भारत को 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश साम्राज्य से आज़ादी मिली थी । इसतरह स्वतंत्रता प्राप्ति के 70 वर्ष यानी सात दशक हो गए । प्रस्तुत कविता में कवि ने व्यंग्यात्मक कविता लिख यह स्थापित किया है कि इन 70 साल में हमने अपनी मर्यादा, शिष्टाचार और ईमानदारी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को भूल गए हैं । पिता के त्याग को बेटे भूलते जा रहे हैं और यहाँ माता-पिता दोनों भी दोषी हैं, क्योंकि पुत्र की चाह में बेटी को भ्रूण में ही मार डालते हैं । ....... बेरोजगारी जारी है, पहनावे में 'डिस्को' चाहिए और तो और अंग्रेजी का बोलबाला हो गया है । हिंदी के प्रति नफ़रत भर गई है । हम ज्ञान की बंसी दूसरों पे बजा रहे हैं, दूसरे पर चेपते जा रहे हैं और इसी ज्ञान से भारतीय राजनीति में इतने अज्ञानी उभरे आये हैं कि मत पूछो ! आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़ते है, ऐसे विचारों को कलमी ताकत देते कवि श्रीमान भूपेंद्र सिंह किरौला की प्रस्तुत कविता, आइये पढ़ते हैं.........
भूल गए तहज़ीब को भूल गए ईमान,
सात दशक में देखो, कैसा बदला हिंदुस्तान ?
अनपढ थे चाहे मगर, दिल के थे सच्चे वो,
आज का आलम ऐसा है, झूठ,फरेब और पैसा है,
देश को तोड़ो, पैसा जोड़ो, औ' सच्चाई से मुंह मोड़ो,
भूल गए तहजीब को...!
पढ़-लिखकर डिग्री पाई, रोजगार की दे दुहाई,
इंटरव्यू को निकले, सोचा-- अब कुछ होगी कमाई,
पर इंटरव्यू मतलब जिसका, कितने पैसे दोगे भाई,
भूल गए तहजीब को...!
बाप ने खेती बेची, कि बेटा कुछ पढ़-लिख ले,
शहर जाकर बेटा बदला, बाप के सारे अरमां भूले,
बाप ने मेहनत से कमाया, पलभर में बेटे ने गँवाया,
भूल गए तहजीब...!
कुछ माँ-बाप तो ऐसे हैं, उन्हें सिर्फ़ लड़कों की चाहत है,
लड़की हो तो रोना रोये, लड़के को सर आँखों बैठाये,
लड़का जब उन्हें रुलाये, तब बेटी की भर-भर याद आये,
भूल गए तहजीब...!
देश है हिंदी, जन हैं हिंदी, क्यों शर्म, जब बोले हिंदी,
हिन्द देश में हिंदी का, है यह कैसा अपमान,
अंग्रेज गए लेकिन, अंग्रेजी ने पकड़ी है कमान,
भूल गए तहजीब...!
एक जमाना वो भी था, सिर्फ़ कपड़े थे, तन की लाज,
आधे-अधनंगे कपड़े पहन,अब फैशन दिखाए नाच,
भूल गए तहजीब को, भूल गए ईमान,
सात दशक में देखो,कैसा बदला हिन्दुस्तान ?
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
श्रीमान भूपेंद्र सिंह किरौला |
भूल गए तहज़ीब को भूल गए ईमान,
सात दशक में देखो, कैसा बदला हिंदुस्तान ?
अनपढ थे चाहे मगर, दिल के थे सच्चे वो,
आज का आलम ऐसा है, झूठ,फरेब और पैसा है,
देश को तोड़ो, पैसा जोड़ो, औ' सच्चाई से मुंह मोड़ो,
भूल गए तहजीब को...!
पढ़-लिखकर डिग्री पाई, रोजगार की दे दुहाई,
इंटरव्यू को निकले, सोचा-- अब कुछ होगी कमाई,
पर इंटरव्यू मतलब जिसका, कितने पैसे दोगे भाई,
भूल गए तहजीब को...!
बाप ने खेती बेची, कि बेटा कुछ पढ़-लिख ले,
शहर जाकर बेटा बदला, बाप के सारे अरमां भूले,
बाप ने मेहनत से कमाया, पलभर में बेटे ने गँवाया,
भूल गए तहजीब...!
कुछ माँ-बाप तो ऐसे हैं, उन्हें सिर्फ़ लड़कों की चाहत है,
लड़की हो तो रोना रोये, लड़के को सर आँखों बैठाये,
लड़का जब उन्हें रुलाये, तब बेटी की भर-भर याद आये,
भूल गए तहजीब...!
देश है हिंदी, जन हैं हिंदी, क्यों शर्म, जब बोले हिंदी,
हिन्द देश में हिंदी का, है यह कैसा अपमान,
अंग्रेज गए लेकिन, अंग्रेजी ने पकड़ी है कमान,
भूल गए तहजीब...!
एक जमाना वो भी था, सिर्फ़ कपड़े थे, तन की लाज,
आधे-अधनंगे कपड़े पहन,अब फैशन दिखाए नाच,
भूल गए तहजीब को, भूल गए ईमान,
सात दशक में देखो,कैसा बदला हिन्दुस्तान ?
नमस्कार दोस्तों !
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