हिंदी पत्रकारिता के बेजोड़ नाम, किन्तु पत्रकारिता से आर्थिकोपार्जन न होने की अनिश्चितता के कारण देश की राजधानी के एक कॉलेज में 'लेक्चरर' पद को सुशोभित कर रहे रचनाकार श्री प्रभात रंजन, खासकर 'जानकी पुल' के नाम से जाने जा रहे हैं, इसे वृहत्तर पैमाने पर यह कहा जा सकता है कि वे 'जानकीपुल' के पर्याय हो गए हैं ।
दरअसल, 'जानकी पुल' बिहार के सीतामढ़ी ज़िले में है । वही सीतामढ़ी, जो इतिहासश्रुत माता सीता व जानकी की जन्मस्थली मानी जाती है, किन्तु यहाँ 'जानकी पुल' श्री प्रभात रंजन की आरंभिक कहानियों में है, जिनकी प्रशंसा वरेण्य आलोचक श्री नामवर सिंह ने किया, तो इस कहानी को तब 'सहारा समय कथा सम्मान' का प्रथम पुरस्कार भी मिला और यही कहानी 'जानकी पुल' के शीर्षक-नाम से ब्लॉग 'जानकीपुल.कॉम' लिए इंटरनेटीय वितान में Bridge of World Literature के रूप में अहर्निश सेवा दे रहे हैं, जिस हेतु उन्हें एबीपी न्यूज़ सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर सम्मान भी प्राप्त हो चुका है ।
'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' प्रत्येक माह दुनिया भर के व्यक्तित्वों व कृतित्वों में से नामचीन अथवा गौण प्रतिभा से पूछे गए 14 गझिन सवालों से निःसृत साक्षात्वार्त्ता "इनबॉक्स इंटरव्यू" के रूप में प्रकाशित व प्रसारित करता है । इस कड़ी में इसबार हम लब्धप्रतिष्ठ कथाकार, संपादक, समीक्षक और 'न जाने क्या-क्या' श्रीमान प्रभात रंजन से रू-ब-रू करा रहे हैं, हालाँकि श्री रंजन द्वारा अंतिम तीन सवालों के जवाब नहीं दिए गए हैं, एतदर्थ सम्प्रति संपादक व प्रस्तोता द्वारा यह कथ्यान्कित है कि उनके द्वारा कई पुस्तकें लिखी गई हैं, यथा:- जानकीपुल, बोलेरो क्लास, कोठागोई, पत्रकारिता के युग निर्माता : मनोहर श्याम जोशी, मार्केज़ : जादुई यथार्थ का जादूगर इत्यादि । सम्प्रति संपादक ने 'कोठागोई' की समीक्षा भी की है, जो 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' में प्रकाशित भी हुई थी ।
उद्धृत सम्मान-द्वय के अतिरिक्त श्री रंजन 'प्रेमचंद सम्मान', 'कृष्ण बलदेव वैद फ़ेलोशिप' आदि से भी विभूषित हो चुके हैं । कई अनुवाद सहित जानकीपुल से इतर प्रिंट पत्रिका 'बहुवचन' के कुछ अंकों का सम्पादन भी किया है ।
आगामी 3 नवम्बर को अपने भौतिक जीवन के 47 वर्ष पूरे करने जा रहे श्री प्रभात रंजन के उज्ज्वल भविष्य और सदाबहार स्वास्थ्य की कामना करते हुए, आइये, हम उनके द्वारा दिये गए उत्तरों से उतराई सूरमा को अपनी आंखों में लगाते हुए अग्रांकित विचारों को पढ़ते हैं और साझा करते हैं--------
प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट/प्रिंट मीडिया के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:- मैं मूलतः लेखक हूँ और पेशे से प्राध्यापक। पेशे से मेरा घर चलता है और लेखन के माध्यम से अपने मन की बातों को अभिव्यक्त कर पाता हूँ। इन्टरनेट या प्रिंट के माध्यम से मेरी कोशिश होती है कि मैं नए लोगों को साहित्य की परंपरा से जोड़ने की दिशा में कुछ कर पाऊँ, इसीलिए एक ब्लॉग बनाया 'जानकीपुल'।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-मैं मूलतः ग्रामीण पृष्ठभूमि से आया हूँ। बिहार में नेपाल सीमा पर एक सीतामढ़ी नामक एक कस्बा है, जबकि शिक्षा अधिकतर शहरों में हुई। इसलिए मैं ग्रामीण और शहरी जीवन के द्वन्द्वों को बहुत अच्छी तरह समझता हूँ। मेरे प्राध्यापक रहे थे-- मदन मोहन झा। एक बार मैंने उनकी भांजी को प्रेम-पत्र लिखा, जिसे सर ने पढ़ लिया। एक दिन उन्होने मुझसे कहा कि तुम्हारी भाषा बहुत अच्छी है, तुम आगे चलकर अच्छे लेखक बनोगे ! उनके इस कथन के बाद मैं लेखन की दिशा में गंभीर हुआ। बाद में दिल्ली में मनोहर श्याम जोशी, उदय प्रकाश, सुधीश पचौरी जैसे बड़े लेखकों का मार्गदर्शन भी मिला।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आम लोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:- आम लोग इंस्पायर हो सकते हैं या नहीं, लेकिन मुझे यह लगता है कि अगर किसी के लेखन में दम है तो इन्टरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से उसको अवश्य पहचान मिल सकती है ! इसलिए मेरा यह कहना है कि आज लेखकों को 'फेसबुक' जैसे सोशल मीडिया पर गंभीरता से लिखना चाहिए।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:- एक तो नब्बे के दशक में सबसे बड़ी बाधा यह थी कि अपनी रचनाएँ छपवा पाना बेहद मुश्किल होता था। जब तक आप किसी गुट में नहीं होते हों, कोई संपादक आपकी रचनाएँ नहीं छापते । पहले पाँच-छह साल तक मेरी कोई रचना कहीं प्रकाशित नहीं हो पाई । दूसरा, पुस्तक प्रकाशन का अनुभव बहुत बुरा रहा । मेरी पहली किताब, जो टेलीविज़न मीडिया पर थी, उसको एक बड़े प्रकाशक ने छापने में तीन साल का समय लगाया। अब ऐसी बाधा नहीं होती । यह तो तब से अबतक के सफर में अंतर आया है । यह एक बड़ी बाधा थी तब, किस तरह से लेखन को पहचान मिले !
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:- आर्थिक दिक्कत तो नहीं रही, लेकिन अपने पैरों पर खड़ा हो पाने में वक्त बहुत लगा। पत्रकारिता में था, उस पेशे की अनिश्चितता के कारण अध्यापन में आया । यहाँ निश्चितता है, मगर वह रचनात्मकता नहीं, जो पत्रकारिता में है ।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:- परिवार के लोग संतुष्ट तो नहीं रहे होंगे ! लेकिन उन्होने कभी विरोध नहीं किया । वे चाहते थे कि मैं उच्च अधिकारी बनूँ ! लेकिन अपने पसंद के रास्ते पर चलने और मंजिल पाने का सुख ही कुछ और होता है।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:- मेरे दोस्तों, सहकर्मियों में कोई मेरा संबंधी नहीं है। मित्रता का संबंध सबसे बड़ा होता है। मित्रों का सहयोग मुझे हर मोड़ पर मिला है।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:- भारतीय संस्कृति बहुत विराट और विविध है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता इसकी बहुलता है। जब तक बहुलता बनी हुई है, भारत एक राष्ट्र के रूप में मजबूत बना रहेगा। अगर इसकी बहुलता को खंडित करने की कोशिश हुई, तो यह संस्कृति नहीं बचेगी। एक विखंडित राष्ट्र जरूर बचा रह जाएगा।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:- कोई एक इंसान भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए क्या कर सकता है भाई ?
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:-नहीं मिले भाई।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:- कोई परेशानी नहीं हुई । हाँ, लोगों का विरोध बहुत सहना पड़ता है, लेकिन वह तो हर काम करने वाले को सहना पड़ता है।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
द्रष्टव्यश:
---------
आप इसी तरह हाथों में कैमरा और कंधों पर नई दुनिया की चाहत की खोज का थैला लटकाये हुए अपनी क्लासिक हथियार 'कलम' और कम्प्यूटर के कीबोर्ड से शब्द-अंकुर टंकण करनेवाली 'तर्जनी' से इसी भाँति सृजन कर चाहकारों को आनंदित और विस्मयादित करते जाय, यही आपके लिए messenger of art की ओर से अनंत शुभकामनाएं हैं........
आप यू ही हँसते रहे , मुस्कराते रहे , स्वस्थ रहे-सानंद रहे !
दरअसल, 'जानकी पुल' बिहार के सीतामढ़ी ज़िले में है । वही सीतामढ़ी, जो इतिहासश्रुत माता सीता व जानकी की जन्मस्थली मानी जाती है, किन्तु यहाँ 'जानकी पुल' श्री प्रभात रंजन की आरंभिक कहानियों में है, जिनकी प्रशंसा वरेण्य आलोचक श्री नामवर सिंह ने किया, तो इस कहानी को तब 'सहारा समय कथा सम्मान' का प्रथम पुरस्कार भी मिला और यही कहानी 'जानकी पुल' के शीर्षक-नाम से ब्लॉग 'जानकीपुल.कॉम' लिए इंटरनेटीय वितान में Bridge of World Literature के रूप में अहर्निश सेवा दे रहे हैं, जिस हेतु उन्हें एबीपी न्यूज़ सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर सम्मान भी प्राप्त हो चुका है ।
'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' प्रत्येक माह दुनिया भर के व्यक्तित्वों व कृतित्वों में से नामचीन अथवा गौण प्रतिभा से पूछे गए 14 गझिन सवालों से निःसृत साक्षात्वार्त्ता "इनबॉक्स इंटरव्यू" के रूप में प्रकाशित व प्रसारित करता है । इस कड़ी में इसबार हम लब्धप्रतिष्ठ कथाकार, संपादक, समीक्षक और 'न जाने क्या-क्या' श्रीमान प्रभात रंजन से रू-ब-रू करा रहे हैं, हालाँकि श्री रंजन द्वारा अंतिम तीन सवालों के जवाब नहीं दिए गए हैं, एतदर्थ सम्प्रति संपादक व प्रस्तोता द्वारा यह कथ्यान्कित है कि उनके द्वारा कई पुस्तकें लिखी गई हैं, यथा:- जानकीपुल, बोलेरो क्लास, कोठागोई, पत्रकारिता के युग निर्माता : मनोहर श्याम जोशी, मार्केज़ : जादुई यथार्थ का जादूगर इत्यादि । सम्प्रति संपादक ने 'कोठागोई' की समीक्षा भी की है, जो 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' में प्रकाशित भी हुई थी ।
उद्धृत सम्मान-द्वय के अतिरिक्त श्री रंजन 'प्रेमचंद सम्मान', 'कृष्ण बलदेव वैद फ़ेलोशिप' आदि से भी विभूषित हो चुके हैं । कई अनुवाद सहित जानकीपुल से इतर प्रिंट पत्रिका 'बहुवचन' के कुछ अंकों का सम्पादन भी किया है ।
आगामी 3 नवम्बर को अपने भौतिक जीवन के 47 वर्ष पूरे करने जा रहे श्री प्रभात रंजन के उज्ज्वल भविष्य और सदाबहार स्वास्थ्य की कामना करते हुए, आइये, हम उनके द्वारा दिये गए उत्तरों से उतराई सूरमा को अपनी आंखों में लगाते हुए अग्रांकित विचारों को पढ़ते हैं और साझा करते हैं--------
श्रीमान प्रभात रंजन |
प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट/प्रिंट मीडिया के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:- मैं मूलतः लेखक हूँ और पेशे से प्राध्यापक। पेशे से मेरा घर चलता है और लेखन के माध्यम से अपने मन की बातों को अभिव्यक्त कर पाता हूँ। इन्टरनेट या प्रिंट के माध्यम से मेरी कोशिश होती है कि मैं नए लोगों को साहित्य की परंपरा से जोड़ने की दिशा में कुछ कर पाऊँ, इसीलिए एक ब्लॉग बनाया 'जानकीपुल'।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-मैं मूलतः ग्रामीण पृष्ठभूमि से आया हूँ। बिहार में नेपाल सीमा पर एक सीतामढ़ी नामक एक कस्बा है, जबकि शिक्षा अधिकतर शहरों में हुई। इसलिए मैं ग्रामीण और शहरी जीवन के द्वन्द्वों को बहुत अच्छी तरह समझता हूँ। मेरे प्राध्यापक रहे थे-- मदन मोहन झा। एक बार मैंने उनकी भांजी को प्रेम-पत्र लिखा, जिसे सर ने पढ़ लिया। एक दिन उन्होने मुझसे कहा कि तुम्हारी भाषा बहुत अच्छी है, तुम आगे चलकर अच्छे लेखक बनोगे ! उनके इस कथन के बाद मैं लेखन की दिशा में गंभीर हुआ। बाद में दिल्ली में मनोहर श्याम जोशी, उदय प्रकाश, सुधीश पचौरी जैसे बड़े लेखकों का मार्गदर्शन भी मिला।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आम लोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:- आम लोग इंस्पायर हो सकते हैं या नहीं, लेकिन मुझे यह लगता है कि अगर किसी के लेखन में दम है तो इन्टरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से उसको अवश्य पहचान मिल सकती है ! इसलिए मेरा यह कहना है कि आज लेखकों को 'फेसबुक' जैसे सोशल मीडिया पर गंभीरता से लिखना चाहिए।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:- एक तो नब्बे के दशक में सबसे बड़ी बाधा यह थी कि अपनी रचनाएँ छपवा पाना बेहद मुश्किल होता था। जब तक आप किसी गुट में नहीं होते हों, कोई संपादक आपकी रचनाएँ नहीं छापते । पहले पाँच-छह साल तक मेरी कोई रचना कहीं प्रकाशित नहीं हो पाई । दूसरा, पुस्तक प्रकाशन का अनुभव बहुत बुरा रहा । मेरी पहली किताब, जो टेलीविज़न मीडिया पर थी, उसको एक बड़े प्रकाशक ने छापने में तीन साल का समय लगाया। अब ऐसी बाधा नहीं होती । यह तो तब से अबतक के सफर में अंतर आया है । यह एक बड़ी बाधा थी तब, किस तरह से लेखन को पहचान मिले !
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:- आर्थिक दिक्कत तो नहीं रही, लेकिन अपने पैरों पर खड़ा हो पाने में वक्त बहुत लगा। पत्रकारिता में था, उस पेशे की अनिश्चितता के कारण अध्यापन में आया । यहाँ निश्चितता है, मगर वह रचनात्मकता नहीं, जो पत्रकारिता में है ।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:- परिवार के लोग संतुष्ट तो नहीं रहे होंगे ! लेकिन उन्होने कभी विरोध नहीं किया । वे चाहते थे कि मैं उच्च अधिकारी बनूँ ! लेकिन अपने पसंद के रास्ते पर चलने और मंजिल पाने का सुख ही कुछ और होता है।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:- मेरे दोस्तों, सहकर्मियों में कोई मेरा संबंधी नहीं है। मित्रता का संबंध सबसे बड़ा होता है। मित्रों का सहयोग मुझे हर मोड़ पर मिला है।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:- भारतीय संस्कृति बहुत विराट और विविध है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता इसकी बहुलता है। जब तक बहुलता बनी हुई है, भारत एक राष्ट्र के रूप में मजबूत बना रहेगा। अगर इसकी बहुलता को खंडित करने की कोशिश हुई, तो यह संस्कृति नहीं बचेगी। एक विखंडित राष्ट्र जरूर बचा रह जाएगा।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:- कोई एक इंसान भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए क्या कर सकता है भाई ?
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:-नहीं मिले भाई।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:- कोई परेशानी नहीं हुई । हाँ, लोगों का विरोध बहुत सहना पड़ता है, लेकिन वह तो हर काम करने वाले को सहना पड़ता है।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
द्रष्टव्यश:
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आप इसी तरह हाथों में कैमरा और कंधों पर नई दुनिया की चाहत की खोज का थैला लटकाये हुए अपनी क्लासिक हथियार 'कलम' और कम्प्यूटर के कीबोर्ड से शब्द-अंकुर टंकण करनेवाली 'तर्जनी' से इसी भाँति सृजन कर चाहकारों को आनंदित और विस्मयादित करते जाय, यही आपके लिए messenger of art की ओर से अनंत शुभकामनाएं हैं........
आप यू ही हँसते रहे , मुस्कराते रहे , स्वस्थ रहे-सानंद रहे !
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com
शुभकामनायें प्रभात जी :)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteWaah...
ReplyDeleteसर आपको नमन ! आपका व्यक्तितत्व बहुत बड़ा हे और हम आप जैसे एक उदार व्यक्तितत्व वाले सहज, सरल लेखक के हम शिष्य रहे हे ! ये हमारा सौभाग्य था ! ! !
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