हम कहाँ जा रहे हैं -- जब कुँवारी स्त्री माँ बनती हैं तो समाज उसे 'चरित्रहीन' और न जाने क्या-क्या कह पुकारती है ? लेकिन वही यदि सेरोगेट पद्धति द्वारा कोई कुँवारे पुरुष यदि पिता बनते हैं तो उन्हें बॉलीवुड से लेकर नेतागण तक शुभकामनायें देते हैं ! ऐसी दो-राह भरी दुनिया में 'लाजों-शर्म' बचाने के कारण कोई महिला यदि नवजात-शिशु को कचड़े के डिब्बे में फेकतें तो इसमें गलत क्या हैं ? गलत तो हमारे समाज और उनकी सोच है ? लेकिन ऐसे खुले सोच भरे देश में हमारी मीडिया की किसी स्वतंत्र संस्थान ने रैंकिंग जारी की है । आइये पढ़ते है मैसेंजर ऑफ ऑर्ट की संपादक यानि कि मेरी राय , रैंकिंग के परिप्रेक्ष्य में --
21 वीं सदी की शुरूआत इंटरनेट से हुई और कुछ ही सालों में 'डिजिटल क्रांति' ने दोनों पैरों को विश्व में जमा लिये । चूँकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद--19(1) में वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता अंतर्गत प्रेस को स्वतंत्रता दी गयी है, लेकिन हमारे पड़ोसी मुल्क चीन,पाकिस्तान आदि देशों में प्रेस को आंशिक आजादी भी प्राप्त नहीं है । तीन मई को 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस' के रूप में मनाया गया । चूँकि 1991 में यूनेस्को और सयुंक्त राष्ट्र संघ ने इसे शुरू किया था और 1993 में इस प्रस्ताव को स्वीकारा गया था, लेकिन अभिव्यक्ति की इस स्वतंत्रता का प्रेस व मीडिया भी कभी-कभी गलत यूज़ करने लगते हैं । मीडिया आजकल यह खबर नहीं बनाती है कि फलां व्यक्ति को कुत्ता ने काटा, बल्कि खबर की रोचकता बढ़ाते यह पेश किया जाता है कि कुत्ते को फलां व्यक्ति ने काट खाया ! जिससे सच हाशिये में आ जाता है । आज 21 वीं सदी में प्रेस और मीडिया की टेढ़ी-अड़ंगे नाच में 'सोशल मीडिया'ने जोरदार इंट्री मारी है । इस प्लेटफॉर्म पर आप किसी को भरमतलब गाली दीजिये, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोई गाली देकर कानून की नज़रों से बच जाएंगे ।
विश्वभर में कार्यरत पत्रकारों की स्वतंत्र संस्थान 'रिपोर्टर्स विदाउट बोर्डर्स' (जो 2002 से प्रतिवर्ष 'वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स' प्रकाशित करती है) की हालिया रिपोर्ट में विभिन्न देशों में मीडिया के कामकाज के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर एक इण्डेक्स तैयार किया गया है । इस साल के इण्डेक्स के अनुसार, दुनियाभर के 180 देशों में सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत की प्रेस स्वतंत्रता को 136 वें स्थान दिया गया है । यह पूर्णतः झूठ है । यहां की मीडिया जैसी स्वतंत्रता और कहीं नही है । यह रैंकिंग व इंडेक्स फ़ख़्त सोची- समझी चाल है, हमारे लोकतंत्र को नीचा दिखाने का ।
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