भारत धर्मनिरपेक्ष, पंथनिरपेक्ष देश है, हम ऐसे देश में रहते हैं, जहां भाषाई विविधताएँ हैं, लेकिन धर्म, भाषा व बोलियों में विविधता होने के बावजूद भी हमारा देश महान है, इसके कारण तो यहाँ की सामाजिक संस्कृति है ! हमारे देश में ऐसी महान संस्कृतियाँ विराजमान हैं, परंतु यहाँ पर ऐसे लोग भी हैं, जो 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' जैसे नारों को भी ईजाद कर डालते हैं, वो भी देश के एक बड़े यूनिवर्सिटी के प्रांगण में ! ऐसे लोग कैसे और किन कारणों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जुलूस निकालकर भी जमानत पाकर देश में छुट्टा साँड़ की तरह घूमते हैं और कभी देश के अंदर अन्य तिरंगों की बात भी गाहे बगाहे करते रहते है ! डाइवर्सिटी..... ! हमारी पहचान है, लेकिन जब बिहार के लोग पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु घूमने निकल जाते हैं, तो हिंदी भाषा में अगर हम उसके प्रांतीय बंधुओं से उनके राज्य में भ्रमणार्थ कहीं जाने हेतु 'पता' पूछते हैं, तो वे लोग हिंदी जानकर भी क्रमशः बांग्ला अथवा तमिल में ही जवाब देते है ! जबकि हिंदी किसी एक राज्य विशेष की भाषा आखिर है कहाँ ? भारतीय संविधान में 2 ही राजभाषा है, एक हिंदी और दूजे अंग्रेजी । किन्तु हिंदी के विशेष प्रचारार्थ संविधान में अलग से अनुच्छेद भी है । वैसे भारत मे कुल 1652 बोलियाँ हैं और संवैधानिक रूप से, किन्तु सानुच्छेद नहीं व संशोधित व जोड़कर '22' भाषायें उपलब्ध हैं ! मैं इन सभी भाषाओं के प्रति सम्मान की नज़र से नतमस्तक हूँ, लेकिन हमारी प्राथमिकता हिंदी भाषा है,क्योंकि हिंदी किसी एक राज्य की भाषा नहीं है, परंतु वैश्विक परिदृश्य लिए भारत सहित पूरी दुनिया में 90 करोड़ से अधिक लोग हिंदी को बोलते व समझते हैं, यही कारण है, यह भाषा हर भारतीय लोगों को अच्छी तरह से जानना नहीं, तो समझ में अवश्य आनी चाहिए ! अन्यथा ऐसा नहीं हो कि 'साउथ स्टेट्स' में जब हिंदी भाषी लोग घूमने जाय,तो उन्हें अपना देश ही बेगाना न लगने लग जाय ! महाराष्ट्र की बात ही छोड़िये, वहाँ मराठियों के लिए जो भी हो, किन्तु वहाँ हिंदी सिनेमा का 'बॉलीवुड' विस्तार है । इतना ही नहीं, कोई देश अखंड तभी रह सकता है, जब उस देश के एक राष्ट्रध्वज हो, किन्तु यहाँ जम्मू-कश्मीर के बाद कर्नाटक के लिए अपना 'ध्वज' अपनाने के लिए जो नाटक हो रही है, यह किसी देश की अखंडता और अक्षुण्णता के लिए अच्छी बास्त नहीं कही जाएगी ! तभी तो आप सभी दोस्त जब मेरे अभियान को हमारा अभियान बनाऐंगे और अपने टाइमलाइन में कैप्शन के साथ लिखेंगे---- #एकराष्ट्र_एकभाषा_एकतिरंगा । तभी हमारे मन को 'मन की बातें ' आ पाएंगी ! जय भारत !
आज हमारे इस अभियान में अपनी राय मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में प्रस्तुत कर रहे हैं श्रीमान दिनेश दिनकर ...आइये पढ़ते है ...!
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श्रीमान दिनेश दिनकर |
एकता एवं सुरक्षा की दृष्टि से 'एक राष्ट्र-एक तिरंगा' पर सहमत होना जरूरी भी है और स्वाभाविक भी है । विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में 'एकभाषा' को लेकर विचारधाराओं में टकराव अक्सर देखा जाता रहा है । मौजूदा पहलुओं पर विचार किया जाए, तो विशेष समूहों द्वारा 'एकभाषा' के रूप में हिन्दी भाषा को भारत की भाषा बनाने के लिए निरंतर प्रयास किए जाते रहे हैं । प्रत्येक वर्ष एक से चौदह सितंबर तक सरकारी विभागों एवं शैक्षणिक संस्थानों में हिन्दी पखवाड़ा मनाया जाता है । हिंदी पखवाड़े के दौरान हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और अतिथियों के रूप में सम्मिलित चंद नेता एवं अधिकारी हिन्दी भाषा को भारत की 'एक भाषा' का दर्जा दिलवाने का झूठा वायदा करते हैं और समय कम होने की बात कहकर कार्यक्रम के बीच में ही खिसक लेते हैं । हिंदी पखवाड़े की समाप्ति पर ये नेता एवं उनके वायदे कब और कैसे गायब हो जाते हैं, ये एक अलग विषय है।
भारत देश की मुख्य विशेषताओं की बात की जाए तो सर्वोपरि विशेषता यही है कि भारत एक विविधताओं से भरा हुआ देश है । अनेक जाति, धर्म, समूह, संस्कृति एवं विभिन्न भाषाओं का मिश्रण किया जाए तो भारत देश की छवि प्रतीत होती है । यहां हिंसा और दबाव के आधार पर 'एकभाषा' को लागू नहीं करवाया जा सकता है । अगर लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत के प्रमुख स्तंभों की बात की जाए, तो न्यायालय एवं संसद में 'एकभाषा' के रूप में हिन्दी भाषा को मान्यता देना असंभव-सा है, क्योंकि न्यायालयों में अंग्रेजी भाषा को वरीयता दी जाती रही है और संसद की ओर उम्मीद से देखने पर भी निराशा ही हाथ लगती है, क्योंकि भारत के दक्षिणी राज्यों में हिन्दी भाषा को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता और ना ही पूर्वी राज्यों में हिन्दी भाषा का कोई औचित्य नज़र आता है । अगर केंद्र सरकार 'एकभाषा' के रूप में हिन्दी भाषा को मान्यता देने का प्रयास करती है, तो उसे गैर हिन्दी भाषी राज्यों की नाराज़गी झेलनी होगी, जो केंद्र सरकार से सत्ता तक छीन सकती है । अगर 'एकभाषा' का मामला न्यायालय में जाता है, तो यह जगजाहिर है कि फैसला हिन्दी भाषा के विरोध में आएगा, क्योंकि न्यायालयों में केसों की बहस, कागजी कार्यवाही और फैसले सब अंग्रेजी भाषा में होते हैं तो इस स्थिति में 'एकभाषा' का विषय उठा कर केवल और केवल समय बर्बाद करना ही होगा । चुनावी रैलियों और अन्य मंचों से सरकार द्वारा हिन्दी भाषा की पैरवी करना सामान्य बात है किंतु इस दिशा की ओर ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं और राजनीतिक समीकरणों की बात की जाए तो भविष्य में भी ऐसे कदमों को केवल और केवल भाषणों में ही सुना जाएगा ।
भारत में हर धर्म, संस्कृति की अपनी भाषा है । अतः इस स्थिति में किसी विशेष वर्ग पर सीधे तौर पर कोई भी भाषा नहीं थोंपी जा सकती है । गैर-हिंदी भाषी लोगों द्वारा हिंदी भाषा के प्रति आकर्षण जाग्रत करने के लिए हिन्दी साहित्य में अनेक स्तरों पर कार्य करने होंगे । एक दिन में सोशल मीडिया पर बैठकर हिन्दी के हित में बातें करने से हिन्दी भाषा राष्ट्र की एक भाषा नहीं बन सकती, इसके लिए हमें भी अपने बच्चों को 'अंग्रेजी-माध्यम' के स्कूलों से निकालना होगा । अन्यथा दूसरों द्वारा क्रांति करने की उम्मीद लिए हम बैठे-बैठे ही बर्बाद हो जाएंगे ।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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