । वे व्यक्तिगत रहस्यमयी भी हैं, क्योंकि अपने नाम के साथ-साथ वे केशव पंडित के नाम से भी सराहे गए ! एक पाठक की तरफ से ऐसे धुरन्धर लेखक को श्रद्धाञ्जलि देते हुए हम पाठकों को यह हमेशा अफ़सोस रहेगा कि उनके सभी नॉवेल के पात्र-नायक हर परिस्थितियों में विजय प्राप्त कर लेते थे, परंतु हमारे प्रिय लेखक कैंसर को मात देने में पीछे कैसे रह गए ?
@टी. मनु (ब्लॉगर-सोशल एक्टिविस्ट) ।
हिंदी जासूसी उपन्यासकारों में प्रमुख स्तम्भ वेदप्रकाश शर्मा नहीं रहे। हालाँकि वे पॉकेट बुक्स व लुगदी साहित्य के पुरोधा थे, तथापि उनके उपन्यास 'वर्दी वाला गुंडा' की लगभग 10 करोड़ प्रतियाँ बिकी थी, जो किसी भी भारतीय नामवरी-साहित्यकारों की कृतियों के लिए संभव नहीं रहा है। पाठकों में रोचकता लाने के मामले में उनके उपन्यास गोदान, मैला आँचल आदि से कतई कम नहीं है ।
इधर ही पटना पुस्तक मेला से लौटते वक़्त राजेंद्रनगर टर्मिनल के बुकस्टॉल में वेदप्रकाश शर्मा जी के जासूसी उपन्यास 'देवकांता-संतति' की सभी 14 पार्ट देखा और फ़ौरन खरीद लिया, जो कि मैं कई सालों से खोज रहा था । एक तिलिस्मी, रहस्यमयी और जासूसी लेखक का जादुई अंदाज़ में परलोक सिधार जाना, न केवल दिल में टीस उभार देता है, अपितु आँखों में अश्रु भी ला देते हैं । मैंने उनके लगभग नॉवेल्स को पढ़ा है । वे व्यक्तिगत रहस्यमयी भी हैं, क्योंकि अपने नाम के साथ-साथ वे केशव पंडित के नाम से भी सराहे गए ! एक पाठक की तरफ से ऐसे धुरन्धर लेखक को श्रद्धाञ्जलि देते हुए हम पाठकों को यह हमेशा अफ़सोस रहेगा कि उनके सभी नॉवेल के पात्र-नायक हर परिस्थितियों में विजय प्राप्त कर लेते थे, परंतु हमारे प्रिय लेखक कैंसर को मात देने में पीछे कैसे रह गए ?
@टी. मनु (ब्लॉगर-सोशल एक्टिविस्ट) ।
नमन वेद जी को
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