आजकल का प्रेम 'फेसबुक' की इनबॉक्स-मैसेज की तरह हो गया है, यानि 'काम हुआ' तो मौजे-मौजे और नहीं हुआ तो 'ब्लॉक' ! प्यार शब्द अनोखा है, लेकिन युवा पीढ़ी बस इसे 'सेक्स' शब्द से जोड़कर इस भावना को 'वासनामयी' बना देते हैं । यह वासनामयी-प्रेम की मनःस्थिति फ़ेसबुकिया-प्रेम के पर्याय होते जा रहे हैं ! आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट के प्रस्तुतांक में पेश है, पत्रकार और कवि श्रीमान राघव त्रिवेदी की कविताएँ, जो खट्टे-मीठे यादें और जीवन के कई ऊप्स लिए हैं । यह यादें दिल के अंदर की तो हैं ही, बाहर की भी है, किन्तु हर स्थिति में कवि के नजरिये बौद्धिक टॉनिक लिए हैं । आइये, हम इन कविताओं को अध्ययनशील हो पढ़ते हैं और खुद आवश्यकतानुसार इन कवितारूपी टॉनिक का सेवन करते हैं :-
वो पुरानी यादें
प्यार के लंबे इतिहास में सबसे वाहियात खोज है, मूव ऑन कर जाना ।
आप किसी चीज को तब बहुत ज़्यादा याद करते हैं, जब आप उसे पाकर खो दें ।
मूव ऑन भी कुछ ऐसा ही आविष्कार है ,
पता नहीं लोग कैसे मूव ऑन का मोड ऑन कर लेते हैं
पुरानी यादें पुरानी बातें अहसास सब कुछ दरकिनार कर --
मूव ऑन कर जाना तुम्हारे लिए कितना आसान है
लेकिन मैं मूव को कभी ऑन कर ही नहीं पाता हूँ ।
मेरा लिखना भी एक ऐसे ही मूव ऑन की देन रहा !
जिनके लिए वजूद बहुत छोटा है मेरा
दिल्ली विश्वविद्यालय /अम्बेडकर कॉलेज /पत्रकारिता का छात्र रहा है
पर बचपन की सारी रंगीनियाँ कानपुर की गलियों से गुजरी है जहाँ ।
कानपुर /ऐसा शहर है
जिसकी हर गली के हर नुक्कड़ पर
एक नयी प्रेम कहानी रफ़्तार पकड़ रही होती है
लेकिन अपनी ही अधूरी रह गयी
खैर ! ये इस देश में जितने भी वाद हैं
इन सब का एक ही उपाय है प्रेम और बस प्रेम --
प्यार में आकर आपने अगर अपनी उनका नाम मोटी नहीं रखा
तो आशिकी में कुछ नहीं किया ।
ब्रेकअप और मूव ऑन जैसे शब्द ही नहीं होने चाहिए इस दुनियाँ में ,
एक और शब्द है जो बहुत ही खतरनाक है इस दुनियाँ में
जब किसी के पास आपको देने के लिए कुछ नहीं होता है
तो वो आपको कुछ शब्द देता है "सब ठीक हो जाएगा"
और वो सब कभी ठीक नहीं होता है
और जब ठीक नहीं होता है
तो हिन्दी सिनेमा की तरह लड़का या तो रॉकस्टार बन जाता है या लेखक
अब संगीत से अपनी कुछ बनी नहीं और लेखक मैं खुद को मानता नहीं !
ये बड़ी-बड़ी किताबें उपन्यास मुझे हमेशा से ही अझेल से लगे
वो क्या है न की बातें और आशिकी
किताबों से पहले इस दुनियाँ में आ गए थे !
तो मैं बातें लिखता हूँ, आशिकी के साथ घोलकर ,
खैर ! एक रौशनी थी,जो धुँधली है तलाश रहा हूँ
आपको मिले तो खबर करना...!
रौशनी और 6 अन्य कविताएं
ये हर तरफ़ जो हलचल है माहौल में
ये जो आवाजें चीखों में तब्दील हुयी हैं
ये जो कोयला सुलग रहा है कल आग होगा
एक तारीख़ मुक़र्रर होगी जब हिसाब होगा...!
गरीब का अमीर पर बेबस का मौकापरस्त पर
कुछ उधार बकाया है , समय के पन्नों पर
घड़ियाँ फिर घूमेंगी ,और बदलाव होगा
एक तारीख़ मुक़र्रर होगी जब हिसाब होगा...!
सरकारें आएंगी जाएंगी और फिर आएँगी
जुल्म किये जायेंगे, और सहे जाएंगे
ये किस्सा हर गली फिर आम होगा
एक तारीख़ मुक़र्रर होगी जब हिसाब हो !
😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯
पिछले कुछ दिनों से जो भी लिखता हूँ
बिखर जाता है रेत सा
कुछ कागज़ के अधलिखे टुकड़े
जिनपर अनसुनी यादें तैरती है
कुछ यादें जो कागज़ पे न उतरी
बिखरी है यही मेज के एक हिस्से पर
कुछ धुँधली तस्वीरे कुछ चिट्टी के हिस्से
जो लिखी तो पर दे न सका
कुछ इनबॉक्स के हिस्से के शब्द भी हैं
जो प्यारे भी लगे और चुभे भी
कुछ अजनबी तस्वीरें हैं जिनका
वजूद गुमशुदा है
इन्हें जला दूँ या बचा लू यही
सोच नहीं पाता हूँ
पिछले कुछ दिनों से लिखता हूँ मिटाता हूँ
और भूल जाता हूँ...!
😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍
मैंने समेटी थीं
कुछ खुरदरी यादें
उन्हें अपने सिरहाने रखा
एक तकिया बनाकर
एक बिछौना भी बनाया है
उन यादों का जो आधी अधूरी
कुछ जो थीं भूली बिसरी सी
एक ओढ़नी भी बनाई है
जिसमें बुना है गुफ़्तगू के उन हिस्सों को
जो शरारती मुस्कान में लिपटे हुए थे
सब कुछ इन यादों पे कुर्बान कर दिया
एक यही तो है जो अब तक बचा पाया हूँ
सब खाली सा बेसुरा भूला सा लिहाफ़ है
जीने का इतना सा सामान बचा पाया हूँ...!
🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃
क्या तुम वहाँ अब भी हो...?
वहाँ जहाँ शब्द मौन हो जाते हैं
उस पन्नें पे जहाँ हमने नाम लिखा था
उस पेड़ पे जिसपे कभी हम झूले थे
जहाँ संवेदनाएं मौन हो जाया करती थी...!
हाँ वो स्कूल की सीट के आधे हिस्से में
जो अब कबाड़ में अपना वजूद खो चुकि है
वो टिफिन के ऊपर वाले हिस्से के पहले निवाले
जिसपे अक्सर तुम्हारे हाथों का हक़ था
क्या तुम वहाँ अब भी हो....?
क्या तुम वहाँ भी हो ......?
जहाँ लाखो प्रेम कहानियाँ
डूबती है और तैरती हैं
वो वीरान कमरा जिसमे सिर्फ एक खिड़की है
जहाँ सिर्फ आदम जमाने के पंखें की आवाज गूँजती है
क्या तुम उन सभी जगह हो
कहो न तुम हो ...!
👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫
इतने गम है किस-किस का हिसाब रखूँ
कौन-कौन सा गम किसने बख़्शा है
अब इसका भी एक हिसाब रखूँ
कोई लिहाफ उड़ा दो हवा सर्द है
मैं अपनी अँगीठी में आग कब तक रखूँ
वक्त के साथ गम धुँधले हो गए हैं
इन्हें कुरेद-कुरेद कर घाव क्यों रखूँ..
तुम होते तो मरहम की जरूरत क्या थी
तुम नहीं हो तो अब इलाज़ क्या करूँ...!
💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪
अनवरत रूप से चलायमान
या हटाओ , आपका निरंतर ही ले लेता हूँ
निरंतर रूप से ही चलायमान
समय की एक मात्र आधारशिला
नहीं घड़ी नहीं मैं स्त्री की बात कर रहा हूँ...!
हाँ स्त्री जो सदियों से चलायमान है
कभी तुम्हारे भोग और वासना के लिए
तो कभी उस खोखले पुरुषवाद के लिए
हर पल वो चलायमान ही तो है
पेरू के बैल की तरह निरन्तर चलायमान है ...!
क्या तुमने कभी उसे देह से इतर समझा है
क्या अंगों से इतर कभी भावों में झाँका है
कभी नजरों से इतर संवेदनाओं को छुआ है
क्या मौके से इतर कभी जिम्मेदारी समझा है
तुमने तो माँ के अर्थ को भी क्या समझा है ...!
देह और अंग से भी इतर है सौंदर्य
उस स्त्री का जिसके कई चेहरे हैं
या जो नक़ाब पोश भी है राहों पर
उसमें भी संवेदनाएं और रिश्ते दफ़न है
उसमें भी कल के आधार दफ़न है ...!
देह के भूगोल से भी इतर है संवेदना
देह का सौंदर्य जो देता है सिर्फ वेदना
अब स्त्री भी भावों में सराबोर है
वो जीना चाहती है वो ज़िन्दगी
जो सदियों से पुरुषों की मोहताज रही है
स्त्री भी अब अर्धनारीश्वर बनना चाहती है ...!
💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏
मेरी कहानी जो सुनते
तो दर्द ज़रूर होता
तुम अपना फ़लसफ़ा
तो कह गए
एक वाक़या मेरा जो सुनते
तो दर्द ज़रूर होता
मैं अब रोकर गम नहीं बहाता
मेरे आँखों के समंदर को देखते
तो दर्द ज़रूर होता
मैंने डाला है एक लिहाफ़
पिछले हफ़्ते से
लिहाफ़ खोलता तो हालात पे
दर्द ज़रूर होता
सब छुपा लिया कुछ नही कहा
कुछ भी कहता तो
दर्द ज़रूर होता...!
वो पुरानी यादें
प्यार के लंबे इतिहास में सबसे वाहियात खोज है, मूव ऑन कर जाना ।
आप किसी चीज को तब बहुत ज़्यादा याद करते हैं, जब आप उसे पाकर खो दें ।
मूव ऑन भी कुछ ऐसा ही आविष्कार है ,
पता नहीं लोग कैसे मूव ऑन का मोड ऑन कर लेते हैं
पुरानी यादें पुरानी बातें अहसास सब कुछ दरकिनार कर --
मूव ऑन कर जाना तुम्हारे लिए कितना आसान है
लेकिन मैं मूव को कभी ऑन कर ही नहीं पाता हूँ ।
मेरा लिखना भी एक ऐसे ही मूव ऑन की देन रहा !
जिनके लिए वजूद बहुत छोटा है मेरा
दिल्ली विश्वविद्यालय /अम्बेडकर कॉलेज /पत्रकारिता का छात्र रहा है
पर बचपन की सारी रंगीनियाँ कानपुर की गलियों से गुजरी है जहाँ ।
कानपुर /ऐसा शहर है
जिसकी हर गली के हर नुक्कड़ पर
एक नयी प्रेम कहानी रफ़्तार पकड़ रही होती है
लेकिन अपनी ही अधूरी रह गयी
खैर ! ये इस देश में जितने भी वाद हैं
इन सब का एक ही उपाय है प्रेम और बस प्रेम --
प्यार में आकर आपने अगर अपनी उनका नाम मोटी नहीं रखा
तो आशिकी में कुछ नहीं किया ।
ब्रेकअप और मूव ऑन जैसे शब्द ही नहीं होने चाहिए इस दुनियाँ में ,
एक और शब्द है जो बहुत ही खतरनाक है इस दुनियाँ में
जब किसी के पास आपको देने के लिए कुछ नहीं होता है
तो वो आपको कुछ शब्द देता है "सब ठीक हो जाएगा"
और वो सब कभी ठीक नहीं होता है
और जब ठीक नहीं होता है
तो हिन्दी सिनेमा की तरह लड़का या तो रॉकस्टार बन जाता है या लेखक
अब संगीत से अपनी कुछ बनी नहीं और लेखक मैं खुद को मानता नहीं !
ये बड़ी-बड़ी किताबें उपन्यास मुझे हमेशा से ही अझेल से लगे
वो क्या है न की बातें और आशिकी
किताबों से पहले इस दुनियाँ में आ गए थे !
तो मैं बातें लिखता हूँ, आशिकी के साथ घोलकर ,
खैर ! एक रौशनी थी,जो धुँधली है तलाश रहा हूँ
आपको मिले तो खबर करना...!
रौशनी और 6 अन्य कविताएं
ये हर तरफ़ जो हलचल है माहौल में
ये जो आवाजें चीखों में तब्दील हुयी हैं
ये जो कोयला सुलग रहा है कल आग होगा
एक तारीख़ मुक़र्रर होगी जब हिसाब होगा...!
गरीब का अमीर पर बेबस का मौकापरस्त पर
कुछ उधार बकाया है , समय के पन्नों पर
घड़ियाँ फिर घूमेंगी ,और बदलाव होगा
एक तारीख़ मुक़र्रर होगी जब हिसाब होगा...!
सरकारें आएंगी जाएंगी और फिर आएँगी
जुल्म किये जायेंगे, और सहे जाएंगे
ये किस्सा हर गली फिर आम होगा
एक तारीख़ मुक़र्रर होगी जब हिसाब हो !
😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯😯
पिछले कुछ दिनों से जो भी लिखता हूँ
बिखर जाता है रेत सा
कुछ कागज़ के अधलिखे टुकड़े
जिनपर अनसुनी यादें तैरती है
कुछ यादें जो कागज़ पे न उतरी
बिखरी है यही मेज के एक हिस्से पर
कुछ धुँधली तस्वीरे कुछ चिट्टी के हिस्से
जो लिखी तो पर दे न सका
कुछ इनबॉक्स के हिस्से के शब्द भी हैं
जो प्यारे भी लगे और चुभे भी
कुछ अजनबी तस्वीरें हैं जिनका
वजूद गुमशुदा है
इन्हें जला दूँ या बचा लू यही
सोच नहीं पाता हूँ
पिछले कुछ दिनों से लिखता हूँ मिटाता हूँ
और भूल जाता हूँ...!
😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍
मैंने समेटी थीं
कुछ खुरदरी यादें
उन्हें अपने सिरहाने रखा
एक तकिया बनाकर
एक बिछौना भी बनाया है
उन यादों का जो आधी अधूरी
कुछ जो थीं भूली बिसरी सी
एक ओढ़नी भी बनाई है
जिसमें बुना है गुफ़्तगू के उन हिस्सों को
जो शरारती मुस्कान में लिपटे हुए थे
सब कुछ इन यादों पे कुर्बान कर दिया
एक यही तो है जो अब तक बचा पाया हूँ
सब खाली सा बेसुरा भूला सा लिहाफ़ है
जीने का इतना सा सामान बचा पाया हूँ...!
🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃
क्या तुम वहाँ अब भी हो...?
वहाँ जहाँ शब्द मौन हो जाते हैं
उस पन्नें पे जहाँ हमने नाम लिखा था
उस पेड़ पे जिसपे कभी हम झूले थे
जहाँ संवेदनाएं मौन हो जाया करती थी...!
हाँ वो स्कूल की सीट के आधे हिस्से में
जो अब कबाड़ में अपना वजूद खो चुकि है
वो टिफिन के ऊपर वाले हिस्से के पहले निवाले
जिसपे अक्सर तुम्हारे हाथों का हक़ था
क्या तुम वहाँ अब भी हो....?
क्या तुम वहाँ भी हो ......?
जहाँ लाखो प्रेम कहानियाँ
डूबती है और तैरती हैं
वो वीरान कमरा जिसमे सिर्फ एक खिड़की है
जहाँ सिर्फ आदम जमाने के पंखें की आवाज गूँजती है
क्या तुम उन सभी जगह हो
कहो न तुम हो ...!
👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫👫
इतने गम है किस-किस का हिसाब रखूँ
कौन-कौन सा गम किसने बख़्शा है
अब इसका भी एक हिसाब रखूँ
कोई लिहाफ उड़ा दो हवा सर्द है
मैं अपनी अँगीठी में आग कब तक रखूँ
वक्त के साथ गम धुँधले हो गए हैं
इन्हें कुरेद-कुरेद कर घाव क्यों रखूँ..
तुम होते तो मरहम की जरूरत क्या थी
तुम नहीं हो तो अब इलाज़ क्या करूँ...!
💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪💪
अनवरत रूप से चलायमान
या हटाओ , आपका निरंतर ही ले लेता हूँ
निरंतर रूप से ही चलायमान
समय की एक मात्र आधारशिला
नहीं घड़ी नहीं मैं स्त्री की बात कर रहा हूँ...!
हाँ स्त्री जो सदियों से चलायमान है
कभी तुम्हारे भोग और वासना के लिए
तो कभी उस खोखले पुरुषवाद के लिए
हर पल वो चलायमान ही तो है
पेरू के बैल की तरह निरन्तर चलायमान है ...!
क्या तुमने कभी उसे देह से इतर समझा है
क्या अंगों से इतर कभी भावों में झाँका है
कभी नजरों से इतर संवेदनाओं को छुआ है
क्या मौके से इतर कभी जिम्मेदारी समझा है
तुमने तो माँ के अर्थ को भी क्या समझा है ...!
देह और अंग से भी इतर है सौंदर्य
उस स्त्री का जिसके कई चेहरे हैं
या जो नक़ाब पोश भी है राहों पर
उसमें भी संवेदनाएं और रिश्ते दफ़न है
उसमें भी कल के आधार दफ़न है ...!
देह के भूगोल से भी इतर है संवेदना
देह का सौंदर्य जो देता है सिर्फ वेदना
अब स्त्री भी भावों में सराबोर है
वो जीना चाहती है वो ज़िन्दगी
जो सदियों से पुरुषों की मोहताज रही है
स्त्री भी अब अर्धनारीश्वर बनना चाहती है ...!
💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏💏
मेरी कहानी जो सुनते
तो दर्द ज़रूर होता
तुम अपना फ़लसफ़ा
तो कह गए
एक वाक़या मेरा जो सुनते
तो दर्द ज़रूर होता
मैं अब रोकर गम नहीं बहाता
मेरे आँखों के समंदर को देखते
तो दर्द ज़रूर होता
मैंने डाला है एक लिहाफ़
पिछले हफ़्ते से
लिहाफ़ खोलता तो हालात पे
दर्द ज़रूर होता
सब छुपा लिया कुछ नही कहा
कुछ भी कहता तो
दर्द ज़रूर होता...!
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
0 comments:
Post a Comment