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11.11.2017

" दादी की बैंगनीवाली साड़ी पहनकर शादी करनी है : एक दुलारी पौत्री का सपना "

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     11 November     मन की बात     3 comments   

दुनिया में हर मोह का अंत 'मृत्यु' पर आकर समाप्त हो जाती है । हम 'परफेक्शन' की तलाश में भटकते रहते हैं, लेकिन इस अजीब संसार में परफेक्शन मतलब मृत्यु है और मृत्यु को शाश्वत सत्य कहा गया है । एक दृष्टि से वे अध्यात्मानुसार मोक्ष भी मृत्यु है क्या ? ....लेकिन जिस व्यक्ति के जन्म के बाद 'संज्ञा' कह कई-कई नाम दे देते हैं, वहीं मरने के बाद वो जीवित व्यक्ति 'बॉडी' बन जाती हैं । वैसे 'संज्ञाहीन' से मतलब 'डेडबॉडी' से ही है । जो हो, मौत के बाद यादें ही जीने का सहारा बन जाती है, ताकि हम उनके हर उन स्वप्नों को पूर्ण कर सकें,जो उन्होंने अपने लिए और हमारे लिए संजोए रखे थे ! आइये, आज पढ़ते हैं-- मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में लेखिका पौत्री सुश्री आकृति विज्ञा 'अर्पण'  के वो पत्र, जो उन्होंने स्वर्गीया दादी को संबोधित लिखी हैं..........


सुश्री आकृति विज्ञा 'अर्पण'



स्वर्गीया दादी की याद में एक खुला खत

प्रिय दादी !

आपको पता है कि मैं अब लगभग रोज नहाती हूं, भले कोई मेरे पीछे साबुन और तौलिया लेकर न दौड़ता हो। कभी-कभी बिना खाये भी सो जाती हूं और बड़े आराम से झूठ बोल लेती हूं कि अभी तो तीन रोटियां खाई थी ! बहुत बार महसूस करती हूं कि वक्त भी कुछ बातों को अपनी पहलू में छुपाये रहा और नियति भी न चाहते हुए सहर्ष साथ दे रही थी। तब मन व्याकुल हो जाता था , जब से ये समझ आने लगा कि आप वापस नहीं आ सकतीं  ! फिर भी उतना ही विश्वास बना रहता है कि शायद अभी भी आसमान से एक सीढ़ी आयेगी उससे होते हुए आप छत पर उतरेंगी, जहां मैं आपको गले लगाकर फूट-फूट कर रोऊंगी, लेकिन दादी वो छत भी तो मुझे खुद तक आने की इजाजत नहीं दे सकता !

वक्त भी अजीब तरह के अंतरतम परिस्थितियों से रुबरू कराता है,जब तक आप रही, न जाने क्या था कि वही रसोई सबके शाम के भोजन का प्रबंध कराती थी। सब अपनी दिन भर की बातें बताते थे और हम बच्चे चुल्हे की लकड़ियों को खींचते रहते थे, जिसके वजह से मम्मी गुस्साकर दौड़ाती थीं, लेकिन आपके आंचल के छांव के आगे कौन गुस्सा करने की हिमाकत कर सकता ? फिर काहें को मार ? हाँ, शांति की साक्षात देवी सौम्यता और गहनता, वाणी में वो माधुर्यता आज तक फिर किसी में उस तरह का न दिखा, न देखा !
न जाने किस जादू की पुड़िया थीं कि आपके कहे एक-एक शब्द मंत्र बन आज तक मुझमें संचारित हो रहे हैं और हरदम होते ही रहेंगे, ऐसा लगता है। सचमुच दादी,आपके जाने के बाद परिवार को बिखरते देखना ,देखते-देखते घर में कई चूल्हे हो जाना ! इस बात ने मेरे बालमन को कई-कई बार झकझोरे, तभी तो एक अवधारणा बन गयी कि दादी के चले जाने पर घर बिखरते हैं, लेकिन जब पड़ोसी के घर की दादी के रहते वहां बिखराव देखा, तब समझ आया कि आप संगम थी, विशेष थी; जिसने सबके भावों को समझ के सब जोड़े रखा ।

आपसे न जाने कितनी बातें करनी हैं । बहुत से गीत सीखने हैं, आप की बैंगनीवाली साड़ी पहनकर शादी करनी है ! ये सारे सपने को सँजोकर मैं आपके आंचल में सोकर खुली आँखों से देखती थी और शब्दों के झिलमिल 
सितारों को आप पिरोती थीं !

वो कहानियां,वो लोरियां..... सब याद है दादी ! बाबू को सब सुनाती हूं,वो सुनता भी है, लेकिन आप की बिंदी बार-बार निकाल देती थी । 
मुझे यह वाकया याद आते ही गला भर आती है ।
आखिरी बार जिस बांस के सीढ़ी पर बुलाकर आप ले जायी गयी थीं, वो सीढ़ी कभी मेरे इस छत पर उतरे इस वाकये का इंतजार मुझे हमेशा से रहा है,आज भी है और हरदम रहेगा ।
दादी ! बस एक बार फिर से आयेंगी, तो फिर मैं आपको कभी नहीं जाने दूंगी !


 आपकी दुलारी:--

     'अर्पण'


नमस्कार दोस्तों ! 

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3 comments:

  1. Bhushan Kumar SahuJuly 17, 2018

    हृदय स्पर्शी पत्र अर्पण दादीजी की याद में आंसू आ गए।

    ReplyDelete
    Replies
      Reply
  2. Tripathi PriyankaJuly 17, 2018

    Rulaa diya.... Paglii!!

    ReplyDelete
    Replies
      Reply
  3. UnknownSeptember 18, 2019

    बहुत खूब दादी की सम्पूर्ण यादे सिमटी है . .बालमन मानता ही नहीं ...

    ReplyDelete
    Replies
      Reply
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