पुणे के आगा खां पैलेस जेल में महात्मा गाँधी ने ''आरोग्य की कुंजी'' नामक पुस्तिका लिखी, जिन्हें मैं एकाध घंटे में पढ़ डाला ।
गांधीजी किसी परिपक्व डॉक्टर की भाँति 'आरोग्य की कुंजी' में डॉक्टरी नुस्खे बताते नज़र आये हैं ! वे न LMF रहे हैं, न MBBS ; न वे Ph.D थे, न ही D.Litt. धारी ही ! सिर्फ 'शारीरिक परिचय' के बिनाह पर ही उन्होंने 'आरोग्य' किसे कहते हैं--- इसे समझाने का सफल प्रयास किये हैं ! वे मानव-शरीर के अनोखे-भेद कुशल डॉक्टर की तरह शल्क की भाँति उधेड़ते चले जाते हैं । वे यही नहीं रुकते, बल्कि आगे बढ़ते हैं और हवा, पानी, शारीरिक-खुराक, मसाले, चाय, मादक-पदार्थ, अफीम, ब्रह्मचर्य, पृथ्वी, आकाश, तेज, चाय, कॉफ़ी, कोको, ताड़ी तक की यथास्थिति जानकारी देते हैं और संयम को ब्रह्मचर्य का मूल अर्थ बताते हैं ।
इतना ही नहीं, गांधीजी 'संयम' को सबसे सही बताते हुए इनका साधारण अर्थ यह बताते हैं कि "स्त्री संग का त्याग और वीर्य संचय की साधना ही ब्रह्म है"।तभी तो परमब्रह्म में न टिकना ही वीर्यनाश के कारण हैं । वे आगे बताते हैं कि वीर्य का उपयोग भोगने के लिए नहीं, अपितु आवश्यक्तानुकूल सन्तानोत्तपति के लिए हो, तो ज्यादा श्रेयस्कर है !
ऐसा कहने के बाद वे कहते हैं कि चाहे लोग मेरी बातों को हँसी में उड़ा दे, लेकिन इनका पालन करने से हर रोगों का पटाक्षेप हो सकता है ! गांधी जी अपनी कब्जियत के बारे में हिंदी फिल्म 'पीकू' में अमिताभ बच्चन की भाँति प्रत्येक से चर्चा करते नजर आते हैं। जब वे घर्षण-स्नान पर आते हैं, तो झूठ कहते नजर आते हैं । इस स्नान के बारे में मैंने यह वाक्य पहली बार सुना है। उनकी 'आरोग्य की कुंजी' आगे बढ़ते हुए हमारी भारतमाता पर और भारत की मिट्टी का गुणगान करते हुए और बिच्छु की यादों को ताजा करते हुए खो जाते हैं.....।
गांधीजी से जुड़ी हर वस्तु और हर वस्तुस्थिति हमेशा प्रासंगिक रहेंगे ! ध्यातव्य है, बिहार में जहाँ पहली बार गांधीजी के कदम पड़े थे व उनपर खुले मैदान में मुकद्दमे की जहाँ सुनवाई थी, उस जगह मैं भी गया हूँ। इस सौवें वर्ष में गांधीजी और उनसे प्रीत के शतक पूरा होने पर बधाई और सादर स्मरण।
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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