आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट लेकर आई है , संपादक की जुबानी 'देश के होनहार बच्चों की कहानी' और उनके दर्द का निचोड़न --
क्यों न आज के बच्चे एकलव्य बन, ऐसे कुकुरमुत्ते-से उगे कोचिंग की मायावी दुनिया को छोड़ते हुए 'गूगल को गुरु' बनाएं, ताकि पेरेंट्स को भी कोचिंग के कारण बेतहाशा खर्च न करना पड़े ! आइये पढ़े -----
देश में कोचिंग संस्थान की भरमार हो गयी है, हर कोचिंग संस्थान अपने बारे में यही लिखते है--' इंडियाज़ नंबर वन इंस्टीट्यूट', पर पता नहीं 'नंबर वन इंस्टीट्यूट' मापने की पद्धति क्या है ? कोचिंग के इसी बहकावे में बच्चे सेल्फ स्टडी नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि IIT से लेकर IAS बनाने तक की कोचिंग खुल गए हैं और उनके मोहजाल में फँसकर पहले तो पेरेंट्स का पैसा डूबता है, फिर बच्चों का स्वप्न टूटता है ! पढाने के नाम पर कोचिंग वाले प्रतिदिन क्लास लेते हैं और वह भी 8 घंटे से 10 घंटे तक । इतने घंटे में छात्रों की मानसिक-स्थिरता खत्म हो जाती है । उन्हें सिलेबस पूरा होने का डर सताने लगता है, साथ ही पेमेंट के लाखों रुपये कोचिंग वाले जो एकमुश्त ले लेते हैं, इसलिए बच्चे कोचिंग छोड़ भी नहीं पाते हैैं ! युवा पीढ़ी इतने इनोवेटिव सोच वाले हैं कि वे कोचिंग के हव्वा से निकलकर 'सेल्फ स्टडी' द्वारा भी आईएएस, आईपीएस, IITIAN या अन्य एग्जाम निकाल सकते हैं । आज का युग समार्टफोन और स्मार्ट स्टडी का है । हर कठिन सवालों का आंसर गूगल और यूट्यूब आदि से मिल जाते हैं। क्यों न आज के बच्चे एकलव्य बन, ऐसे कुकुरमुत्ते-से उगे कोचिंग की मायावी दुनिया को छोड़ते हुए 'गूगल को गुरु' बनाएं, ताकि पेरेंट्स को भी कोचिंग के कारण बेतहाशा खर्च न करना पड़े !
क्यों न आज के बच्चे एकलव्य बन, ऐसे कुकुरमुत्ते-से उगे कोचिंग की मायावी दुनिया को छोड़ते हुए 'गूगल को गुरु' बनाएं, ताकि पेरेंट्स को भी कोचिंग के कारण बेतहाशा खर्च न करना पड़े ! आइये पढ़े -----
देश में कोचिंग संस्थान की भरमार हो गयी है, हर कोचिंग संस्थान अपने बारे में यही लिखते है--' इंडियाज़ नंबर वन इंस्टीट्यूट', पर पता नहीं 'नंबर वन इंस्टीट्यूट' मापने की पद्धति क्या है ? कोचिंग के इसी बहकावे में बच्चे सेल्फ स्टडी नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि IIT से लेकर IAS बनाने तक की कोचिंग खुल गए हैं और उनके मोहजाल में फँसकर पहले तो पेरेंट्स का पैसा डूबता है, फिर बच्चों का स्वप्न टूटता है ! पढाने के नाम पर कोचिंग वाले प्रतिदिन क्लास लेते हैं और वह भी 8 घंटे से 10 घंटे तक । इतने घंटे में छात्रों की मानसिक-स्थिरता खत्म हो जाती है । उन्हें सिलेबस पूरा होने का डर सताने लगता है, साथ ही पेमेंट के लाखों रुपये कोचिंग वाले जो एकमुश्त ले लेते हैं, इसलिए बच्चे कोचिंग छोड़ भी नहीं पाते हैैं ! युवा पीढ़ी इतने इनोवेटिव सोच वाले हैं कि वे कोचिंग के हव्वा से निकलकर 'सेल्फ स्टडी' द्वारा भी आईएएस, आईपीएस, IITIAN या अन्य एग्जाम निकाल सकते हैं । आज का युग समार्टफोन और स्मार्ट स्टडी का है । हर कठिन सवालों का आंसर गूगल और यूट्यूब आदि से मिल जाते हैं। क्यों न आज के बच्चे एकलव्य बन, ऐसे कुकुरमुत्ते-से उगे कोचिंग की मायावी दुनिया को छोड़ते हुए 'गूगल को गुरु' बनाएं, ताकि पेरेंट्स को भी कोचिंग के कारण बेतहाशा खर्च न करना पड़े !
0 comments:
Post a Comment