अभी खबरों में एक सिरफिरा खेल की चर्चा खूब चल रही है, जिनकी नियति आत्महत्या पर ही आकर खत्म होती है ! परंतु वैसा खेल क्यों खेलूँ, जिनसे यह महानतम योनिजीवन ही नष्ट हो जाय ! जिसतरह से कोई भी स्वयं को आविष्कृत कर प्राप्त नही कर सकते, फिर वो क्यों जीवन का खात्मा करना चाहते हैं या मार ही डालते हैं । जिसतरह से जीवन का आविष्कार हम नहीं कर सकते, उसी भाँति जीवन को नष्ट भी नहीं कर सकते हैं ! जीवन अद्भुत पहेली है, पर इसे कोई समझना नहीं चाहते !... परंतु खुद की आदत, परिवार, मित्र, समाज और व्यवस्था मिल जीवन को ऐसे अनर्थक जगहों में डालते हैं कि जीवन त्राहिमाम कर उठता है, लोग खुद को बोझ महसूस कर बैठते हैं या शारीरिक प्रताड़ना की अधिकता से इस लीला का अंत कर लेते हैं । एक स्त्री के साथ ऐसी दुःस्थिति प्रायशः होती है । आइये, हम ऐसी दु:दास्तां व अपराधकारित कृत्यक को अपराधवृत्ति के विहित एक महिला कथाकार और कवयित्री की नज़र से समझे ! आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़ते है, कथाकार-कवयित्री श्रीमती सुषमा व्यास 'राजनिधि' की यहाँ जारी लघुकथा ..... आइये पढ़ते हैं......
लघुकथाकार सुषमा व्यास 'राजनिधि' |
अपराधी कौन ?
अचानक एक दुःखद खबर आई, मामा जी की छोटी बेटी जया बुरी तरह से जल गई है और अस्पताल में भर्ती है।
जया शहर में ही ब्याही गई थी । चेहरा हंसमुख और सुंदर लावण्य लिए सर्वगुण सम्पन्न और प्रखर बुद्धिमती.....। यह जया के लिए मेरी शब्दचित्र है । खबर सुनकर दिल धार-धार करने लगी और मैं दौड़ती ही नहीं, बल्कि भागती कदमों से अस्पताल पहुंची।
अस्पताल का वातावरण बेहद गमगीन था। मामा जी बेहद गमगीन और आंखों में आंसू थामे एक कोने में खड़े थे। मामी जोर-जोर से रो रही थी, विलाप किये जा रही थी-- हाय रे ! दुष्ट लोगन सब, ये जया के ससुराल वाले ! मेरी फूल-सी बच्ची को जला दी। अरे, नरक में जाओगे , तुम सब ! मामा जी के बेटे और बहू भी जया की ससुरालवालों से लड़-झगड़ रहे थे, गालियां दे रहे थे। मेरी ममेरी भाभी तो जया की सास को धक्का देकर कहने लगी थी-- तूझे तो जेल की चक्की पिसवाउंगी और वहीं सड़वा दूंगी, तो ममेरा भाई भी अपने दोस्तों के साथ मिलकर जया के पति और ससुर से मारपीट पर उतर आये थे ।
पूरे अस्पताल में हंगामा बरपा था । इसी बीच मैंने अपने एक रिश्तेदार से धीरे से पूछ बैठी-- जया कैसी है ? जवाब बिल्कुल सपाट और ठंडी मिली-- नहीं बचेगी वो, पूरी जल गई....... बस, मरने से पहले घटना की बयान भर दे दे !
सुनकर मैं सन्न रह गई और मन ही मन जया के ससुराल वालों को कोसने लगी। इतने में वहाँ पुलिसवाले आ गये, आग से झुलसी जया की बयान लेने । वे सभी भी पुलिस के साथ जया के वार्ड में चले आये और हंगामा थोड़ी देर के लिये ठहर गया। हम सब जया के बेड के चारों ओर खड़े हो गए थे ।
जहाँ एक तरफ मां-बाप, भाई-भाभी सहित पीहर के परिवार सम्मिलित थे, तो दूसरी ओर पति, सास, ससुर और ननद थे । पुलिस ने जया से सहानिभूतिपूर्वक प्रश्न किया-- कुछ तो मुँह खोलो बेटा ! तुम कैसे जली ? या कि तुम्हे किसी ने जलाई ? जया पूरी तरह से जल चुकी थी, सिर्फ चेहरा ही सामान्य थी। मैं जया के समीप पहुंची, उनकी सिर पर हाथ फेरी और कान के पास अपनी मुँह लेकर गई तथा धीरे से कहने लगी-- हां, कहो बहना ! कौन है तुम्हारी गुनाहगार ?
जया की उस दु:अवस्था लिए चेहरे पर एक विद्रूप मुस्कान उभरी और वे अपनी सांसों को एकत्रित कर कराह उठी-- मुझे..तो..दो..परिवारों..ने..मिलकर..मार..डाली, दीदी ! ....कैसे बताऊं ? .....कौन है इसके गुनाहगार ? ....किसने जलाई मुझको ?
यह कहकर जया ने हिचकियाँ ली और अपनी भूतकाल की दु:स्मृतियों में समाती चली गयी......
यह कहकर जया ने हिचकियाँ ली और अपनी भूतकाल की दु:स्मृतियों में समाती चली गयी......
शादी हुए तीन साल हो गई थी यानी ससुराली ज़िन्दगी में भी तीन साल हो गए थे । कइयों बार पीहर आ-आकर और रो-रोकर अपनी व्यथा को मां, पिताजी,भैया, भाभी को बता चुकी थी, परंतु 'ससुराल है तुम्हारी असली घर' कहकर तथा हरबार मुझे ही हिदायत देकर वापस ससुराल छोड़ आते थे। मेरी शरीर पर ससुरालवालों द्वारा मारपीट से बने कई ज़ख़्मों को देखकर भी पीहरवाले अनदेखा कर देते थे। मुझपर हुई जुल्मों की कहानी अधूरी ही सुनकर वे सब उठ जाते थे। जब अत्याचार हद से भी आगे बढ़ चले, तो मैंने पीहर आकर ऐलान कर दी कि अब मैं वहां नहीं जाऊंगी, तो पिताजी हाथ जोड़कर समाज की दुहाई देने लग गए । भाई ने भी कड़क शब्दों में कहा-- धीरज रखो और हालात से समझौता कर लो, क्योंकि यहां मैं अकेला कमाने वाला हूं.... तुम और एक को कहां से खिला पाऊँगा ? भाभी ने कहा-- सहन करो, दीदी ! देखो, मैं भी यहां सहन ही कर रही हूं और मां ने कहा-- एडजस्ट कर ले बेटा वहां ! ...
... बस उस दिन से मेरी आत्मा की जैसे हत्या ही हो गयी। अंदर ही अंदर मैं घुट गई, पूरी तरह से तन्हा, बेबस, लाचार हो गई, जिसे लेकर मैं जल गई, फिर मैं अपना मरणासन्न शरीर लेकर ससुराल पहुंची, जिन्हें मेरे पति और ससुराल वालों ने और भी जला दिए । ...तो दीदी, मेरी पहली हत्या तो पीहरवाले ने की और दूसरी हत्या ससुराल में आकर हुई....
फिर पुलिसवाले से मुखातिब हुई-- हाँ ! लिखो साहब मेरी बयान 'मेरी इस दुर्दशा के गुनाहगार और हत्यारे अगर कोई है, तो दोनों परिवार हैं।' इतना कहकर जया ने हमेशा के लिये आंखें मूंद ली। सम्पूर्ण वार्ड में सन्नाटा छा गया। दोनों परिवार सिर झुकाये खड़े थे और मैं दु:खी मन लिए दोनों परिवारों की तरफ मुंह तकते हुई सोचे जा रही थी कि वाकई में अपराधी कौन है आखिर ?
... बस उस दिन से मेरी आत्मा की जैसे हत्या ही हो गयी। अंदर ही अंदर मैं घुट गई, पूरी तरह से तन्हा, बेबस, लाचार हो गई, जिसे लेकर मैं जल गई, फिर मैं अपना मरणासन्न शरीर लेकर ससुराल पहुंची, जिन्हें मेरे पति और ससुराल वालों ने और भी जला दिए । ...तो दीदी, मेरी पहली हत्या तो पीहरवाले ने की और दूसरी हत्या ससुराल में आकर हुई....
फिर पुलिसवाले से मुखातिब हुई-- हाँ ! लिखो साहब मेरी बयान 'मेरी इस दुर्दशा के गुनाहगार और हत्यारे अगर कोई है, तो दोनों परिवार हैं।' इतना कहकर जया ने हमेशा के लिये आंखें मूंद ली। सम्पूर्ण वार्ड में सन्नाटा छा गया। दोनों परिवार सिर झुकाये खड़े थे और मैं दु:खी मन लिए दोनों परिवारों की तरफ मुंह तकते हुई सोचे जा रही थी कि वाकई में अपराधी कौन है आखिर ?
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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