क्या हर परिस्थितियों में सवाल पुरुषों की मानसिकता पर ही उठने चाहिए ? क्या पुरूष तुच्छ मानसिकता के वशीभूत होते हैं ? ... या स्त्रियाँ भी 'रति' से भी आगे बढ़ी हुई होती हैं ! चूँकि आज सोशल मीडिया का युग है, जहाँ कोई पुरुष 'एंजेल प्रिया' के नाम से फेसबुक पर पाये जाते हैं, तो कोई महिला राइटर अपनी 'बुक' को लांच के लिए इन पुरुष फेसबुकर को आग्रही बना अपनी 'किताब' बेचने के लिए मैसेज बॉक्स में 'बिन मांगे फ्रेंड' की तरह अपनी 'बुक' का लिंक भेजकर खरीदवाने की कोशिश में 100 फीसदी लगी रहती हैं ? लेकिन यहां कौन, किसे दोषी कहे ? दोनों लिंग्धर्मी के अपनी डफली, अपने राग हैं... दोषी दोनों हैं । अगर पुरुष-स्त्री के बीच संसर्ग अनिवार्य है, तो यह कहना ज्यादा सरल होगा कि आग दोनों तरफ लगी है यानी दोनों पक्ष दोषी हैं ! महिला पक्ष को मजबूती दिलाती व हिंदी और हरियाणवी भाषा में जबरदस्त पकड़ बनाई हुई बिंदास कवयित्री डॉ. सुलक्षणा रचित आग उगलती कविता को आइये पढ़ते हैं, 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' के प्रस्तुत अंक में ----
पता नहीं कब बदलेगी पुरुषों की मानसिकता,
औरतों की देह के आगे कुछ नहीं इन्हें दिखता ।
फेसबुक पर भेजते औरतों को मित्रता निवेदन,
स्वीकार होते ही निवेदन संदेश असभ्य भेजता ।
फिर पोस्ट देखने की बजाए देखता वो तस्वीर,
फिर उन तस्वीरों पर अभद्र टिप्पणियाँ लिखता ।
कई तस्वीरों को साझा करता अपने दोस्तों से,
हर औरत के प्रति गंदे विचार दिमाग पे रखता ।
संदेश का जवाब नहीं मिलने पर भड़क जाता,
फिर एक पल भी मित्रता-सूची में नहीं टिकता ।
दे देती है कोई औरत पलट कर जवाब करारा,
घटिया सोच है तुम्हारी कह औरत पर चीखता ।
करके गलती सरेआम पुरुष खुद ही अकड़ता,
अपनी पिछली गलतियों से नहीं सबक सीखता ।
सुलक्षणा के जैसे यदि कोई दे देती है चेतावनी,
कहता है लिखती हो तुम घटिया-घटिया कविता ।
पता नहीं कब बदलेगी पुरुषों की मानसिकता,
औरतों की देह के आगे कुछ नहीं इन्हें दिखता ।
फेसबुक पर भेजते औरतों को मित्रता निवेदन,
स्वीकार होते ही निवेदन संदेश असभ्य भेजता ।
फिर पोस्ट देखने की बजाए देखता वो तस्वीर,
फिर उन तस्वीरों पर अभद्र टिप्पणियाँ लिखता ।
कई तस्वीरों को साझा करता अपने दोस्तों से,
हर औरत के प्रति गंदे विचार दिमाग पे रखता ।
संदेश का जवाब नहीं मिलने पर भड़क जाता,
फिर एक पल भी मित्रता-सूची में नहीं टिकता ।
दे देती है कोई औरत पलट कर जवाब करारा,
घटिया सोच है तुम्हारी कह औरत पर चीखता ।
करके गलती सरेआम पुरुष खुद ही अकड़ता,
अपनी पिछली गलतियों से नहीं सबक सीखता ।
सुलक्षणा के जैसे यदि कोई दे देती है चेतावनी,
कहता है लिखती हो तुम घटिया-घटिया कविता ।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
0 comments:
Post a Comment