'इनबॉक्स इंटरव्यू' में इसबार हैं:---
नाम- ख़ुशबू सक्सेना 'स्वप्निल'
पुत्री- श्री गोविन्द गुलशन
शिक्षा- एम.ए.(हिंदी)
जन्म स्थान- ग़ाज़ियाबाद
जन्म तिथि- 04 जनवरी 1988
स्वयं में खुशबू हैं और स्वप्न में होकर भी वास्तविक जीवन के स्वप्निल चाह लिए संसार में, काव्य-सृजन संसार में व शे'रों -शायरियों के संसार में छाती जा रही हैं । शायरी और स्केचिंग से इन्हें न केवल बेहद लगाव है, अपितु इन्हें ये मोहतरमा आत्मसात् की हुई हैं ! सुश्री खुशबू सक्सेना 'स्वप्निल' के द्वारा शे'र कहने का अंदाज़ बिना लाग-लपेट लिए है । वे अपने को जन्मजात शायरा मानती हैं, तो अमृता प्रीतम की इमरोज़-सदृशा लेडी चित्रकार भी ! देवनागरी लिपि में कई भाषाई बोलों को पिरोकर इनकी ग़ज़ल और नज़्म बनी होती हैं, तो कैनवास पर उकेरी गई रेखांकन कई प्रकार की दर्शन कराती हैं, जिनमें खासप्रकार के मार्गदर्शन भी होता है । कई पत्रिकाओं की कवरेज बनी सुश्री खुशबू की कविताओं में आग तो है ही, साथ ही वे अपने चित्रों के माध्यम से आग में पानी देने का कार्य भी करती हैं । आग और पानी के इस खेल में आइये, इसबार के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में हम कविता और चित्र के संयुक्त हस्ताक्षर सुश्री खुशबू सक्सेना 'स्वप्निल' के साक्षात्कार को पढ़ते हैं:----
1.) आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:- कलाकार अपनी छवि को जन-जन तक पहुँचाना चाहता है । मुझे लगता है, इंटरनेट बेहतरीन और सरल माध्यम है, इसलिए मैंने भी ऐसा ही किया । क्योंकि मैं ख़ुद विभिन्न कला से जुड़ी हुई हूँ:- साहित्य, चित्रकला और अन्य क्षेत्र भी ।
प्र.(2.) आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:- जन्म साहित्यिक परिवार में । ...तो कला का अंकुरण घर से ही, यूँ कह सकते हैं , ये सब पैदाइशी है। चूंकि मेरे पिता भी अदबी ख़िदमात करते हैं । शायर हैं वे भी ! घर का माहौल शुरू से अदबी रही, तो पिताजी के साथ या उनसे मुलाक़ात के लिए उनके जो दोस्त घर आते थे, ज़्यादातर उनमें शायर होते थे । घर पर नाश्ते होती थी, तो विश्वप्रसिद्ध श्रद्धेय कृष्ण बिहारी 'नूर' साहब का घर में काफी आना जाना था उन के साथ मुशायरों में जाना होता था कुछ न कुछ सभी से सीखने को मिलता रहा । मैंने अपनी पहली ग़ज़ल नूर साहिब के सान्निध्य में रची । एक के बाद एक मेरी शायरी में निखार भी आनी शुरू हुई और आज भी मैं सीख ही रही हूँ। चित्रकारिता से जुड़ना भी कोई अजूबा नहीं है, मेरी ख़्वाहिशात में हमेशा कुछ न कुछ नया करना शामिल रहा है । साहित्यकार मन से तो चित्रकार होता ही है, मगर मैं इसे काग़ज़ पर भी उतार रही हूँ । कक्षा 12वीं की परीक्षा देते ही मैंने दिल्ली दूरदर्शन के बज़्म प्रोग्राम की एंकरिंग शुरू की, उसके बाद विभिन्न चैनल के प्रोग्राम किये। बस लोगों का प्रोत्साहन ही मेरा मार्गदर्शन है।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किस तरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:- समाज में फैली बुराइयों को ख़त्म करने का आसान ज़रिया साहित्य है । तो कलाकार भी अपनी कला के माध्यम से सामाजिक विकारों को दूर करता है।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:- थोड़ी-बहुत दिक़्क़त तो शुरुआती समय में हर क्षेत्र में सभी के सामने आती हैं, मगर इन दिक्कतों को लिए शिल्प काव्य-सृजन के लिए बेहद ज़रूरी होता है, जिसे जानने में वक़्त भी लगता है तथा काव्य-सृजन में शब्दों के चयन भी अहम होते है, मगर धीरे-धीरे सब आसान लगने लगता है।
उर्दू शायरी में हिंदी और अंग्रेज़ी के शब्दों के चयन में परेशानी आड़े आई या यूँ कहूँ तो, हिंदी कविता में उर्दू शब्दों के चयन से कविता आलंकारिक बना है, इसके इतर मैंने सभी ज़ुबान के शब्दों का प्रयोग किया । द्रष्टव्य हैं, 'शे'र' :---
एक्टिंग डूबने की करता है,
डूबता तो नहीं कभी सूरज,
💐💐💐💐💐💐💐💐
वो अगर मुझको सांत्वना देता,
मेरी आवाज़ और भर जाती ।
महिला होने के नाते मुझे दूसरी दिक्कत रात-बेरात मुशायरों में आने-जाने से हुई है, जिसके चलते मुझे कई बार मुशायरा या कवि सम्मेलन में भाग लेने से मना भी करना पड़ता है।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:- परिवार का सहयोग तो साथ है ही। वैसे अबतक कोई ख़ास दिक्कत से रु ब रु नहीं होनी पड़ी है । इतना ज़रूर है कि अध्ययन करने के लिए किताबों की ज़रूरत हुआ करती है, जिन्हें खरीदने के लिए रुपये-पैसे खर्च करने होते हैं, इसलिए परिवार का सहयोग न मिले, तो मुश्किल आ जाए ।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:- साहित्यिक परिवार में जन्मी हूँ तो बस यहीं से शौक़ हुई । परिवार का सहयोग और प्रोत्साहन बहुत ज़रूरी है । मैं ख़ुशनसिब हूँ कि पूरे परिवार का सहयोग मिलती रही है ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:- सबसे पहले मेरा परिवार और फिर घर में भी शायरों के आवागमन गाहे-बगाहे होते रहते हैं, इन सभी से कुछ न कुछ सीखने को मिलती है ।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:- भारतीय संस्कृति को संजोए रखने में कला पक्ष का बहुत बड़ा योगदान है,इसलिए कला पक्ष को भारतीय संस्कृति की 'संरक्षक' कहें, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी !
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:- 'शायरी' समाज का आईना है । एक सभ्य समाज के लिए कविता तब और आवश्यक हो जाती हैं, जब भ्रष्टाचार, लड़ाई-झगड़ा, समाज में कुरीतियाँ इत्यादि व्याप्त हो जाती हैं, तब इसे खत्म करने तथा समाज में आपसी प्रेम, भाई-चारे को बढ़ावे का संदेश देने के लिए 'कविता' एक सशक्त माध्यम के तौर पर उभरता है।
प्र.(10.) इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:- कलाकार को प्रोत्साहन की ज़रूरत होती है। उसकी कला को सम्मान और पहचान मिले, यही तो हर कलाकार चाहता है। मुझे अबतक कोई बाहरी मदद मुतअल्लिक़ नहीं हुई है।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:- नहीं ।
प्र.(12.) कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:- किताब तो अबतक कोई नहीं प्रकाशित हुई है, पर समाचार पत्र, प्रिंट पत्रिकाओं सहित ऑनलाइन पत्रिकाओं में मेरी रचनाएं निरंतर प्रकशित होती रहती हैं। दूरदर्शन और अन्य राष्ट्रीय टी.वी. चैनलों और समाचार पत्रों में मेरे इंटरव्यू प्रसारित व प्रकाशित हुई हैं, तो मेरे द्वारा स्वकाव्य पाठ का प्रसारण भी निरंतर हुई है, यथा:- दिल्ली दूरदर्शन, डी डी उर्दू, etv, ज़ी सलाम इत्यादि पर ।
प्र.(13.) इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरुस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:- साल 2003 में जब मैं कक्षा- नवम् की छात्रा थी, तो मैंने मुशायरे पढ़ने शुरू कर दी थी । ग्यारहवीं कक्षा में मुझे रंजन कलश, भोपाल द्वारा सम्मानित किया गया, फिर जामिया में जब एडमिशन मिली, तो जामिया में भी मुशायरे पढ़ने को मिली, जहां शायरा के रूप में केवल मैं ही छात्रा होती थी, बाकी बड़े-बड़े शायर । फिर धीरे-धीरे कारवाँ बढ़ता चला गया और इस सम्मान की श्रृंखला बनती चली गयी । इसी क्रम में मैं अंजुमन-ए-ग़ज़ल से सम्मानित हुई ।
ध्यातव्य है, व्यक्ति तथा समाज विकासार्थ भारतीय संस्था द्वारा सम्मान प्राप्त हुई । दीवान ए ख़ास फाउंडेशन, दिल्ली द्वारा 2014 में अंजुम ए आरा सम्मान मिला, तो 2015 में मुझे उत्तर प्रदेश चैप्टर से अनुराग सिंह ठाकुर और मिसेस इंडिया उदिता त्यागी द्वारा काव्य के क्षेत्र में 'ऑनर अवर वुमन' सम्मान मिला । सुदर्शन चैनल की तरफ से युवा काव्य सम्मान सहित स्कूल-कॉलेजों के द्वारा भी मुझे कई बार सम्मान प्राप्त हुई । देश के कई साहित्यिक व सामाजिक मंचों से भी सम्मान प्राप्त हुई हैं ।
नाम- ख़ुशबू सक्सेना 'स्वप्निल'
पुत्री- श्री गोविन्द गुलशन
शिक्षा- एम.ए.(हिंदी)
जन्म स्थान- ग़ाज़ियाबाद
जन्म तिथि- 04 जनवरी 1988
सुश्री खुशबू सक्सेना 'स्वप्निल' |
स्वयं में खुशबू हैं और स्वप्न में होकर भी वास्तविक जीवन के स्वप्निल चाह लिए संसार में, काव्य-सृजन संसार में व शे'रों -शायरियों के संसार में छाती जा रही हैं । शायरी और स्केचिंग से इन्हें न केवल बेहद लगाव है, अपितु इन्हें ये मोहतरमा आत्मसात् की हुई हैं ! सुश्री खुशबू सक्सेना 'स्वप्निल' के द्वारा शे'र कहने का अंदाज़ बिना लाग-लपेट लिए है । वे अपने को जन्मजात शायरा मानती हैं, तो अमृता प्रीतम की इमरोज़-सदृशा लेडी चित्रकार भी ! देवनागरी लिपि में कई भाषाई बोलों को पिरोकर इनकी ग़ज़ल और नज़्म बनी होती हैं, तो कैनवास पर उकेरी गई रेखांकन कई प्रकार की दर्शन कराती हैं, जिनमें खासप्रकार के मार्गदर्शन भी होता है । कई पत्रिकाओं की कवरेज बनी सुश्री खुशबू की कविताओं में आग तो है ही, साथ ही वे अपने चित्रों के माध्यम से आग में पानी देने का कार्य भी करती हैं । आग और पानी के इस खेल में आइये, इसबार के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में हम कविता और चित्र के संयुक्त हस्ताक्षर सुश्री खुशबू सक्सेना 'स्वप्निल' के साक्षात्कार को पढ़ते हैं:----
1.) आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:- कलाकार अपनी छवि को जन-जन तक पहुँचाना चाहता है । मुझे लगता है, इंटरनेट बेहतरीन और सरल माध्यम है, इसलिए मैंने भी ऐसा ही किया । क्योंकि मैं ख़ुद विभिन्न कला से जुड़ी हुई हूँ:- साहित्य, चित्रकला और अन्य क्षेत्र भी ।
प्र.(2.) आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:- जन्म साहित्यिक परिवार में । ...तो कला का अंकुरण घर से ही, यूँ कह सकते हैं , ये सब पैदाइशी है। चूंकि मेरे पिता भी अदबी ख़िदमात करते हैं । शायर हैं वे भी ! घर का माहौल शुरू से अदबी रही, तो पिताजी के साथ या उनसे मुलाक़ात के लिए उनके जो दोस्त घर आते थे, ज़्यादातर उनमें शायर होते थे । घर पर नाश्ते होती थी, तो विश्वप्रसिद्ध श्रद्धेय कृष्ण बिहारी 'नूर' साहब का घर में काफी आना जाना था उन के साथ मुशायरों में जाना होता था कुछ न कुछ सभी से सीखने को मिलता रहा । मैंने अपनी पहली ग़ज़ल नूर साहिब के सान्निध्य में रची । एक के बाद एक मेरी शायरी में निखार भी आनी शुरू हुई और आज भी मैं सीख ही रही हूँ। चित्रकारिता से जुड़ना भी कोई अजूबा नहीं है, मेरी ख़्वाहिशात में हमेशा कुछ न कुछ नया करना शामिल रहा है । साहित्यकार मन से तो चित्रकार होता ही है, मगर मैं इसे काग़ज़ पर भी उतार रही हूँ । कक्षा 12वीं की परीक्षा देते ही मैंने दिल्ली दूरदर्शन के बज़्म प्रोग्राम की एंकरिंग शुरू की, उसके बाद विभिन्न चैनल के प्रोग्राम किये। बस लोगों का प्रोत्साहन ही मेरा मार्गदर्शन है।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किस तरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:- समाज में फैली बुराइयों को ख़त्म करने का आसान ज़रिया साहित्य है । तो कलाकार भी अपनी कला के माध्यम से सामाजिक विकारों को दूर करता है।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:- थोड़ी-बहुत दिक़्क़त तो शुरुआती समय में हर क्षेत्र में सभी के सामने आती हैं, मगर इन दिक्कतों को लिए शिल्प काव्य-सृजन के लिए बेहद ज़रूरी होता है, जिसे जानने में वक़्त भी लगता है तथा काव्य-सृजन में शब्दों के चयन भी अहम होते है, मगर धीरे-धीरे सब आसान लगने लगता है।
उर्दू शायरी में हिंदी और अंग्रेज़ी के शब्दों के चयन में परेशानी आड़े आई या यूँ कहूँ तो, हिंदी कविता में उर्दू शब्दों के चयन से कविता आलंकारिक बना है, इसके इतर मैंने सभी ज़ुबान के शब्दों का प्रयोग किया । द्रष्टव्य हैं, 'शे'र' :---
एक्टिंग डूबने की करता है,
डूबता तो नहीं कभी सूरज,
💐💐💐💐💐💐💐💐
वो अगर मुझको सांत्वना देता,
मेरी आवाज़ और भर जाती ।
महिला होने के नाते मुझे दूसरी दिक्कत रात-बेरात मुशायरों में आने-जाने से हुई है, जिसके चलते मुझे कई बार मुशायरा या कवि सम्मेलन में भाग लेने से मना भी करना पड़ता है।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:- परिवार का सहयोग तो साथ है ही। वैसे अबतक कोई ख़ास दिक्कत से रु ब रु नहीं होनी पड़ी है । इतना ज़रूर है कि अध्ययन करने के लिए किताबों की ज़रूरत हुआ करती है, जिन्हें खरीदने के लिए रुपये-पैसे खर्च करने होते हैं, इसलिए परिवार का सहयोग न मिले, तो मुश्किल आ जाए ।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:- साहित्यिक परिवार में जन्मी हूँ तो बस यहीं से शौक़ हुई । परिवार का सहयोग और प्रोत्साहन बहुत ज़रूरी है । मैं ख़ुशनसिब हूँ कि पूरे परिवार का सहयोग मिलती रही है ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:- सबसे पहले मेरा परिवार और फिर घर में भी शायरों के आवागमन गाहे-बगाहे होते रहते हैं, इन सभी से कुछ न कुछ सीखने को मिलती है ।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:- भारतीय संस्कृति को संजोए रखने में कला पक्ष का बहुत बड़ा योगदान है,इसलिए कला पक्ष को भारतीय संस्कृति की 'संरक्षक' कहें, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी !
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:- 'शायरी' समाज का आईना है । एक सभ्य समाज के लिए कविता तब और आवश्यक हो जाती हैं, जब भ्रष्टाचार, लड़ाई-झगड़ा, समाज में कुरीतियाँ इत्यादि व्याप्त हो जाती हैं, तब इसे खत्म करने तथा समाज में आपसी प्रेम, भाई-चारे को बढ़ावे का संदेश देने के लिए 'कविता' एक सशक्त माध्यम के तौर पर उभरता है।
प्र.(10.) इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:- कलाकार को प्रोत्साहन की ज़रूरत होती है। उसकी कला को सम्मान और पहचान मिले, यही तो हर कलाकार चाहता है। मुझे अबतक कोई बाहरी मदद मुतअल्लिक़ नहीं हुई है।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:- नहीं ।
प्र.(12.) कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:- किताब तो अबतक कोई नहीं प्रकाशित हुई है, पर समाचार पत्र, प्रिंट पत्रिकाओं सहित ऑनलाइन पत्रिकाओं में मेरी रचनाएं निरंतर प्रकशित होती रहती हैं। दूरदर्शन और अन्य राष्ट्रीय टी.वी. चैनलों और समाचार पत्रों में मेरे इंटरव्यू प्रसारित व प्रकाशित हुई हैं, तो मेरे द्वारा स्वकाव्य पाठ का प्रसारण भी निरंतर हुई है, यथा:- दिल्ली दूरदर्शन, डी डी उर्दू, etv, ज़ी सलाम इत्यादि पर ।
प्र.(13.) इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरुस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:- साल 2003 में जब मैं कक्षा- नवम् की छात्रा थी, तो मैंने मुशायरे पढ़ने शुरू कर दी थी । ग्यारहवीं कक्षा में मुझे रंजन कलश, भोपाल द्वारा सम्मानित किया गया, फिर जामिया में जब एडमिशन मिली, तो जामिया में भी मुशायरे पढ़ने को मिली, जहां शायरा के रूप में केवल मैं ही छात्रा होती थी, बाकी बड़े-बड़े शायर । फिर धीरे-धीरे कारवाँ बढ़ता चला गया और इस सम्मान की श्रृंखला बनती चली गयी । इसी क्रम में मैं अंजुमन-ए-ग़ज़ल से सम्मानित हुई ।
ध्यातव्य है, व्यक्ति तथा समाज विकासार्थ भारतीय संस्था द्वारा सम्मान प्राप्त हुई । दीवान ए ख़ास फाउंडेशन, दिल्ली द्वारा 2014 में अंजुम ए आरा सम्मान मिला, तो 2015 में मुझे उत्तर प्रदेश चैप्टर से अनुराग सिंह ठाकुर और मिसेस इंडिया उदिता त्यागी द्वारा काव्य के क्षेत्र में 'ऑनर अवर वुमन' सम्मान मिला । सुदर्शन चैनल की तरफ से युवा काव्य सम्मान सहित स्कूल-कॉलेजों के द्वारा भी मुझे कई बार सम्मान प्राप्त हुई । देश के कई साहित्यिक व सामाजिक मंचों से भी सम्मान प्राप्त हुई हैं ।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:- मैं ग़ाज़ियाबाद से ताल्लुक़ रखती हूँ और यहीं से मेरी साहित्यिक और कलात्मक गतिविधियां को उड़ान मिलती है।
मेरी शायरी का मक़सद 'मोहब्बत' का पैग़ाम देना है । मैं भी चाहूंगी कि हमारा समाज सभ्य समाज हो तथा जहाँ आपसी भाई-चारा कायम रहे । सभी धर्म और जाति के लोग आपस में मिलजुल रहकर उनके त्योहारों में शरीक हों, तो हम और हमारे देश खूब आगे बढ़ सकेंगे ।
आप यू ही हँसते रहे , मुस्कराते रहे , स्वस्थ रहे-सानन्द रहे ----- 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामना ।
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com
shukriya
ReplyDeleteस्वागत है।
Delete