सभ्यता के आरंभ यानी आदिमानव काल में स्त्रीलिंग का कोई भी रूप यौन-तृप्ति लिए था, किन्तु सभ्यता में संस्कृति के शुरूआत से अब तक पुरुष प्रधान समाज ने नारी को ठगने की श्रमसाध्य कोशिश किये हैं ! कभी माँ को ममतामयी प्रतिमूर्ति बतलाकर, कभी पत्नी के हाड़ को उनकी मांस व रोमांस कह भोगकर और बेटी,बहु आदि रूप में बाप व ससुर का डर दिखाकर... यानी सबमें पुरुष वर्चस्व ! आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट लेकर आई है, श्रीमान अवधेश कुमार 'अवध' की आन-बान-शान वाली कुण्डलियाँ, जिनमें नारी की वंदना सहित नैतिकता का पाठ पढ़ाए गए हैं, तो आइये, इसे पढ़ते हैं ...
कुंडलिया त्रय
नारी दुर्गा, चंडिका, नारी लक्ष्मी रूप ।
तप्त हृदय में छाँव यह, शीत लहर में धूप ।।
शीत लहर में धूप, प्रकृति की उत्तम रचना ।
वात्सल्य की मूर्ति, नराधम इनसे बचना ।।
करो अवध स्वीकार, पिता की राजदुलारी ।
मानव अब लो चेत, सृष्टि की जननी नारी ।।
🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃🏃
सादर वंदन राष्ट्र को, आन, बान अरु शान ।
जिसकी पावन भूमि पर, सकल सिद्ध अरमान ।।
सकल सिद्ध अरमान, राष्ट्र है सबसे ऊपर ।
मातु पिता गुरु भ्रात, सकल हैं भारत भू पर ।।
कहत अवध हे नाथ, कभी नहीं होय अनादर ।
देव सरिस है राष्ट्र, झुकाओ सिर को सादर ।।
🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶🚶
खूब प्रतिष्ठा चाहिए, सबकी होती चाह ।
नैतिकता के साथ ही, चुनो सत्य की राह ।।
चुनो सत्य की राह, परीक्षा देनी होगी ।
रखना होगा भेद, बीच योगी अरु भोगी ।।
कहत अवध हे मीत, निभाओ दिल से निष्ठा ।
सबका रक्खो मान, बढ़ेगी खूब प्रतिष्ठा ।।
कुंडलिया त्रय
नारी दुर्गा, चंडिका, नारी लक्ष्मी रूप ।
तप्त हृदय में छाँव यह, शीत लहर में धूप ।।
शीत लहर में धूप, प्रकृति की उत्तम रचना ।
वात्सल्य की मूर्ति, नराधम इनसे बचना ।।
करो अवध स्वीकार, पिता की राजदुलारी ।
मानव अब लो चेत, सृष्टि की जननी नारी ।।
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सादर वंदन राष्ट्र को, आन, बान अरु शान ।
जिसकी पावन भूमि पर, सकल सिद्ध अरमान ।।
सकल सिद्ध अरमान, राष्ट्र है सबसे ऊपर ।
मातु पिता गुरु भ्रात, सकल हैं भारत भू पर ।।
कहत अवध हे नाथ, कभी नहीं होय अनादर ।
देव सरिस है राष्ट्र, झुकाओ सिर को सादर ।।
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खूब प्रतिष्ठा चाहिए, सबकी होती चाह ।
नैतिकता के साथ ही, चुनो सत्य की राह ।।
चुनो सत्य की राह, परीक्षा देनी होगी ।
रखना होगा भेद, बीच योगी अरु भोगी ।।
कहत अवध हे मीत, निभाओ दिल से निष्ठा ।
सबका रक्खो मान, बढ़ेगी खूब प्रतिष्ठा ।।
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