सिर्फ कुछ दिन पहले ही महान 'रोमांटिक-संन्यासी-अभिनेता' श्रीमान विनोद खन्ना जी हमें छोड़ उस लोक को चले गए, जिनके बारे में गल्प आख्यान ही ज्यादातर हैं । उनके निधन पर अँगुली पर गिनाये कुछ ही कलाकारों ने सदेह चलकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित किए, तो अधिकांश वॉलीवुड कलाकारों द्वारा 'नाईट पार्टी' अटेंड करते पाये गये ! पता नहीं, सच्ची श्रद्धांजलि भी हम क्यों नहीं दे पाते,पर एक ओर जहां हमारे मानस-पटल इन कलाकारों को देखकर उनके रास्ते पर चलने का प्रयास करते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ वे ऐसे-ऐसे फिल्मों में काम करते हैं, जिससे उनके तो पेट भर जाते हैं, लेकिन युवा पीढ़ी काफी 'सेक्सिया' जाते हैं ! उनके द्वारा प्रचार किये हुए 'गोरे' बनानेवाले क्रीम से जहाँ एक वर्ग रंगभेद का शिकार हो जा रहे हैं........ अरे...अरे ! मैं भी कहाँ ले आये, अपने प्यारे पाठकों को , छोड़िये इस कलाकारी दुनिया को, जो आभासी दुनिया भी है । वास्तविक स्थिति को द्रष्टव्य कराने के लिए आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट लेकर आई है, कवयित्री रीता यादव की प्रस्तुत कविता । आइये, इसे पढ़ते हैं-----
मिलते हैं गले हम, परहमारे दिल नहीं मिलते l
झूठी है मुस्कान, कि हमारे होठ नहीं हिलते ll
मिलना-जुलना फ़ख़्त, शिष्टाचार रह गया l
व्यवहार भी अब यहां, लाचार ठहर गया ll
नमस्कार दोस्तों !
अभिनेता आजकल का
अभिनेता आजकल का, हर शख्स हो गया है l
खालिस दिलों के अब, इस जहां में खो गया है ll
खालिस दिलों के अब, इस जहां में खो गया है ll
मिलते हैं गले हम, परहमारे दिल नहीं मिलते l
झूठी है मुस्कान, कि हमारे होठ नहीं हिलते ll
मिलना-जुलना फ़ख़्त, शिष्टाचार रह गया l
व्यवहार भी अब यहां, लाचार ठहर गया ll
तहजीब चल रही थी, पुरखार राहों पर गया ।
चलते-चलते इनका भी तो, दम निकल गया ll
चलते-चलते इनका भी तो, दम निकल गया ll
दृष्टि, हया मर गई अब औ' मर गई उनकी आत्मा l
विनती रीता की सुन ! पुतले में जान दे परमात्मा ll
नमस्कार दोस्तों !
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