ज़िंदगी कब,कहाँ,कैसे और क्या गुल खिला देंगे, किसी को मालूम नहीं है ! कौन जानता था, दक्षिण भारत से उत्तर भारत तक 'चाँदनी' बिखेरने वाली श्रीदेवी हमें भी 'सदमा' देकर इहलोक को चली जायेगी ? जहां के जीवन के बारे में कोई भिज्ञ नहीं, चराचर जीवों को वहाँ की पेशी तय है ! आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, श्रीमान सौरभ सिंह की अद्वितीय और अद्भुत, परंतु लघु कविता । आइये, इसे पढ़ते हैं और मन में ज्वार का हिलोरें लेते हैं......
जहाँ उजाले हार जाते हैं
अँधेरों से,
जहाँ तक किसी त्यौहार की रौशनी
नहीं जाती,
जहाँ मिठाई और कपड़ों के लिये बच्चे
बेतहाशा रोते हैं,
और माँ पैसों की तंगी से तड़पकर रह जाये
वहाँ कोई तो बन के रौशनी जाये
मैं चाहता हूँ...!
ऐसा भी एक दिन आये ।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
श्रीमान सौरभ सिंह |
जहाँ उजाले हार जाते हैं
अँधेरों से,
जहाँ तक किसी त्यौहार की रौशनी
नहीं जाती,
जहाँ मिठाई और कपड़ों के लिये बच्चे
बेतहाशा रोते हैं,
और माँ पैसों की तंगी से तड़पकर रह जाये
वहाँ कोई तो बन के रौशनी जाये
मैं चाहता हूँ...!
ऐसा भी एक दिन आये ।
नमस्कार दोस्तों !
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