सर्वप्रथम प्रेमासक्त मित्रों और प्यारे पाठकों को होली की शुभकामनाएं !
ज़िंदगी हर रात एक नई कहानी छोड़कर आगे बढ़ जाती हैं, लेकिन हम मानव उन्हीं कहानियों के पात्रों को खोजते हुए एक बेपरवाह (शायद लापरवाह !) लेखक बन जाते हैं । मेरे भैया अक्सर कहा करते हैं --'उगते हुए सूर्य को हर कोई प्रणाम करते हैं, किंतु डूबते हुए सूर्य को हारे हुए इंसान ही प्रणाम करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं पग -पग में कदम चूमती असफलतायें क्या होती हैं'। कई ऐसे भी हैं, जिन्हें ज़िन्दगी में 99 असफलताएं मिली, किंतु मात्र 1 (एक) सफलता मिलते ही वे शिखर तक पहुंच गए ।
हर माह की भांति इस माह भी मैसेंजर ऑफ आर्ट लेकर आई है, अपने वादे के मुताबिक 'इनबॉक्स इंटरव्यू', जिनमें सवाल तो वही के वही 14 ही हैं, जो हम हर माह एक अद्भुत व्यक्ति से उनके कृतित्व के साथ -साथ उनके व्यक्तिगत सवालात पूछते हैं, परंतु उनके जवाब हरबार होते हैं 'गागर में सागर' ! इसबार भी वही है, अनूठे जवाब के साथ हाज़िर है एक और व्यक्तित्व । आइये पढ़ते हैं, ब्लॉगर और राइटर विजय कुमार सिंघल जी से पूछे गए 14 गझिन सवालों की गुत्थियाँ सुलझाए जवाब..... .....तो पढ़िए और जानिए यह भी यानी उनके अद्भुत हँसी का राज...!
संक्षिप्त परिचय : श्री विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’
जन्म तिथि- 27 अक्तूबर, 1959
जन्म स्थान- गाँव - दघेंटा, विकासखंड- बल्देव, जिला- मथुरा (उ.प्र.)
पिता- (स्मरणीय) श्री छेदा लाल अग्रवाल
माता- (स्मरणीय) श्रीमती शीला देवी
पितामह- (स्मरणीय) श्री चिन्तामणि जी सिंघल
ज्येष्ठ पितामह- (स्मरणीय) स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज
शिक्षा- एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी ।
पुरस्कार:-
जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत।
सम्प्रति:- इलाहाबाद बैंक में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी)।
लेखन:- कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें प्रकाशित।
अन्य प्रकाशित पुस्तकें:-
वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून इत्यादि विधाओं में रचनाएं प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित ।
प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:- हमारा मुख्य कार्य एक पत्रिका प्रकाशित करना है, जिसमें पुराने रचनाकारों को प्रकाशित करने के साथ ही नए रचनाकारों को प्रोत्साहित भी किया जाता है। पत्रिका में मुख्यतः भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद को प्रचारित करने वाली सामग्री को स्थान दिया जाता है। पत्रिका अभी इन्टरनेट पर ही है, इसको पीडीऍफ़ फाइल के रूप में ईमेल द्वारा पाठकों को भेजा जाता है।
प्र. (२) आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:- मेरी पृष्ठभूमि ग्रामीण है और मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रारंभ से ही जुड़ा रहा हूँ । मुझे संघ के अनेक व्यक्तियों से मार्गदर्शन और सहयोग मिला है।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:- हमारी पत्रिका से आम लोग पाठक या रचनाकार के रूप में जुड़कर लाभान्वित हो सकते हैं। इससे उनके मानस को राष्ट्रवाद और देशभक्ति की दिशा में सुदृढ़ किया जा सकता है।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:- इस कार्य में मुख्य बाधा सही वेबसाइट के निर्माण की थी, जिसको वर्ड प्रेस की सहायता से मेरे पुत्र ने वह बाधा हटा दिए । दूसरी बाधा ईमेल द्वारा हजारों लोगों को पत्रिका भेजने में आती है, बहुत सी ईमेल वापस आ जाती है । इस कठिनाई से हम अभी भी जूझ रहे हैं।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:- पत्रिका का कोई आय का साधन न होने के कारण वेबसाइट के पंजीकरण करने और जारी रखने में जो खर्च होता है, उसे मैं स्वयं ही वहन कर रहा हूँ, कोई विशेष आर्थिक कठिनाई नहीं है।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:- साहित्य और लेखन मेरी रूचि का क्षेत्र रहा है । पहले छुटपुट लिखा करता था, ब्लॉग भी लिखता था । फिर ब्लॉग बंद हो गया तो एक मित्र के सुझाव पर अपनी वेब पत्रिका शुरू की ।परिवार का सहयोग मिलता है, पर इससे उन्हें सीधे कोई मतलब नहीं है। सारा काम मैं स्वयं ही कर लेता हूँ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:- पहले पत्रिका में सह-संपादक के रूप में कई लोगों को समय-समय पर जोड़ा गया। पर उनसे अपेक्षित सहयोग नहीं मिला, इस कारण उनको दायित्व से मुक्त कर दिया गया। अब मैं अकेला ही पत्रिका का सारा कार्य देखता हूँ।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:- हमारा कार्य भारतीय संस्कृति को सुदृढ़ करने में बहुत सहायक है, इससे संस्कृति को चोट पहुँचने का कोई प्रश्न ही नहीं है।
प्र.(9.) भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:- हम भ्रष्टाचार के विरुद्ध लगातार लिखते रहते हैं । इसके विरुद्ध जनमत बनाने में हमारी पत्रिका भी सहयोग दे रही है।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:- नहीं। अभी तक हमें कहीं से कोई आर्थिक सहयोग नहीं मिला। उसकी आवश्यकता भी नहीं है।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:- अभी तक कोई नहीं।
प्र.(12.) कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:- पत्रिका स्वयं ही एक किताब के रूप में है, जो प्रतिमाह प्रकाशित होती है।
प्र.(13.) इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:- संपादक के रूप में अभी तक कोई नहीं। पाठकों के पत्र ही हमारा पुरस्कार हैं, किंतु स्वतंत्र लेखक के रूप में पुरस्कार प्राप्त है ।
प्र.(14.) आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:- हमारा कार्य इंटरनेट पर चलता है, यह कहीं से भी हो सकता है, जहाँ इंटरनेट की सुविधा हो । हमारा सन्देश यही है कि साहित्य में सर्वप्रथम कोई पाठक के रूप में जुड़ें और देश को शक्तिशाली तथा भ्रष्टाचारमुक्त बनाने में अपना पूरा सहयोग दें।
ज़िंदगी हर रात एक नई कहानी छोड़कर आगे बढ़ जाती हैं, लेकिन हम मानव उन्हीं कहानियों के पात्रों को खोजते हुए एक बेपरवाह (शायद लापरवाह !) लेखक बन जाते हैं । मेरे भैया अक्सर कहा करते हैं --'उगते हुए सूर्य को हर कोई प्रणाम करते हैं, किंतु डूबते हुए सूर्य को हारे हुए इंसान ही प्रणाम करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं पग -पग में कदम चूमती असफलतायें क्या होती हैं'। कई ऐसे भी हैं, जिन्हें ज़िन्दगी में 99 असफलताएं मिली, किंतु मात्र 1 (एक) सफलता मिलते ही वे शिखर तक पहुंच गए ।
हर माह की भांति इस माह भी मैसेंजर ऑफ आर्ट लेकर आई है, अपने वादे के मुताबिक 'इनबॉक्स इंटरव्यू', जिनमें सवाल तो वही के वही 14 ही हैं, जो हम हर माह एक अद्भुत व्यक्ति से उनके कृतित्व के साथ -साथ उनके व्यक्तिगत सवालात पूछते हैं, परंतु उनके जवाब हरबार होते हैं 'गागर में सागर' ! इसबार भी वही है, अनूठे जवाब के साथ हाज़िर है एक और व्यक्तित्व । आइये पढ़ते हैं, ब्लॉगर और राइटर विजय कुमार सिंघल जी से पूछे गए 14 गझिन सवालों की गुत्थियाँ सुलझाए जवाब..... .....तो पढ़िए और जानिए यह भी यानी उनके अद्भुत हँसी का राज...!
संक्षिप्त परिचय : श्री विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’
जन्म तिथि- 27 अक्तूबर, 1959
जन्म स्थान- गाँव - दघेंटा, विकासखंड- बल्देव, जिला- मथुरा (उ.प्र.)
पिता- (स्मरणीय) श्री छेदा लाल अग्रवाल
माता- (स्मरणीय) श्रीमती शीला देवी
पितामह- (स्मरणीय) श्री चिन्तामणि जी सिंघल
ज्येष्ठ पितामह- (स्मरणीय) स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज
शिक्षा- एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी ।
पुरस्कार:-
जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत।
सम्प्रति:- इलाहाबाद बैंक में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी)।
लेखन:- कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें प्रकाशित।
अन्य प्रकाशित पुस्तकें:-
वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून इत्यादि विधाओं में रचनाएं प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित ।
श्रीमान विजय कुमार सिंघल |
प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:- हमारा मुख्य कार्य एक पत्रिका प्रकाशित करना है, जिसमें पुराने रचनाकारों को प्रकाशित करने के साथ ही नए रचनाकारों को प्रोत्साहित भी किया जाता है। पत्रिका में मुख्यतः भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद को प्रचारित करने वाली सामग्री को स्थान दिया जाता है। पत्रिका अभी इन्टरनेट पर ही है, इसको पीडीऍफ़ फाइल के रूप में ईमेल द्वारा पाठकों को भेजा जाता है।
प्र. (२) आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:- मेरी पृष्ठभूमि ग्रामीण है और मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रारंभ से ही जुड़ा रहा हूँ । मुझे संघ के अनेक व्यक्तियों से मार्गदर्शन और सहयोग मिला है।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:- हमारी पत्रिका से आम लोग पाठक या रचनाकार के रूप में जुड़कर लाभान्वित हो सकते हैं। इससे उनके मानस को राष्ट्रवाद और देशभक्ति की दिशा में सुदृढ़ किया जा सकता है।
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:- इस कार्य में मुख्य बाधा सही वेबसाइट के निर्माण की थी, जिसको वर्ड प्रेस की सहायता से मेरे पुत्र ने वह बाधा हटा दिए । दूसरी बाधा ईमेल द्वारा हजारों लोगों को पत्रिका भेजने में आती है, बहुत सी ईमेल वापस आ जाती है । इस कठिनाई से हम अभी भी जूझ रहे हैं।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:- पत्रिका का कोई आय का साधन न होने के कारण वेबसाइट के पंजीकरण करने और जारी रखने में जो खर्च होता है, उसे मैं स्वयं ही वहन कर रहा हूँ, कोई विशेष आर्थिक कठिनाई नहीं है।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:- साहित्य और लेखन मेरी रूचि का क्षेत्र रहा है । पहले छुटपुट लिखा करता था, ब्लॉग भी लिखता था । फिर ब्लॉग बंद हो गया तो एक मित्र के सुझाव पर अपनी वेब पत्रिका शुरू की ।परिवार का सहयोग मिलता है, पर इससे उन्हें सीधे कोई मतलब नहीं है। सारा काम मैं स्वयं ही कर लेता हूँ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:- पहले पत्रिका में सह-संपादक के रूप में कई लोगों को समय-समय पर जोड़ा गया। पर उनसे अपेक्षित सहयोग नहीं मिला, इस कारण उनको दायित्व से मुक्त कर दिया गया। अब मैं अकेला ही पत्रिका का सारा कार्य देखता हूँ।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:- हमारा कार्य भारतीय संस्कृति को सुदृढ़ करने में बहुत सहायक है, इससे संस्कृति को चोट पहुँचने का कोई प्रश्न ही नहीं है।
प्र.(9.) भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:- हम भ्रष्टाचार के विरुद्ध लगातार लिखते रहते हैं । इसके विरुद्ध जनमत बनाने में हमारी पत्रिका भी सहयोग दे रही है।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:- नहीं। अभी तक हमें कहीं से कोई आर्थिक सहयोग नहीं मिला। उसकी आवश्यकता भी नहीं है।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:- अभी तक कोई नहीं।
प्र.(12.) कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:- पत्रिका स्वयं ही एक किताब के रूप में है, जो प्रतिमाह प्रकाशित होती है।
प्र.(13.) इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:- संपादक के रूप में अभी तक कोई नहीं। पाठकों के पत्र ही हमारा पुरस्कार हैं, किंतु स्वतंत्र लेखक के रूप में पुरस्कार प्राप्त है ।
प्र.(14.) आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:- हमारा कार्य इंटरनेट पर चलता है, यह कहीं से भी हो सकता है, जहाँ इंटरनेट की सुविधा हो । हमारा सन्देश यही है कि साहित्य में सर्वप्रथम कोई पाठक के रूप में जुड़ें और देश को शक्तिशाली तथा भ्रष्टाचारमुक्त बनाने में अपना पूरा सहयोग दें।
आप यू ही हँसते रहे, मुस्कराते रहे, स्वस्थ रहे, सानन्द रहे ----- 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामना । होली की शुभमंगलकामनाएँ !
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com
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