21 वीं सदी में जहाँ प्रायः व्यक्ति 'साम-दाम-दंड-भेद' की नीति अपना रहे हैं । वाकई इनमें भेद व छद्म से बड़ा भी कोई नहीं हैं , लेकिन सामाजिकता के चोंगे पहने इस समाजरूपी 'कलयुगी' दुनिया में 'स्वर्ग-नरक' यही हैं-- अक्षरशः 'सत्य वद' लिए है, यानि गलत किया है तो यही सजा मिलेगी और सही किया है तो मौजे-मौजे ! सोणा-सोणा !! हर पल, हर क्षण, तत्क्षण !!! आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट लेकर आई है, कवयित्री और लघुकथाकार नीतू सुदीप्ति 'नित्या ' की कुछ रचनायें -- सचमुच में, जिन्हें पढ़कर जीवन की 'हमाम' में हम और सिर्फ़ हम ही नंगे होते दिखेंगे , आइये रु-ब-रु होते हैं :--
तमाचा
"पापा...पापा, दादा जी के लिए चश्मा खरीद के ला दो. उनको दिखाई नही दे रहा है ."
5 साल के मोनू ने कहा.
"मै नही लाऊंगा ." पापा ने कह जैसे ही ठंडी साँसे लेने की कोशिश करने लगे कि
" मै भी बड़ा हो जाऊंगा, तो आपको भी चश्मा लाकर नही दूंगा !"
मोनू का जवाब एक तमाचा जड़ने जैसा था !
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बदनाम
नारी है माचिस की तीलियाँ
जो एक बार जल कर बुझ जाती है
फिर न किसी काम की वह
सबके पैरो तले रौंदी चली जाती है
प्रीत की डोर
सांसों मे बांधती
उसके लिए सपने संजोती
हाय ! जब दाग लग जाता उस पर
वह घुट-घुट कर जीवन जीती है
एक माचिस मे हजार तीलियाँ
सबकी अपनी क़िस्मत
दाग लगी नारी सोचती है
शायद कोई आए उसका
उद्धार करने वाला
पर वह उनसे भी बदनाम हो रह जाती हैं !
नमस्कार दोस्तों !
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