हर माह की भांति इस माह भी 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' लेकर आई है, एक ऐसे शख्सियत की गाथा, जो विशुद्ध भारतीय है और लंदन में रहकर भी हिंदी से अप्रतिम रूप से जुड़े हैं । पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर और 'सूचना प्रौद्योगिकी' क्षेत्र में बेजोड़ शख्स, हिंदी रचनाकार श्री संदीप नैयर की वर्त्तमान ऊँचाई खुद के मेहनत के परिदृश्यत: है । वे पारिवारिक रूप से हिंदी से जुड़े हैं । आइये, उस शख़्स से रू-ब-रू होते हैं, जिन्होंने 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में 14 गझिन सवालों के बहुत ही सुलझे जवाब दिए हैं । जानिए, उनके जीवन व ज़िंदगानी के अनछुए पहलुओं को, जो निश्चित ही सुधी पाठकों को रोमांचित करेगा, तो देर किस बात की, इसे एक साँस में पढ़ ही डालिये..., जो कि ज्ञाता तो है IT के, लेकिन उनकी लेखनी में गजब का रस है,जो हमें देती है अद्भुत रचना ! आइये, पढ़ते हैं...
प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:- मैं पेशे से एक आईटी व कंप्यूटर प्रोफेशनल हूँ और हॉबी से एक लेखक हूँ । इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी (आईटी) व कंप्यूटर के क्षेत्र में लम्बा अनुभव है । इस आनुभविक यात्रा का आरंभ छत्तीसगढ़ के रायपुर शहर से की है, जो मेरा पैतृकस्थल भी है यानी वहाँ एक कंपनी रायपुर अलॉयज़ एंड स्टील लिमिटेड से वर्ष 1994 में शुरू होकर दिल्ली होते हुए वर्ष 2000 में ब्रिटेन पहुँचा । पिछले साढ़े सत्रह वर्षों से ब्रिटेन में इस क्षेत्र में कार्यरत हूँ, अब तो अपनी एक कंसल्टेंसी है, जिसके माध्यम से ब्रिटेन की कंपनियों को आईटी सेवा उपलब्ध कराता हूँ और कंप्यूटर व आईटी क्षेत्र के प्रति जागरूकता पैदा करता हूँ । हाँ, साहित्य में मेरी बचपन से रूचि रही है, इसी ले प्रसंगश: कभी रायपुर में दैनिक भास्कर, नवभारत और देशबंधु जैसे अखबारों के लिए लेख लिखा करता था । साप्ताहिक हिंदुस्तान के लिए दो सालों तक एक कॉलम भी लिखा । कुछ अन्य पत्र -पत्रिकाओं के लिए कविताएँ भी लिखा । दो साल पहले ‘दुनिया इन दिनों’ पत्रिका के लिए एक कॉलम ‘लेटर फ्रॉम लन्दन’ लिखा करता था। तीन साल पहले मेरा पहला उपन्यास ‘समरसिद्धा’, जो कि एक ऐतिहासिक गल्प है, पेंगुइन से प्रकाशित हुआ है । अब दूसरा उपन्यास ‘डार्क नाइट’, जो कि एक इरोटिक प्रेम कहानी है और यह रेडग्रैब पब्लिकेशन से आ चुकी है ।
प्र.(2.)आप किस तरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:- मेरी पृष्ठभूमि साधारण परिवार से है यानी मध्यम वर्ग की रही है, चूँकि मेरे पिता पत्रकार -लेखक रहे हैं, इसलिए घर पर साहित्यिक माहौल था । लेखन की प्रेरणा वहीं से मिली है, मगर इंजीनियरिंग करने और विदेश आने का कोई प्रोत्साहन घर से नहीं था । उसकी प्रेरणा तो मित्रों से ही मिली ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:- आईटी क्षेत्र आज भी है और भविष्य में भी रहेंगे ! साइंस और टेक्नोलॉजी में रूचि रखने वालों को इससे अवश्य जुड़ना चाहिए,भले ही वे इसे व्यवसाय के रूप में अपनाएँ या नहीं ! आज आईटी का दखल लगभग हर क्षेत्र में है ।
जहाँ तक लेखन का प्रश्न है साहित्य किसी भी कला की तरह मानव चेतना के विस्तार में सहायक होता है । मेरा उद्देश्य अच्छा और सच्चा साहित्य सृजन करना और नए लेखकों को प्रोत्साहन और मार्गदर्शन देना है । अपने व्यवसाय और पारिवारिक जिम्मेदारियों से होते हुए साहित्य सृजन कर ही लेता हूँ ।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:- रुकावट या बाधाएँ तो कई आईं, घर में भी और बाहर भी। वैसे कई रुकावटें तो अपने भीतर से भी आती है, परवरिश और संस्कारों के प्रभाव से ! मध्यम वर्ग से आने की वजह से जीवन में हर तरह के एडवेंचर, जिसमें ज़रा भी ज़ोखिम हो, उसे हतोत्साहित किया गया ! यह रस्साकशी लम्बे समय तक चली, जिससे कुंठा गृहीत हुईं और सेहत भी बिगड़ी, मगर एडवेंचरविहीन जीवन बहुत नीरस होता है । इस नीरसता के खतरे अधिक हैं । यह बात बहुत देर से मेरी समझ में आई, मगर आ तो गई !
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:- मध्यमवर्गीय व्यक्ति को आर्थिक दिक्कतें तो आती रहती हैं । जब अपना व्यवसाय आरम्भ किया था, तो बैंक में कोई सेविंग नहीं थी और न ही घर चलाने के पैसे थे, ऊपर से मकान का बड़ा क़र्ज़ था । दो महीने तक घर चलाने और मकान के क़र्ज़ की क़िस्त चुकाने तक के पैसे बैंक से उधार लिये । ज़ोखिम बड़ा था, मगर खुद पर विश्वास था । ईश्वर की कृपा भी रही कि सबकुछ ठीक-ठाक हो गया ।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:- मैंने इंजीनियरिंग मैकेनिकल ब्रांच में की है, मगर मुझे लगता था कि भविष्य तो आईटी में है, उसमें अधिक अवसर है । तब कंप्यूटर भारत में नया -नया प्रवेश किया था । घरवालों को उसकी कोई समझ नहीं थी, इसलिए आईटी क्षेत्र में आने के लिए घरवालों के विरोध या हतोत्साहन का सामना भी करना पड़ा । ऐसे क्षेत्र में क्यों आना, जिसमें कोई निश्चिन्तता नहीं हो ! फिर जब विदेश आने का विचार आया, तब भी वही हाल था । मेरी प्रायः महत्वाकांक्षा को हवाई सपने की संज्ञा दी गई । वैसे ऐसा होना मध्यवर्गीय परिवारों में कोई अपवाद नहीं है । हालांकि लेखन क्षेत्र में ऐसा कोई प्रतिरोध नहीं हुआ । चूँकि पिताजी स्वयं लेखक हैं, इसलिए उन्होंने लेखन के लिए हमेशा ही न सिर्फ प्रोत्साहित किया, अपितु मार्गदर्शन भी किया, मगर उनका सुझाव था कि लेखन व विशेषकर हिंदी लेखन को व्यवसाय न बनाऊँ, क्योंकि उसमें किसी किस्म की आर्थिक संभावनाएँ नहीं है । यह एक व्यावहारिक सुझाव था!
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:- सहयोग कई स्तर पर मिलते हैं । नियमित सहयोग तो पत्नी का ही है, किन्तु समय -समय पर परिवार के अन्य सदस्यों और मित्रों के सहयोग भी मिलते रहते हैं । इस लेखन में पिताजी ने बहुत सहयोग किया है और मार्गदर्शन भी दिया है ।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:- संस्कृति परिवर्तनशील होती है । भारतीय संस्कृति पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव बहुत तेज़ी से पड़ते जा रहा है। इसमें टेक्नोलॉजी, विशेषतया आईटी की बहुत बड़ी भूमिका है, जो कि विशेषकर इन्टरनेट से मिलने वाली जानकारी के चलते भारतीय युवा अपनी पुरातन संस्कृति को फिर से खोज रहा है । एक तरह से यह संस्कृति का पुनरुत्थान है, इनके बीच साम्य बैठने में कुछ समय तो लगेगा ही ! इस साम्य को स्थापित करने में साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका है । मैं लेखन के द्वारा उस प्रयास में भी लगा हूँ ।
प्र.(9.) भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:- भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए हम मानव और समाज को सभ्य और सुशिक्षित बनना ही होगा, क्योंकि इसके प्रसंगश: मानवाधिकार स्थापित करने होते हैं । अगर आप आज के अपेक्षाकृत काफी कम भ्रष्ट पश्चिमी देशों का इतिहास देखें, तो यह भी किसी समय बहुत भ्रष्ट राष्ट्र और समाज हुआ करता था, परन्तु जब पश्चिम में आई औद्योगिक क्रांति से शिक्षा का विस्तार हुआ, तब लोगों का जीवन -स्तर सुधरा, मानवाधिकार की चेतना विकसित हुई और इन सबके प्रभाव से भ्रष्टाचार कम हुआ । आज की तकनीकी क्रांति अठारवीं या उन्नीसवीं सदी की औद्योगिक क्रांति से कहीं अधिक गत्यात्मक हो रही है । इस तकनीकी क्रांति का हिस्सा होते हुए मुझे उम्मीद है कि भारत में भी जैसे -जैसे मध्य और निम्न वर्ग का जीवन -स्तर सुधरेगा और शिक्षा का प्रसार होगा, लोग अपने अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक व सजग होंगे, तब निश्चित ही भ्रष्टाचार में कमी आएगी । लेखन के द्वारा लोगों को जागरूक करने का प्रयास पहले से जारी है ही !
प्र.(10.) इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:- सहयोग तो नहीं, मगर प्रेरणा और प्रोत्साहन ज़रूर मिले हैं ।
प्र.(11.) आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:- जी नहीं, कभी भी नहीं ।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:- हाँ, लेखन क्षेत्र को लेकर किताब प्रकाशित हैं, किन्तु इतर प्रसंगार्थ नहीं !
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:- पुरस्कार या सम्मान तो कोई खास नहीं, मगर प्रशंसाएँ कई मिली हैं । मेरे पहले उपन्यास ‘समरसिद्धा’ को फेमिना पत्रिका ने वर्ष 2014-15 के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में शामिल किया था।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:- मैं ब्रिटेन में रहता हूँ । मेरा व्यवसाय भी यहीं है, जो लेखन करता हूँ, वह इन्टरनेट पर या भारत में प्रकाशित होता है । हिंदी का लेखक हूँ, तो समाज और राष्ट्र से यही कहना चाहूँगा कि जिस तरह से हिंदी साहित्य पिछले कुछ दशकों में सिमटा है, उनसे उसे अतिशीघ्र बाहर निकालने की अत्यावश्यकता है। हिंदी साहित्य खूब लिखे जाय, खूब पढ़ें जाय और हिंदी साहित्य का खूब प्रचार -प्रसार किया जाय । आज भी देश का सबसे बड़ा जनवर्ग हिंदी में ही सोचता -समझता है । अगर हिंदी साहित्य जनमानस से कट रहा है, तो उसका अर्थ यह है कि साहित्यिक दर्शन का एक बड़ा हिस्सा उससे कट रहा है । यह हमारे राष्ट्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है ।
श्रीमान संदीप नैयर |
प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:- मैं पेशे से एक आईटी व कंप्यूटर प्रोफेशनल हूँ और हॉबी से एक लेखक हूँ । इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी (आईटी) व कंप्यूटर के क्षेत्र में लम्बा अनुभव है । इस आनुभविक यात्रा का आरंभ छत्तीसगढ़ के रायपुर शहर से की है, जो मेरा पैतृकस्थल भी है यानी वहाँ एक कंपनी रायपुर अलॉयज़ एंड स्टील लिमिटेड से वर्ष 1994 में शुरू होकर दिल्ली होते हुए वर्ष 2000 में ब्रिटेन पहुँचा । पिछले साढ़े सत्रह वर्षों से ब्रिटेन में इस क्षेत्र में कार्यरत हूँ, अब तो अपनी एक कंसल्टेंसी है, जिसके माध्यम से ब्रिटेन की कंपनियों को आईटी सेवा उपलब्ध कराता हूँ और कंप्यूटर व आईटी क्षेत्र के प्रति जागरूकता पैदा करता हूँ । हाँ, साहित्य में मेरी बचपन से रूचि रही है, इसी ले प्रसंगश: कभी रायपुर में दैनिक भास्कर, नवभारत और देशबंधु जैसे अखबारों के लिए लेख लिखा करता था । साप्ताहिक हिंदुस्तान के लिए दो सालों तक एक कॉलम भी लिखा । कुछ अन्य पत्र -पत्रिकाओं के लिए कविताएँ भी लिखा । दो साल पहले ‘दुनिया इन दिनों’ पत्रिका के लिए एक कॉलम ‘लेटर फ्रॉम लन्दन’ लिखा करता था। तीन साल पहले मेरा पहला उपन्यास ‘समरसिद्धा’, जो कि एक ऐतिहासिक गल्प है, पेंगुइन से प्रकाशित हुआ है । अब दूसरा उपन्यास ‘डार्क नाइट’, जो कि एक इरोटिक प्रेम कहानी है और यह रेडग्रैब पब्लिकेशन से आ चुकी है ।
प्र.(2.)आप किस तरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:- मेरी पृष्ठभूमि साधारण परिवार से है यानी मध्यम वर्ग की रही है, चूँकि मेरे पिता पत्रकार -लेखक रहे हैं, इसलिए घर पर साहित्यिक माहौल था । लेखन की प्रेरणा वहीं से मिली है, मगर इंजीनियरिंग करने और विदेश आने का कोई प्रोत्साहन घर से नहीं था । उसकी प्रेरणा तो मित्रों से ही मिली ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:- आईटी क्षेत्र आज भी है और भविष्य में भी रहेंगे ! साइंस और टेक्नोलॉजी में रूचि रखने वालों को इससे अवश्य जुड़ना चाहिए,भले ही वे इसे व्यवसाय के रूप में अपनाएँ या नहीं ! आज आईटी का दखल लगभग हर क्षेत्र में है ।
जहाँ तक लेखन का प्रश्न है साहित्य किसी भी कला की तरह मानव चेतना के विस्तार में सहायक होता है । मेरा उद्देश्य अच्छा और सच्चा साहित्य सृजन करना और नए लेखकों को प्रोत्साहन और मार्गदर्शन देना है । अपने व्यवसाय और पारिवारिक जिम्मेदारियों से होते हुए साहित्य सृजन कर ही लेता हूँ ।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:- रुकावट या बाधाएँ तो कई आईं, घर में भी और बाहर भी। वैसे कई रुकावटें तो अपने भीतर से भी आती है, परवरिश और संस्कारों के प्रभाव से ! मध्यम वर्ग से आने की वजह से जीवन में हर तरह के एडवेंचर, जिसमें ज़रा भी ज़ोखिम हो, उसे हतोत्साहित किया गया ! यह रस्साकशी लम्बे समय तक चली, जिससे कुंठा गृहीत हुईं और सेहत भी बिगड़ी, मगर एडवेंचरविहीन जीवन बहुत नीरस होता है । इस नीरसता के खतरे अधिक हैं । यह बात बहुत देर से मेरी समझ में आई, मगर आ तो गई !
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:- मध्यमवर्गीय व्यक्ति को आर्थिक दिक्कतें तो आती रहती हैं । जब अपना व्यवसाय आरम्भ किया था, तो बैंक में कोई सेविंग नहीं थी और न ही घर चलाने के पैसे थे, ऊपर से मकान का बड़ा क़र्ज़ था । दो महीने तक घर चलाने और मकान के क़र्ज़ की क़िस्त चुकाने तक के पैसे बैंक से उधार लिये । ज़ोखिम बड़ा था, मगर खुद पर विश्वास था । ईश्वर की कृपा भी रही कि सबकुछ ठीक-ठाक हो गया ।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:- मैंने इंजीनियरिंग मैकेनिकल ब्रांच में की है, मगर मुझे लगता था कि भविष्य तो आईटी में है, उसमें अधिक अवसर है । तब कंप्यूटर भारत में नया -नया प्रवेश किया था । घरवालों को उसकी कोई समझ नहीं थी, इसलिए आईटी क्षेत्र में आने के लिए घरवालों के विरोध या हतोत्साहन का सामना भी करना पड़ा । ऐसे क्षेत्र में क्यों आना, जिसमें कोई निश्चिन्तता नहीं हो ! फिर जब विदेश आने का विचार आया, तब भी वही हाल था । मेरी प्रायः महत्वाकांक्षा को हवाई सपने की संज्ञा दी गई । वैसे ऐसा होना मध्यवर्गीय परिवारों में कोई अपवाद नहीं है । हालांकि लेखन क्षेत्र में ऐसा कोई प्रतिरोध नहीं हुआ । चूँकि पिताजी स्वयं लेखक हैं, इसलिए उन्होंने लेखन के लिए हमेशा ही न सिर्फ प्रोत्साहित किया, अपितु मार्गदर्शन भी किया, मगर उनका सुझाव था कि लेखन व विशेषकर हिंदी लेखन को व्यवसाय न बनाऊँ, क्योंकि उसमें किसी किस्म की आर्थिक संभावनाएँ नहीं है । यह एक व्यावहारिक सुझाव था!
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:- सहयोग कई स्तर पर मिलते हैं । नियमित सहयोग तो पत्नी का ही है, किन्तु समय -समय पर परिवार के अन्य सदस्यों और मित्रों के सहयोग भी मिलते रहते हैं । इस लेखन में पिताजी ने बहुत सहयोग किया है और मार्गदर्शन भी दिया है ।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:- संस्कृति परिवर्तनशील होती है । भारतीय संस्कृति पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव बहुत तेज़ी से पड़ते जा रहा है। इसमें टेक्नोलॉजी, विशेषतया आईटी की बहुत बड़ी भूमिका है, जो कि विशेषकर इन्टरनेट से मिलने वाली जानकारी के चलते भारतीय युवा अपनी पुरातन संस्कृति को फिर से खोज रहा है । एक तरह से यह संस्कृति का पुनरुत्थान है, इनके बीच साम्य बैठने में कुछ समय तो लगेगा ही ! इस साम्य को स्थापित करने में साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका है । मैं लेखन के द्वारा उस प्रयास में भी लगा हूँ ।
प्र.(9.) भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:- भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए हम मानव और समाज को सभ्य और सुशिक्षित बनना ही होगा, क्योंकि इसके प्रसंगश: मानवाधिकार स्थापित करने होते हैं । अगर आप आज के अपेक्षाकृत काफी कम भ्रष्ट पश्चिमी देशों का इतिहास देखें, तो यह भी किसी समय बहुत भ्रष्ट राष्ट्र और समाज हुआ करता था, परन्तु जब पश्चिम में आई औद्योगिक क्रांति से शिक्षा का विस्तार हुआ, तब लोगों का जीवन -स्तर सुधरा, मानवाधिकार की चेतना विकसित हुई और इन सबके प्रभाव से भ्रष्टाचार कम हुआ । आज की तकनीकी क्रांति अठारवीं या उन्नीसवीं सदी की औद्योगिक क्रांति से कहीं अधिक गत्यात्मक हो रही है । इस तकनीकी क्रांति का हिस्सा होते हुए मुझे उम्मीद है कि भारत में भी जैसे -जैसे मध्य और निम्न वर्ग का जीवन -स्तर सुधरेगा और शिक्षा का प्रसार होगा, लोग अपने अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक व सजग होंगे, तब निश्चित ही भ्रष्टाचार में कमी आएगी । लेखन के द्वारा लोगों को जागरूक करने का प्रयास पहले से जारी है ही !
प्र.(10.) इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:- सहयोग तो नहीं, मगर प्रेरणा और प्रोत्साहन ज़रूर मिले हैं ।
प्र.(11.) आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:- जी नहीं, कभी भी नहीं ।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:- हाँ, लेखन क्षेत्र को लेकर किताब प्रकाशित हैं, किन्तु इतर प्रसंगार्थ नहीं !
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:- पुरस्कार या सम्मान तो कोई खास नहीं, मगर प्रशंसाएँ कई मिली हैं । मेरे पहले उपन्यास ‘समरसिद्धा’ को फेमिना पत्रिका ने वर्ष 2014-15 के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में शामिल किया था।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:- मैं ब्रिटेन में रहता हूँ । मेरा व्यवसाय भी यहीं है, जो लेखन करता हूँ, वह इन्टरनेट पर या भारत में प्रकाशित होता है । हिंदी का लेखक हूँ, तो समाज और राष्ट्र से यही कहना चाहूँगा कि जिस तरह से हिंदी साहित्य पिछले कुछ दशकों में सिमटा है, उनसे उसे अतिशीघ्र बाहर निकालने की अत्यावश्यकता है। हिंदी साहित्य खूब लिखे जाय, खूब पढ़ें जाय और हिंदी साहित्य का खूब प्रचार -प्रसार किया जाय । आज भी देश का सबसे बड़ा जनवर्ग हिंदी में ही सोचता -समझता है । अगर हिंदी साहित्य जनमानस से कट रहा है, तो उसका अर्थ यह है कि साहित्यिक दर्शन का एक बड़ा हिस्सा उससे कट रहा है । यह हमारे राष्ट्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है ।
आप यू ही हँसते रहे , मुस्कराते रहे , स्वस्थ रहे -सानन्द रहे ----- 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामना आपको सपरिवार !
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com
वाह जी, नैयर जी के विचारों को पढ़कर आनंद आया. साक्षात्कार थोड़ा ज्यादा ही छोटा हो गया लगता है :)
ReplyDeleteबढ़िया सवाल और वैसे ही उम्दा जवाब। हालाँकि मुझे लगता है कि लेखन प्रक्रिया, भाषा, नई हिन्दी, पुस्तकों की मार्केटिंग आदि को लेकर कुछ और प्रश्न होने थे, जिनको लेकर संदीप जी जुटे भी हैं।
ReplyDeleteसवाल अच्छे हैं। जवाब भी ।
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