क्या नारीवादी सोच का मतलब यह है कि सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया में सिर्फ उनकी पीरियड्स, लाल धब्बे या उनकी द्वारा पहने कपड़े की short story इत्यादि के बारे में बात लिखी जाय ? कुछ दिनों से 'फेसबुकिये समाज' में "सेल्फी विदाउट मेकअप " की परंपरा चल रही हैं ! महिलाओं के द्वारा ही किए जा रही ऐसे प्रयोग शायद श्रृंगार-रोक पर हो या अन्य बहुत से कारणों को लेकर, लेकिन बिना मेकअप की कुछ फोटो डाल देने भर से क्या होगा ? जब किसी काले व्यक्ति को देखकर लोग उन्हें पीठ-पीछे 'रंगभेद' की डाह से 'करिया' ही बुलाते हों और गोर-गोर लड़के-लड़की की शादियाना-मांग ही रखे रहना क्या है यह सब ? हाल-फिलहाल बॉलीवुड अभिनेता 'नवाजुद्दीन सिद्दीकी' का बयान -- यह साबित करने के लिये काफी है कि उनके साथ रंग-भेद -व्यवहार एक महिला ने ही आरम्भ की थी , तो फिर यह कैसी नौटंकीबाजी है, महिलाओं द्वारा चलाई जा रही 'सेल्फी विदाउट मेकअप' मूवमेंट !! यह मुद्दा बहुत सारे अनमोल प्रश्नों को जन्म देती हैं । छोड़िये, मैं भी कहाँ ले आया आपको ? आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़ते हैं, हमारी भूमिकाजन्य मीमांसा लिए दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता कर रहे श्रीमान आकाश सिंह की प्रस्तुत महिलाजन्य-सवालिया आलेख ... ये लीजिये-----
आपका महिलावाद
चलिए थोड़ा सोचते हैं कि कुछ महिलावाद की बातों पर ठीक से प्रकाश डालते हैं, कुछ तथाकथित महिलावाद की किताबें थोड़ा और पढ़ते हैं, कुछ तथाकथित फेमिनिस्ट की बातें ज़हन में उतारते हैं, चलिए थोड़ा-सा और सोचते हैं ...!!
महिलावाद बनाम पुरुषवाद की इतनी खोखली लड़ाई हम लड़ने को व्याकुल होते जा रहे हैं कि हमने सोचना छोड़ दिया है वो लड़कियां या वो तथाकथित फेमिनिस्ट जो महिलावाद पर लिख रहे हैं उस पर अपने विचार रख रहे हैं वो असल में विचार व्यक्त नहीं कर रहे हैं वो विचार थोप रहे हैं !
आप अगर उनकी बात को पसंद नहीं करते हैं या सुनना नहीं चाहते हैं तो फिर आप एक संकीर्ण पुरुषवादी मानसिकता के शिकार हो चुके हैं । यह मैं नहीं ऐसा वो कह रहे हैं ..!
मैं व्यक्तिगत स्तर पर महिलाओं की इज्ज़त करता हूँ हम सभी को करना चाहिए लेकिन मुझे नहीं पसंद की मैं किसी लड़की से उसके पीरियड्स के बारे में सुनूँ !!
मुझे आपका खुलकर बात करने में मुझे कोई परहेज़ नहीं, लेकिन इस खुलेपन के नाम पर आप अपनी पीरियड्स से रंगे हुए बेडशीट का फोटो सोशल मिडिया पर डाल कर अपने खोखले महिलावाद का प्रदर्शन करती हैं !
आप पान की टापरी पर खुल कर सुट्टा पीने और कहीं भी खुलकर गरियाने को महिला सशक्तिकरण का ढोल बता कर सोशल मिडिया पर पीटते हैं आज के अर्थात आप के महिलावाद को अगर थोडा सा ठीक से पढ़ा जाए और उसको समझने की कोशिश किया जाए तो यकीन मानिये नतीजा ये निकलेगा --
'महिलावाद की पहली शर्त ये हैं की आपके हाथ में सिगरेट तो होनी ही चाहिए , फर्जी महिलावाद को पढने के बाद हमारे दिमाग में महिलावाद की जो तस्वीर बनती है वो यह है कि एक लड़की जिसने छोटे कपडें पहन रखे हो और उसके हाथ में सिगरेट तो ज़रूरी ही है।
आप इस हद तक लिखते और सोचते हैं कि आप अपने महिलावाद की नींव गालियों, पीरियड्स की तसवीरें , सिगरेट शराब और पुरुषों की बुराई पर रख कर दना दन ढोल पीट रहे हैं ...!'
हाँ ! मैं ये बात भी मानता हूँ कि हमारे इतिहास में महिलाओं को विशेष सम्मान तो दी जाती रही हैं, लेकिन वास्तविकता में कभी द्रौपदी का चीरहरण होता था कभी पांच भाइयों में बाँट भी दिया जाता हैं तो कभी सतीप्रथा के नामपर अन्धविश्वास । इससे उबरने के लिए महिलावाद की आवश्यकता निश्चित तौर पर थी, लेकिन आपने जिन विचारधाराओं को महिलावाद का नाम दे कर परोसना शुरू किया है, यकीनी तौर पर वो महिलावाद तो नहीं है, किन्तु महिलाओं को आगे ले जाने के लिए शराब या सिगेरेट या गालियों की कोई आवश्यकता नहीं है..! आवश्यकता है तो बस उनको समझने की कि उनके खिलाफ घरेलु हिंसा रोकने की उनके हो रहे बलात्कारों को रोकने की आवश्यकता है ।
धूम्रपान के निषेध का पक्षधर हूँ, किन्तु अगर एक क्षण के लिए सिगरेट पीने से या गालियों से कोई आपत्ति नहीं है-- को मान लूँ , तो भी आप उसको महिलावाद बता कर महिलावाद को ही गलत बना दे रहे हैं ! आप उस महिलावाद की तस्वीर को बदलने पर तुले हुए हैं, इससे महिलाएं सशक्त तो नहीं होंगी लेकिन ये देश पहले पुरुषवाद का शिकार था, अब महिलावाद का हो जायेगा ....!!
आपका महिलावाद
चलिए थोड़ा सोचते हैं कि कुछ महिलावाद की बातों पर ठीक से प्रकाश डालते हैं, कुछ तथाकथित महिलावाद की किताबें थोड़ा और पढ़ते हैं, कुछ तथाकथित फेमिनिस्ट की बातें ज़हन में उतारते हैं, चलिए थोड़ा-सा और सोचते हैं ...!!
महिलावाद बनाम पुरुषवाद की इतनी खोखली लड़ाई हम लड़ने को व्याकुल होते जा रहे हैं कि हमने सोचना छोड़ दिया है वो लड़कियां या वो तथाकथित फेमिनिस्ट जो महिलावाद पर लिख रहे हैं उस पर अपने विचार रख रहे हैं वो असल में विचार व्यक्त नहीं कर रहे हैं वो विचार थोप रहे हैं !
आप अगर उनकी बात को पसंद नहीं करते हैं या सुनना नहीं चाहते हैं तो फिर आप एक संकीर्ण पुरुषवादी मानसिकता के शिकार हो चुके हैं । यह मैं नहीं ऐसा वो कह रहे हैं ..!
मैं व्यक्तिगत स्तर पर महिलाओं की इज्ज़त करता हूँ हम सभी को करना चाहिए लेकिन मुझे नहीं पसंद की मैं किसी लड़की से उसके पीरियड्स के बारे में सुनूँ !!
मुझे आपका खुलकर बात करने में मुझे कोई परहेज़ नहीं, लेकिन इस खुलेपन के नाम पर आप अपनी पीरियड्स से रंगे हुए बेडशीट का फोटो सोशल मिडिया पर डाल कर अपने खोखले महिलावाद का प्रदर्शन करती हैं !
आप पान की टापरी पर खुल कर सुट्टा पीने और कहीं भी खुलकर गरियाने को महिला सशक्तिकरण का ढोल बता कर सोशल मिडिया पर पीटते हैं आज के अर्थात आप के महिलावाद को अगर थोडा सा ठीक से पढ़ा जाए और उसको समझने की कोशिश किया जाए तो यकीन मानिये नतीजा ये निकलेगा --
'महिलावाद की पहली शर्त ये हैं की आपके हाथ में सिगरेट तो होनी ही चाहिए , फर्जी महिलावाद को पढने के बाद हमारे दिमाग में महिलावाद की जो तस्वीर बनती है वो यह है कि एक लड़की जिसने छोटे कपडें पहन रखे हो और उसके हाथ में सिगरेट तो ज़रूरी ही है।
आप इस हद तक लिखते और सोचते हैं कि आप अपने महिलावाद की नींव गालियों, पीरियड्स की तसवीरें , सिगरेट शराब और पुरुषों की बुराई पर रख कर दना दन ढोल पीट रहे हैं ...!'
हाँ ! मैं ये बात भी मानता हूँ कि हमारे इतिहास में महिलाओं को विशेष सम्मान तो दी जाती रही हैं, लेकिन वास्तविकता में कभी द्रौपदी का चीरहरण होता था कभी पांच भाइयों में बाँट भी दिया जाता हैं तो कभी सतीप्रथा के नामपर अन्धविश्वास । इससे उबरने के लिए महिलावाद की आवश्यकता निश्चित तौर पर थी, लेकिन आपने जिन विचारधाराओं को महिलावाद का नाम दे कर परोसना शुरू किया है, यकीनी तौर पर वो महिलावाद तो नहीं है, किन्तु महिलाओं को आगे ले जाने के लिए शराब या सिगेरेट या गालियों की कोई आवश्यकता नहीं है..! आवश्यकता है तो बस उनको समझने की कि उनके खिलाफ घरेलु हिंसा रोकने की उनके हो रहे बलात्कारों को रोकने की आवश्यकता है ।
धूम्रपान के निषेध का पक्षधर हूँ, किन्तु अगर एक क्षण के लिए सिगरेट पीने से या गालियों से कोई आपत्ति नहीं है-- को मान लूँ , तो भी आप उसको महिलावाद बता कर महिलावाद को ही गलत बना दे रहे हैं ! आप उस महिलावाद की तस्वीर को बदलने पर तुले हुए हैं, इससे महिलाएं सशक्त तो नहीं होंगी लेकिन ये देश पहले पुरुषवाद का शिकार था, अब महिलावाद का हो जायेगा ....!!
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
आप धूम्रपान के पक्षधर है और हम मादक पदार्थों के पक्ष के विरोध में है..बाकी पूरा लेख अच्छा हैं👌👌👌👌
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