साल 2017 की अंतिम तिथि ! राष्ट्रपिता गाँधी जी के उस अंतिम व्यक्ति की भाँति, जिनकी हालत अब भी नाजुक बनी हुई है, वैसे ही जैसे 31 दिसम्बर को कुछ नहीं होता, सिवाय कलरव के ! नव वर्ष के आगाज़ में मात्र कुछ घंटे पहले नाच-तमाशे शुरू होते हैं और अरबों फूँक दिए जाते हैं..... इसप्रकार अंतिम व्यक्ति को मिलनेवाले सुख-सुविधाएं इसी में उत्सर्ग कर दिए जाते हैं और सदा के लिए हरतरह से वह 'अंतिम' ही रह जाता है ! देहाती झोपड़ियाँ और शहरों की झुग्गियाँ भले ही पक्के में परिणत हो रहे हैं, किन्तु उनमें रहनेवाले उस 'अंतिम' जीव का रहन-सहन और उच्च शिक्षा में कोई सुधार नहीं होते !
दिन- रविवार । इस वर्ष का अंतिम रविवासरीय दिवस । माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने पिछले 38 की भाँति इसबार भी 'मन की बात' कहा । कई वर्षों से 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' ने आदरणीय पाठकों के विविध रचना-माध्यमों से 'मन की बात' करते आया है । साल के अंत में बतौर संचालक मैं भी कुछ कह दूं.... मैं पेशे से अभियंता, दिल से साहित्यिक और दिमाग से मल्टीपल 'वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर' हूँ । मेरी कई उपलब्धियाँ साकार हो 'रिकॉर्ड्स' का रूप लिया है । मेरा नाम सबसे कम उम्र में सर्वाधिक गणितीय 'Q.Mules' व असाध्य पहेली के अन्वेषक के रूप में है, तो सर्वाधिक लंबे 'ब्लॉग' शीर्षक के हेत्वर्थ RHR-UK INDIA होल्डर हूँ । मेरा नाम Limca Book of Records, India Book of Records, Global Records, Marvellous World Records, Star World Records इत्यादि में दर्ज़ है । मैं इसलिए इतना सुना गया, क्योंकि आज मेरा सच में जन्मदिवस है, किन्तु एक अंतिम व्यक्ति की भाँति अलाभकारी ! ओ-हो, क्या मैं अपना लेकर धमक गया ?
अबतक निभाये वादा मुताबिक प्रत्येक माह 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' किसी चर्चित, अल्पचर्चित व अचर्चित , किन्तु अपने क्षेत्र के सजग व कार्यप्रहरी से पूछे गए 14 गझिन सवालों के जवाब बतौर 'इनबॉक्स इंटरव्यू' प्रकाशित व प्रसारित करते आया है, इसबार के इंटरव्यू में 14 सुलझे जवाब दिए हैं, पेशे से शिक्षक, दिल और दिमाग से कवि, कथाकार और पत्रकार श्री मिथिलेश कुमार राय ने । गाहे-बगाहे इनके द्वारा प्रणीत हिंदी पत्रकारिता को दैनिक प्रभात खबर और इतर देखे जा सकते हैं ।
श्री मिथिलेश जी के बारे में उनकी जुबानी आप सभी सुचिन्तक प्रस्तुत 'इनबॉक्स इंटरव्यू' से जानेंगे ही, इससे पहले हम अंतिम प्रयाण की ओर विदा हो चुके व राजधानीवासी रहे हिंदी के रचनाकार प्रो0 सुरेंद्र 'स्निग्ध' को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, उनके मन में गाँव हमेशा ही स्मृतिस्थ रहा, कोसी-कछार स्मृतिस्थ रहा । कवि स्निग्ध को सुनिए जरा--
"हम अपनी नंगी आँखों से
नाप लेना चाहते हैं यह विस्तार
समा लेना चाहते हैं
प्रकृति का अपूर्व दृश्य ।"
--प्रस्तुत कवितांश की तरह मिथिलेश जी भी रचना-माध्यम से बहुत-कुछ करना चाहते हैं । आइये, ऐसे ग्राम्य-प्रतिभा को हम उनके मंजिल तक पहुँचाने में सहयोग करें, वैसे वे इस मामले में स्वाभिमानी व्यक्ति हैं । इसी के साथ श्री मिथिलेश को, उनके पाठकों को और हमारे पाठकों को नूतनवर्ष 2018 की शुभमंगलकामनाएँ !
(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:- मैं पेशे से एक शिक्षक हूँ। प्रारंभिक शिक्षाशाला के बच्चों को हिंदी पढ़ाता हूँ। लिखने की शुरुआत बचपन में ही हो गई थी। हठात ! पढ़ने-पढ़ाने की जिस नौकरी में आया हूँ, यह मेरी रोजी-रोटी की चिंता भी दूर करती है और मेरे लिखने की ताकत को भी बल देती है । सोशल साइट्स की दुनिया मुझे स्पेस मुहैया करा रही है और बहुत सारे लोगों से जोड़ भी रही है, जिसके कारण मेरी जानकारी में इजाफा हो रहा है ।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:- बिलकुल देहात की पृष्ठभूमि है मेरी। बिहार का शोक कही जानेवाली कोसी नदी के आसपास के इलाके में एक छोटा सा गांव है 'लालपुर'। बीच के कुछ साल, जिसमें मैं पढ़ाई के लिए शहर में रहा, को छोड़ दूँ तो इसी छोटे से गांव में अद्यत: रहनवारी हो रही है, चूँकि मेरे जेहन में एक गांव की बात चलती रहती है तथा मेरी आँखों में एक गांव की समस्या और उसमें हो रहे बदलाव के दृश्य तैरते रहते हैं, तो मैं समझता हूँ कि मैं एक वंचित समाज की बातों को दर्ज कर पाना सीख रहा हूँ और नित् नए अनुभव से रू-ब-रू हो रहा हूँ, क्योंकि अंततः यह देश गांवों का ही देश जो है ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:- मुझे लगता है, आज भी गांव दकियानूसी आचरण और कुप्रथाओं की चपेट से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है। मैं अपने शिक्षण में और लेखन में इन चीजों को दर्ज करने की कोशिश करता हूँ, ताकि आमफ़हम अपने मनोमस्तिष्क को खुला रख पायें और नए-नए विचारों का स्वागत कर सकें ।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ :- ऐसा कोई ख़ास याद नहीं आ रहा कि कभी मुझे अपने लेखन या शिक्षण में किसी प्रकार की दिक्कत आई हैं । हाँ, कभी-कभी ऐसा लगता है कि गांव में न होकर अगर शहर में रहता तो हरतरह के रचनाकारों से मेलजोल होता और मुझे स्पेस ज्यादा मिलता ! लेकिन यह मेरा वहम हो सकता है, क्योंकि मैं यह मानता हूँ कि किसी को जो हासिल होते हैं, उनके संघर्ष और जद्दोजेहद ही दिला पाते हैं ।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:- आर्थिक दिक्कतों ने ही मेरे जीवन का ताना-बाना बुना है । एक छोटे किसान, जो कोसी-कछार का हो और प्रायः साल आये बाढ़ की विभीषिका झेलता हो, के घर जन्म लेना, सत्यश: कई बार ऊहापोह प्रश्नोत्पन्न सहित दिग्भ्रमित तो करता ही है, लेकिन मैं इन सारी चीजों से पता नहीं कैसे अछूता रहा ? शायद जीवन के हरेक मोड़ पर कुछ ऐसे व्यक्ति मिले, जिन्होंने मुझे गुम होने न ही दिया !
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उन सबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:- मैंने जिस दुनिया को चुना, इसे चुनने हेतु बिल्कुल स्वतंत्र था । इसमें कभी-किसी से रोक-टोक नहीं मिली । ऊंचाई हासिल करने की कोई अंतिम सीमा तो है नहीं ! लेकिन पढ़ने-पढ़ाने और लिखने-सुनाने की खुशियों से लबरेज़ मेरे मुस्कुराते चेहरे देखकर परिवार के लोगों के लबों पर भी मुस्कराहट देखे जा सकते हैं ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:- संयोग से मुझे अच्छे विचारों के संवाहक लोगों का प्यार मिला, जिसमें छोटे मामा श्री गोपीकांत मिश्र, युवा कवि श्री मनोज कुमार झा और संपादक श्री बृजेन्द्र दुबे का नाम जुबानी याद है । इन लोगों के कारण ही मैं अपनी रचनात्मकता को बचा पाया । वैसे मेरे जीवन में आये अच्छे लोगों की फेहरिस्त बहुत लंबी है । वे सभी अच्छे लोग, जिनके कार्य ही सदैव अच्छा करते रहना होता है ।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:- संस्कृति का सम्बन्ध सकारात्मकता से है । मैं ही नहीं, वरन सम्पूर्ण देश की जनता किसी भी स्थिति-परिस्थिति में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, यही तो हमारी संस्कृति की ही महानता है । अपनी संस्कृति पर चोट पहुंचाकर इसे खंडित करने की चेष्टा अंततः हमारे लिए ही घातक होंगे !
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:- भ्रष्टाचारमुक्त समाज एक सपना है । हम अच्छे सपनों को याद कर प्रसन्न होते हैं और उसे पूरा करने की दिशा में प्रयासरत रहते हैं । भ्रष्टाचार का खामियाजा सबसे ज्यादा वंचित समाज को ही भुगतना पड़ता है, जो कि भ्रष्टाचार से सबसे दूर रहते हैं । मैं मानता हूँ, एक-एक व्यक्ति से मिल समाज का निर्माण होता है और हर व्यक्ति अपने सुव्यवहार से कई को प्रभावित करते हैं ।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:- नहीं । ऐसे किसी भी सहयोग को लेकर कुछ भी याद नहीं आ रहा है ।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:- नहीं ।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:- नहीं ।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:- भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता के द्वारा प्रकाशित हिंदी पत्रिका 'वागर्थ' ने 'ईश्वर के बच्चे' शीर्षक कविता को पुरस्कृत की थी । एक गद्य रचना 'काम की तलाश' को प्रभात प्रकाशन की हिंदी पत्रिका 'साहित्य अमृत' की ओर से पुरस्कार मिला था । हिंदी पत्रिका 'परिकथा' के कहानी अंक में छपी कहानी 'स्वरटोन' पर फीचर फ़िल्म का निर्माण किया गया है ।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:- एक छोटे से गांव से । सबकी जड़ें किसी न किसी गांव से ही जुड़ी हैं । सबको गांव की तरफ भी कभी-कभार देखना चाहिए । इसके साथ ही सभी बंधुओं को नूतन वर्ष 2018 की शुभकामनाएं !
दिन- रविवार । इस वर्ष का अंतिम रविवासरीय दिवस । माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने पिछले 38 की भाँति इसबार भी 'मन की बात' कहा । कई वर्षों से 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' ने आदरणीय पाठकों के विविध रचना-माध्यमों से 'मन की बात' करते आया है । साल के अंत में बतौर संचालक मैं भी कुछ कह दूं.... मैं पेशे से अभियंता, दिल से साहित्यिक और दिमाग से मल्टीपल 'वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर' हूँ । मेरी कई उपलब्धियाँ साकार हो 'रिकॉर्ड्स' का रूप लिया है । मेरा नाम सबसे कम उम्र में सर्वाधिक गणितीय 'Q.Mules' व असाध्य पहेली के अन्वेषक के रूप में है, तो सर्वाधिक लंबे 'ब्लॉग' शीर्षक के हेत्वर्थ RHR-UK INDIA होल्डर हूँ । मेरा नाम Limca Book of Records, India Book of Records, Global Records, Marvellous World Records, Star World Records इत्यादि में दर्ज़ है । मैं इसलिए इतना सुना गया, क्योंकि आज मेरा सच में जन्मदिवस है, किन्तु एक अंतिम व्यक्ति की भाँति अलाभकारी ! ओ-हो, क्या मैं अपना लेकर धमक गया ?
अबतक निभाये वादा मुताबिक प्रत्येक माह 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' किसी चर्चित, अल्पचर्चित व अचर्चित , किन्तु अपने क्षेत्र के सजग व कार्यप्रहरी से पूछे गए 14 गझिन सवालों के जवाब बतौर 'इनबॉक्स इंटरव्यू' प्रकाशित व प्रसारित करते आया है, इसबार के इंटरव्यू में 14 सुलझे जवाब दिए हैं, पेशे से शिक्षक, दिल और दिमाग से कवि, कथाकार और पत्रकार श्री मिथिलेश कुमार राय ने । गाहे-बगाहे इनके द्वारा प्रणीत हिंदी पत्रकारिता को दैनिक प्रभात खबर और इतर देखे जा सकते हैं ।
श्री मिथिलेश जी के बारे में उनकी जुबानी आप सभी सुचिन्तक प्रस्तुत 'इनबॉक्स इंटरव्यू' से जानेंगे ही, इससे पहले हम अंतिम प्रयाण की ओर विदा हो चुके व राजधानीवासी रहे हिंदी के रचनाकार प्रो0 सुरेंद्र 'स्निग्ध' को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, उनके मन में गाँव हमेशा ही स्मृतिस्थ रहा, कोसी-कछार स्मृतिस्थ रहा । कवि स्निग्ध को सुनिए जरा--
"हम अपनी नंगी आँखों से
नाप लेना चाहते हैं यह विस्तार
समा लेना चाहते हैं
प्रकृति का अपूर्व दृश्य ।"
--प्रस्तुत कवितांश की तरह मिथिलेश जी भी रचना-माध्यम से बहुत-कुछ करना चाहते हैं । आइये, ऐसे ग्राम्य-प्रतिभा को हम उनके मंजिल तक पहुँचाने में सहयोग करें, वैसे वे इस मामले में स्वाभिमानी व्यक्ति हैं । इसी के साथ श्री मिथिलेश को, उनके पाठकों को और हमारे पाठकों को नूतनवर्ष 2018 की शुभमंगलकामनाएँ !
श्रीमान मिथिलेश कुमार राय |
(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:- मैं पेशे से एक शिक्षक हूँ। प्रारंभिक शिक्षाशाला के बच्चों को हिंदी पढ़ाता हूँ। लिखने की शुरुआत बचपन में ही हो गई थी। हठात ! पढ़ने-पढ़ाने की जिस नौकरी में आया हूँ, यह मेरी रोजी-रोटी की चिंता भी दूर करती है और मेरे लिखने की ताकत को भी बल देती है । सोशल साइट्स की दुनिया मुझे स्पेस मुहैया करा रही है और बहुत सारे लोगों से जोड़ भी रही है, जिसके कारण मेरी जानकारी में इजाफा हो रहा है ।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
दोस्तों के साथ |
उ:- बिलकुल देहात की पृष्ठभूमि है मेरी। बिहार का शोक कही जानेवाली कोसी नदी के आसपास के इलाके में एक छोटा सा गांव है 'लालपुर'। बीच के कुछ साल, जिसमें मैं पढ़ाई के लिए शहर में रहा, को छोड़ दूँ तो इसी छोटे से गांव में अद्यत: रहनवारी हो रही है, चूँकि मेरे जेहन में एक गांव की बात चलती रहती है तथा मेरी आँखों में एक गांव की समस्या और उसमें हो रहे बदलाव के दृश्य तैरते रहते हैं, तो मैं समझता हूँ कि मैं एक वंचित समाज की बातों को दर्ज कर पाना सीख रहा हूँ और नित् नए अनुभव से रू-ब-रू हो रहा हूँ, क्योंकि अंततः यह देश गांवों का ही देश जो है ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:- मुझे लगता है, आज भी गांव दकियानूसी आचरण और कुप्रथाओं की चपेट से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है। मैं अपने शिक्षण में और लेखन में इन चीजों को दर्ज करने की कोशिश करता हूँ, ताकि आमफ़हम अपने मनोमस्तिष्क को खुला रख पायें और नए-नए विचारों का स्वागत कर सकें ।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ :- ऐसा कोई ख़ास याद नहीं आ रहा कि कभी मुझे अपने लेखन या शिक्षण में किसी प्रकार की दिक्कत आई हैं । हाँ, कभी-कभी ऐसा लगता है कि गांव में न होकर अगर शहर में रहता तो हरतरह के रचनाकारों से मेलजोल होता और मुझे स्पेस ज्यादा मिलता ! लेकिन यह मेरा वहम हो सकता है, क्योंकि मैं यह मानता हूँ कि किसी को जो हासिल होते हैं, उनके संघर्ष और जद्दोजेहद ही दिला पाते हैं ।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:- आर्थिक दिक्कतों ने ही मेरे जीवन का ताना-बाना बुना है । एक छोटे किसान, जो कोसी-कछार का हो और प्रायः साल आये बाढ़ की विभीषिका झेलता हो, के घर जन्म लेना, सत्यश: कई बार ऊहापोह प्रश्नोत्पन्न सहित दिग्भ्रमित तो करता ही है, लेकिन मैं इन सारी चीजों से पता नहीं कैसे अछूता रहा ? शायद जीवन के हरेक मोड़ पर कुछ ऐसे व्यक्ति मिले, जिन्होंने मुझे गुम होने न ही दिया !
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उन सबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:- मैंने जिस दुनिया को चुना, इसे चुनने हेतु बिल्कुल स्वतंत्र था । इसमें कभी-किसी से रोक-टोक नहीं मिली । ऊंचाई हासिल करने की कोई अंतिम सीमा तो है नहीं ! लेकिन पढ़ने-पढ़ाने और लिखने-सुनाने की खुशियों से लबरेज़ मेरे मुस्कुराते चेहरे देखकर परिवार के लोगों के लबों पर भी मुस्कराहट देखे जा सकते हैं ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:- संयोग से मुझे अच्छे विचारों के संवाहक लोगों का प्यार मिला, जिसमें छोटे मामा श्री गोपीकांत मिश्र, युवा कवि श्री मनोज कुमार झा और संपादक श्री बृजेन्द्र दुबे का नाम जुबानी याद है । इन लोगों के कारण ही मैं अपनी रचनात्मकता को बचा पाया । वैसे मेरे जीवन में आये अच्छे लोगों की फेहरिस्त बहुत लंबी है । वे सभी अच्छे लोग, जिनके कार्य ही सदैव अच्छा करते रहना होता है ।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:- संस्कृति का सम्बन्ध सकारात्मकता से है । मैं ही नहीं, वरन सम्पूर्ण देश की जनता किसी भी स्थिति-परिस्थिति में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, यही तो हमारी संस्कृति की ही महानता है । अपनी संस्कृति पर चोट पहुंचाकर इसे खंडित करने की चेष्टा अंततः हमारे लिए ही घातक होंगे !
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:- भ्रष्टाचारमुक्त समाज एक सपना है । हम अच्छे सपनों को याद कर प्रसन्न होते हैं और उसे पूरा करने की दिशा में प्रयासरत रहते हैं । भ्रष्टाचार का खामियाजा सबसे ज्यादा वंचित समाज को ही भुगतना पड़ता है, जो कि भ्रष्टाचार से सबसे दूर रहते हैं । मैं मानता हूँ, एक-एक व्यक्ति से मिल समाज का निर्माण होता है और हर व्यक्ति अपने सुव्यवहार से कई को प्रभावित करते हैं ।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:- नहीं । ऐसे किसी भी सहयोग को लेकर कुछ भी याद नहीं आ रहा है ।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:- नहीं ।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:- नहीं ।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:- भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता के द्वारा प्रकाशित हिंदी पत्रिका 'वागर्थ' ने 'ईश्वर के बच्चे' शीर्षक कविता को पुरस्कृत की थी । एक गद्य रचना 'काम की तलाश' को प्रभात प्रकाशन की हिंदी पत्रिका 'साहित्य अमृत' की ओर से पुरस्कार मिला था । हिंदी पत्रिका 'परिकथा' के कहानी अंक में छपी कहानी 'स्वरटोन' पर फीचर फ़िल्म का निर्माण किया गया है ।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:- एक छोटे से गांव से । सबकी जड़ें किसी न किसी गांव से ही जुड़ी हैं । सबको गांव की तरफ भी कभी-कभार देखना चाहिए । इसके साथ ही सभी बंधुओं को नूतन वर्ष 2018 की शुभकामनाएं !
आप यू ही हँसते रहे , मुस्कराते रहे , स्वस्थ रहे-सानन्द रहे ----- 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामना ।
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
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