दोस्तों के लिए पेश हैं '4-सालों' की 'खट्टी-मीठी' यादों का कुछ जमावड़ा :--- यादें याद आती हैं ! 'Annual function' डे (8 सितम्बर) के साथ 'विश्व साक्षरता दिवस'की हार्दिक शुभकामनायें ।
'सब कुछ पीछे छूट गया'
सब कुछ पीछे छूट गया,अभियंता बनते-बनते,
जिम्मेदार कब हम बन गये, पता भी न चला ।
जब भी याद आती है , इंजीनियरिंग कॉलेज के वह 4 साल,
मन सुपरसोनिक स्पीड से भी अरबों गुना तेज,निकल पड़ती है ।
उन लम्हों की खोज में,
जो भूली-बिसरी यादें बन , कभी हमें गुदगुदाती है, तो कभी रुलाती है ।
कितना किया था,मेहनत उस जुनून को पाने के लिए..!
कितना किया था,इंतजार उन दोस्तों से मिलने के लिए ।
जिन्हें तो जानता तक नहीं था,मैं ...!
पर निकलते-निकलते अपनन-सा बिछुड़न दे गए ।
अजीब सी थी वह दुनिया,कोई सुबह तो कोई दोपहर में जगते थे,
बाथरूम जाने के लिए, हम हमेशा लड़ते थे ।
12th में था, जब मेहनतकश-मजदूरी ही था रास्ता,
पढ़ते-पढ़ते इंजीनियरिंग कॉलेज आने का, अच्छा नौकरी पाने का ।
पर पता ही न चला हम, कब 4 साल गुजार गए,
हम इतने बड़े कब हो गए, छुटकन से बड़कन लोग बोल गए ।
लेकिन उन सालों में अजीब संस्कार हमें मिले,
किसी के पैंट उतारने का,किसी के गिरेहबान में झांकने का ।
ये हँसी मजाक था,जो क्लास बंक कर हम कर लिया करते थे,
कॉमन रूम में फ़िल्म कम ही चला करते थे ।
वो अजीब हालात थे,खाने के लिए हम मेस में लड़ा करते थे,
खाना मिल जाने पर, कूड़े में फेंकते थे ।
क्लास की क्या ? जब भी घंटी बजा करती थी, राम-रहीम याद आते थे,
वैसे न, तो कभी इन्सां मिले, न ही हनी..प्रीत !
प्रोजेक्ट के नाम पर,बस पन्ने हम भरा करते थे,
एग्जाम की सुबह micro कर लिया करते थे ।
यह अपना कॉलेज था, यहां सब माफ था ,
अन्ना की अनशन को भी पार्टी में हम बदल दिया करते थे ।
कोई घास हमें नहीं देती थी,वैसे भी ...भला कोई क्यों दे घास...?
क्योंकि घास के नाम पर , यहां बस जंगल हुआ करता था ।
रिजल्ट की खबर मिलते ही,लालजी की थाली सजती थी,
मार्क्स पर चर्चा, गदहे ही किया करते थे ।
लालजी नाम आते ही, उनके परिवार याद आते है,
अपना खाना में हमें, प्रेम के गूढ़ अर्थ समझाते थे ।
Snapdeal का डिब्बा, न कभी हम भूला करते है,
ब्रूनी का ताजमहल जो वहां हुआ करता था ।
मुमताज, तो उन्हें न मिला...?
पर हमारी खुशियों में , वह खुश हुआ करता था ।
याद आते है वो लम्हें, बीत जाने के बाद ...,
बस साथ रहते है फेसबुक और what's app का साथ ।
-- प्रधान प्रशासी सह संपादक ।
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