बिहार की शिक्षा के परिपेक्ष्य पर पढ़ते है -- मैसेंजर ऑफ ऑर्ट के संपादक की राय ।
बिहार के शिक्षा मंत्री डॉ0 अशोक चौधरी का ये बयान बचकानी और ओछी मानसिकता लिए है कि 'नियोजित शिक्षक बिहार के बोझ हैं'। इसबात उन्हें खुद इस्तीफ़ा क्यों न दे देने चाहिए या महामहिम राज्यपाल को सीधे ही ऐसे मंत्री महोदय को बर्खास्त कर देना चाहिए, क्योंकि जिनकी भाषा में धमकी के स्वर और सामंती बू आ रही है और जो खुद पीएच.डी. होकर अशालीन हो ।नियोजित शिक्षकों के वजूद में आये 10 साल व्यतीत हो गए, किन्तु अभी भी प्रायः विद्यालयों में सभी विषयों के शिक्षक नहीं हैं । इतना ही नहीं, TET के माध्यम से बहाल शिक्षक अन्य वर्गों के लिए और अन्य विषयों के लिए होने के बावजूद वह कई वर्षों से शिक्षकाभाव के कारण अन्य वर्ग और विषयों को पढ़ाते हैं । छात्र और शिक्षक का अनुपात बिहार के प्रायः उच्च विद्यालयों में राष्ट्रीय अनुपात से काफी कम है । सबसे मूलभूत समस्या उनके वेतन की है, एक तो समान काम के समान वेतन प्राप्त नहीं होते हैं, दूजे 3-4 माह पर ही वेतन प्राप्त हो पाता है । समाज और सरकार दोनों ही नियोजित शिक्षकों को हेय दृष्टि से देखते हैं तथा सरकार ट्यूशन को बंद कराने में कड़ाई से पालन नहीं करते हैं, जिनके कारण ऐसे में छात्र भी ट्यूटर को गुरु और भगवान मान बैठते हैं । छात्र के अभिभावक भी बच्चों को ट्यूशन ही भेजते हैं ।
बिहार के शिक्षा मंत्री डॉ0 अशोक चौधरी का ये बयान बचकानी और ओछी मानसिकता लिए है कि 'नियोजित शिक्षक बिहार के बोझ हैं'। इसबात उन्हें खुद इस्तीफ़ा क्यों न दे देने चाहिए या महामहिम राज्यपाल को सीधे ही ऐसे मंत्री महोदय को बर्खास्त कर देना चाहिए, क्योंकि जिनकी भाषा में धमकी के स्वर और सामंती बू आ रही है और जो खुद पीएच.डी. होकर अशालीन हो ।नियोजित शिक्षकों के वजूद में आये 10 साल व्यतीत हो गए, किन्तु अभी भी प्रायः विद्यालयों में सभी विषयों के शिक्षक नहीं हैं । इतना ही नहीं, TET के माध्यम से बहाल शिक्षक अन्य वर्गों के लिए और अन्य विषयों के लिए होने के बावजूद वह कई वर्षों से शिक्षकाभाव के कारण अन्य वर्ग और विषयों को पढ़ाते हैं । छात्र और शिक्षक का अनुपात बिहार के प्रायः उच्च विद्यालयों में राष्ट्रीय अनुपात से काफी कम है । सबसे मूलभूत समस्या उनके वेतन की है, एक तो समान काम के समान वेतन प्राप्त नहीं होते हैं, दूजे 3-4 माह पर ही वेतन प्राप्त हो पाता है । समाज और सरकार दोनों ही नियोजित शिक्षकों को हेय दृष्टि से देखते हैं तथा सरकार ट्यूशन को बंद कराने में कड़ाई से पालन नहीं करते हैं, जिनके कारण ऐसे में छात्र भी ट्यूटर को गुरु और भगवान मान बैठते हैं । छात्र के अभिभावक भी बच्चों को ट्यूशन ही भेजते हैं ।
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