"कब्रिस्तानों की घेराबंदी को धार्मिकता से नहीं जोड़ें"
पता नहीं, बिहार सरकार के पास सिर्फ यह योजना है या इनपर कोई क़ानून भी है, किन्तु मैं जब से देख रहा हूँ, कब्रगाहों या कब्रिस्तानों को चारों तरफ से खुला ही पाया हूँ । इस्लाम सहित कई धर्मावलंबी अपने परिजनों के शवों को निजी जमीन पर भी दफनाते रहे हैं । परंतु प्रायः सार्वजनिक कब्रिस्तान-स्थल की जमीन सरकारी है, किन्तु कब्रगाहों की घेराबंदी की चर्चा यहाँ-वहाँ महज़ होती रही है, किन्तु हकीकत में ऐसा 10 फीसदी ही हुआ होगा । इन कब्रों की घेराबंदी नहीं होने से शवों के असुरक्षित रहने की संभावना बलवती हो जाती है । खुले में कुत्ते, सियार आदि द्वारा शवों को क्षत-विक्षत किये जाने की संभावना बढ़ जाती है । रास्ते में ऐसे कब्रिस्तान पड़ने से लोगों में अज़ीब डर-सा बना रहता है, इसलिए उनका घेराबंदी आवश्यक है । इतना ही नहीं, कोई भी कब्रिस्तान ऊँचे स्थल में होने चाहिए, ताकि बाढ़ आदि में जल-जमाव से शवों के सड़ाँध-दुर्गंध की समस्या से निज़ात मिल सके । इसके साथ ही कब्रगाहों में पेड़-पौधे भी निश्चित दूरी लिए लगने चाहिए, ताकि कब्र के मिट्टियों का अनावश्यक क्षरण न हो सके !
T.Manu--
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