अमेरिगो वेस्पूची, मार्को पोलो, वास्कोडिगामा, कोलंबस, सिंदबाद इत्यादि जलनायकों ने कई देशों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को ढूंढ़ निकाले, परंतु प्रत्येक माह की भाँति इस माह भी 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' अपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में जिस शख़्स व शख़्सियत की इंटरव्यू व साक्षात्कार प्रकाशित कर रहा है, वो शख़्स 17 वर्ष की अल्पायु में ही जल जहाज के साथ जुड़ गए तथा 'कप्तान' के ओहदे पाकर कालांतर में जलपुरुष ही नहीं, जलकुबेर बन बैठे, परंतु उन जलनायकों की भाँति वह शख़्स देश न ढूँढ़ 'स्वयं' को ढूंढ़ निकाला तथा वह उस जैसे व्यापारी न बन, अपितु ज्ञान और रचनाओं का प्रसारण और प्रकाशन किया । कविताओं के संकलन सहित कई पुस्तकों का प्रणयन किया । भारत के 'पहाड़' के पर्याय नाम से चर्चित राज्य से निकल करीबन 60 देशों का न केवल भ्रमण किया, अपितु इतनी ही भाषाओं के जानकार हैं, आज के इनबॉक्स इंटरव्यू के साक्षात्कार पुरुष व रियल हीरो श्रीमान कुणाल नारायण उनियाल ।
आइये, भूमिका को यहीं सीमित करते हुए हम 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' के 14 गझिन सवालों के उनसे प्राप्त उत्तर पढ़ते हैं और कुणाल जी के विचारों से ओतप्रोत होते हैं-----
प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
सर्वप्रथम 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' के पाठकों सहित इनके आदरणीय संपादक महोदय को सादर प्रणाम !
वैसे तो जहाज़ का कप्तान हूँ, पर लोग कवि के रूप में ज्यादा जानते है । २००२ में १७ साल की उम्र में समन्दर का रुख किया ......और ये सिलसिला आज भी जारी है । लिखने में बचपन से ही रूचि थी, पर जानता नहीं था कि कैसे और कहाँ से शुरू करूँ । ... कि किताब लिख भी पाऊंगा या नहीं ! २०१४ में मेरी पहली किताब "कूच ख्वाब सागर से" के नाम से छपी और आज ये गिनती ८ तक पहुँच गयी है, जिनमें हिंदी के अतिरिक्त इंग्लिश, फ्रेंच, इतालियन, स्पेनिश तथा ग्रीक भाषा में स्वलिखित पुस्तकें शामिल हैं ।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखता हूँ, जो एक जोड़ी कपड़ा और दो जून की रोटी जोड़ने में निकाल देते हैं । पिताजी डिफेन्स में थे, परंतु पारिवारिक पृष्ठभूमि किसान की है । यानी 'जय जवान, जय किसान' लिए मेरा खून और इससे निःसृत ज्ञान ही मेरा मार्गदर्शक बना, सो आगे बेइंतहा पढ़ाई की और दुनिया घूमनी थी तो जहाज़ की नौकरी की । इसके बावजूद पिताजी ने एक बात कहा कि 'जहाँ भी जाओ खुद को कभी न भूलना, तो बस खुद को याद रखने और स्वयं को स्मरण दिलाते रहने की खातिर लिखता हूँ और रोटी, कपड़ा सहित पारिवारिक इच्छापूर्ति हेतु नौकरी करता हूँ ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किस तरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
मेरा शुरू से मानना रहा है कि खुद से बढ़कर आपका कोई भी गुरु नहीं हो सकता है और खुद से बेहतर आपको कोई रास्ता नहीं दिखा सकता है ! सभी तरह के तलाशों की मरीचिका का आरम्भ और अंत खुद में ही है । रही बात इंस्पायर होने की, तो जल जहाज़ एक बहुत ही खूबसूरत जगह है, जो दूर-दूर तक आपको सैर करा देता है, विभिन्न देशों के लोगों से मिलवाता है । मैं २१ साल का था, जब अफसर बन गया था और तब से लोगों के सान्निध्य हूँ , खुद पथ तो नहीं हूँ और खुद को पथप्रदर्शक कहना भी 'छोटी मुँह, बड़ी बात' होगी । किन्तु जहाज का कप्तान होने के कारण कप्तान-सी भूमिका निभाने का एक साधनसेवी भूमिका निभा रहा हूँ । मेरा स्लोगन है:-
"खुद पे विश्वास रखिये, दिल के पॉजिटिव पक्ष को करिये और ईश्वर के समक्ष सदैव नतमस्तक रहिये, बस मंजिल खुद-ब-खुद मिलते चले जायेंगे ।"
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
एक नहीं, अनेक कठिनाई आयी । अकेला भारतीय था और वो भी १७ साल का में तब । न कुछ सोच, न समझ, न कोई रास्ता दिखानेवाला ! बस, सबकोई हावी होने को तैयार और एक गलती होने भर की देर कि मैं गलती करूँ और घर भेज दिया जाऊं । पर, डटा रहा, परेशानी झेलता रहा और १४ महीने घर से दूर रहने के बाद जब घर लौटा, तो सीना चौड़ा, पर वजन १० किलो कम था ! किशोर से मर्द बना दिया गया था । कठोरतम दुनिया ने मुझे और भी सीखा दिया... अच्छी चीज होती है, ठोकर खाकर शीघ्र ही उठ खड़ा हो जाना ।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
आर्थिक दिक्कत कभी नहीं रही, क्योंकि संतुष्टि का उपहार ऊपर वाले से मिला हुआ है । जब २०० डॉलर कमाता था, बहुत खुश था और आज तो उससे भी कई गुना अधिक कमाता हूँ, बावजूद संतोषवृत्ति लिए हूँ । यह जो माया है न, मुट्ठी बंद करने से सिमट जाएगी और न खुलने पर निकल जाएगी । खाट में सोइये या मखमल में--- नींद आने से मतलब होना चाहिए ।आज भी माताजी के हाथ से पॉकेट मनी लेने का जो आनंद है, वो खुद के बैंक से निकलने में कहाँ ? अर्थ से अर्थी का सफर ज्यादा लंबा नहीं है, इसलिए दोनों की चिंता करना मिथ्यास्पद है ! किस बात की चिंता; बस, जिए चलो ।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:-
दुनिया घूमने का शौक, लोगो के चेहरे पढ़ने की होते-होते हो गई रूचि और सबको अपनी किताबो में उतार लेने की चाहत.... मुझे ले गया, जहाज़ की ओर ! परिवारवालों ने मेरी इच्छाओं का सदैव समर्थन किया और मुझसे कहा-- 'कुछ भी करो, चाहे वो झाड़ू ही लगाना क्यों न हो ? पर दिल से करो ! सदा सफल रहोगे' ....और हुआ भी, ऐसा ही ! उनके आशीर्वाद और प्रेम के अधीनस्थ होकर ही आज इस मुकाम पर पहुँच पाया ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
हर इंसान जिनसे मैं मिला ! हर व्यक्ति जिसने मुझे गिराया, वह मेरा मार्गदर्शक है । जिसके भी चेहरे पढ़ पाया, उन्हें किताब में उतार दिया और मिथ्या बातो में जिसने भी मुझे लजाया, मेरी कलम को उन्होंने ही चमकाया । परंतु माँ, बाप,भाई और भार्या न होते, तो मेरा मंज़िल अधूरा ही रह जाता शायद ! उन्होंने ही रास्ता दिखाया और आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी । खासकर, मेरी अर्द्धांगिनी, जिसने मेरे कानों फुसफुसाई-- 'आगे बढ़ते रहे । हम पीछे है खड़े हैं, गिरने न देंगे तूझे !'
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
मेरी हर पुस्तक में भारतीय संस्कृति की ही छाप मिलेगी और मेरा यही प्रयास भी है कि मैं अपनी किताब के माध्यम से भारतीय संस्कृति को समस्त विश्व में उजागर करूँ । मेरी किताब, जिनकी विदेशी भाषाओ में प्रकाशन और प्रसारण सर्वाधिक हुआ है, वेदों पर लिखी गयी है और विदेशी लोगों को इसके माध्यम से भारतीय संस्कृति में रूचि आने लगी है । मेरा मानना है कि बहुत-कुछ लिखा जा चुका है, बहुत कुछ दिया जा चुका है । सिर्फ अब तो अमल करने की बारी है !
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
भ्रष्टाचार एक सोच है, भ्रष्ट लोगों की, न कि यह कोई व्यक्ति या समाज है ! अच्छाई जहाँ हम सब के दिल में है और हम सभी के दिलो में अगर ज़रा सी भी भ्रष्टाचार है, तो इसे दफ़न हो जाना चाहिए । समाज लोगो के द्वारा अपने उपभोग के आधार पर निर्मित है और हर शक्तिशाली द्वारा कमजोर के शोषण पर आधारित है ! समाज को नहीं, खुद को बदलने की जरूरत है ! मेरी किताबे, मेरी कवितायें ... आध्यात्मिक हैं, जो यह बात करता है कि भूखे को खाना मत खिलाओ, बल्कि उस भूख का ही दमन करो । बीमार को दवाई नहीं, बल्कि बीमारी ही हटाओ । कितने को मुफ़्त पालोगे, हज़ार आएँगे । इसलिए एक दिया जलाओ, जो अंधेरा ही हटाए ! जिस दिन खुद सुधर जाओगे, उसदिन न भ्रष्टाचार रहेगा, न भ्रष्टाचारी । रह जाएगा, सिर्फ एक स्वयंसेवी सोच...... !
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:-
लेखन क्षेत्र में खुद को स्थापित करना एक सबसे बड़ी चुनौती थी, क्योंकि उम्र की छोटाई देख लोग किताब को स्वीकारते ही नहीं थे । आर्थिक तंगी कभी हुई नहीं, परन्तु एक भी हाथ आगे बढ़कर मेरे लेखन को प्रोत्साहित करते मिला नहीं और वैसे भी हमारे देश की तो रीत है, जब तक पश्चिमी देशवाले आपको सम्मान नहीं देते, आप किसी लायक नहीं और वही मेरी पुस्तक के साथ भी हुआ । पहले मुझे कोई जानता तक नहीं था, पर जब फ्रांस और लन्दन में अवॉर्ड मिले, तो अपने देश में भी ताँता लग गया और तब लोगों को महसूस हुआ कि 'मैं कवि और लेखक भी हूँ और मेरी किताब वाकई में पथप्रदर्शक भी है।' इसके सापेक्ष सहयोग मिला और खूब मिला, पर वर्त्तमान स्थिति तक पहुँचने के बाद ! वैसे भी हमारे देश में लोगों को कुर्सी का बहुत शौक है ! किसी नए-नवेले से अपनी कुर्सी हिलती देख, पुराने साहित्यकार बुरा मान जाते हैं ।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-
अगर दोष किसी और में देखता, तो केस भी होते ! परंतु जब हर कमी खुद को ही टारगेट मान चलता हूँ तो किसी प्रकार के सवाल उठने व होने की नौबत ही नहीं आती है ! मैन अबतक नौकरी बड़े शान से और बड़ी इज्जत से की है, वो भी भ्रष्टमुक्त वातावरण में ।क्योंकि 'न खाऊंगा, न खाने दूंगा' --का नारा लिए हमेशा मैं सीना चौड़ा कर चलता हूँ । इसे मेरी अकड़ या गुमान नहीं कहा जा सकता !
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-
किताबों के बारे में मैंने बता दिया है और कार्यों को पम्फलेट के रूप में प्रकाशन व प्रसारण जब होगा, सर्वप्रथम आपको ही पेश किया जाएगा ।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
(१.)फ्रांस में रोटरी क्लब और हाउस ऑफ़ इफे द्वारा सम्मानित,
(२.)नॉटिकल इंस्टिट्यूट लन्दन से सम्मानित,
(३.)सीफरेर चॉइस अवार्ड २०१५ से सम्मानित,
(४.)एंग्लो ईस्टर्न, हांगकांग से सम्मानित,
(५.)माननीय राष्ट्रपति द्वारा बधाई,
(६.)सैल्र्स टुडे अवार्ड २०१४ में नामांकित,
(७.)अपना परिवार द्वारा २०१६ में सम्मानित,
(८.)इत्यादि ।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
फिलहाल तो इंग्लैंड से उच्चाध्ययन हेतु पढ़ाई कर रहा हूँ, ताकि शैक्षणिक योग्यता बढ़ाकर समाज का और भी सेवा कर सकूं लेखन कार्य जारी है और कई भाषाओ में किताब का अनुवाद कार्य भी जारी है । विदेशी भाषा में मौलिक रचनाकर्म में भी संलग्न हूँ । एक उपन्यास पर भी काम चल रहा है । कुल मिलाकर काफी कुछ किया है और काफी कुछ करने को सततशील हूँ । देश को दिल में लिए घुमता हूँ और यही चाहत लिए दुनिया घूम रहा हूँ कि दुनिया को अपना प्यारा-दुलारा भारत की झलकियां को अपनी किताब के माध्यम से दिखाते रहूँ । देशवासी को बस यही कहना चाहता हूँ-- 'गुलाम थे, अब नहीं हो ! सोच में विकास लाओ; धर्म, जाति, भाषा और वर्ण से बाहर निकलो तथा एक नयी दुनिया की सैर कर आओ।'
महोदय !
आप इसी तरह 'जल-कुबेर' बना रह शाही अंदाज में मुस्कुराते रहिये तथा भ्रष्टाचारमुक्त हो प्रसन्न रह अनगिनत किताबों की रचना करते जाइये ।... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से आपको हृद कामनाएं !
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com
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