बचपन से हम इन्हें 'मामा' कहते आये हैं, नाम है-- 'चंदा मामा', लेकिन वक़्त के फ़ेर-फ़ाड़ और थपेड़े में पड़कर व उलझते हुए भी मामा हमारी खूब खैरकदम करते हैं । व्हाट्सएप, फ़ेसबुक आदि के युग में मामा की अदाएं व कलाएं आज नाना रूप लिए हैं । कितने ही कष्टों को समेटकर चंदा मामा जब चाँदनी फैलाते हैं, तो अनगिनत सितारों की धमक भी फ़ीकी पड़ जाती है ? आइये, चाँद के अन्य रूपों से निकल हम प्रस्तुत कविता पढ़ मज़ा लेते हैं ! आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट लेकर आई है, कवयित्री दीप्ति सिंह की लेखनी से निकली रोशनाई कविता ! आइये, इसे पढ़ते हैं-----
मेरे आँगन में हर रात
जब चाँद नीले आसमान में
एक पेड़ की ओट से निकलता है
और कभी --
बादलों में छुप जाता है ।
लगता है--
जैसे मेरे साथ अठखेलियाँ करता है ।
ये चाँद ही है,
जो तुम्हें मुझसे--
एक अनजाना-सा प्रीत को
केके मजबूत डोर से जोड़ता है ।
कि दुनिया की नज़र से छुपकर
हर रात ये मुझसे तेरी बातें करता है ।
कहता है--
ये तेरे आँगन में भी चमकता है,
हर रोज़ ।
इतना ही नहीं,
तेरा ज़िक्र मुझसे बार-बार करता है,
सितारों की उपमा देकर / मुझे
तेरे दूर होने की वजह पूछता है ।
और चाँद को मेरा सिर्फ़ यही जवाब होता है
तू जब उसके आँगन दिखता है,
कि वो मेरे पास होता है !
मेरे आँगन में हर रात
जब चाँद नीले आसमान में
एक पेड़ की ओट से निकलता है
और कभी --
बादलों में छुप जाता है ।
लगता है--
जैसे मेरे साथ अठखेलियाँ करता है ।
ये चाँद ही है,
जो तुम्हें मुझसे--
एक अनजाना-सा प्रीत को
केके मजबूत डोर से जोड़ता है ।
कि दुनिया की नज़र से छुपकर
हर रात ये मुझसे तेरी बातें करता है ।
कहता है--
ये तेरे आँगन में भी चमकता है,
हर रोज़ ।
इतना ही नहीं,
तेरा ज़िक्र मुझसे बार-बार करता है,
सितारों की उपमा देकर / मुझे
तेरे दूर होने की वजह पूछता है ।
और चाँद को मेरा सिर्फ़ यही जवाब होता है
तू जब उसके आँगन दिखता है,
कि वो मेरे पास होता है !
नमस्कार दोस्तों !
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