नहाय-खाय के साथ दिनांक 7 फ़रवरी से प्यार का पर्व 'वैलेंटाइन-डे' शुरू हो गई जो, कि वास्तविक रूप में 14 फ़रवरी को पूरे नशे में पूरी दुनिया में मनाई गई, लेकिन 'प्यार का पर्व' यही खत्म नहीं हुआ-- आइये आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं वैलेंटाइन डे कैसे बनते जा रही है, विलेन डे...
14 फ़रवरी को संत वैलेंटाइन के महान त्याग और कुर्बान होने की गाथा को अभी के वासनात्मक-मिज़ाजी प्रेमी-प्रेमिका जिस ढंग से अपनाये हुए हैं, यह शर्मसार और वातावरण को कलुषित करता है । पूरी दुनिया में मनाई गई यह 'डे' अब प्रेम के नाम पर छीछालेदारी को प्रदर्शित करने के पर्याय बन गए हैं । 'मार्केटिंग' को बढ़ावा देने के लिए 'उच्च कोटि' के कारोबारी ने प्यार के इस पर्व में ग्रीटिंग-कार्ड्स , गिफ्ट आदि के नाज़-नखरे मार्किट में उतार दिए हैं, जिससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पॉकेट भरने लगे हैं और आम नागरिक का पॉकेट ढीला पड़ने लगा है । हम कहाँ जा रहे हैं, खासकर हमारे युवा-पीढ़ी ! वे इन्ही 'डे' के चक्कर में फंस कर आने वाले एग्जाम की तैयारी नहीं कर पाते हैं, जिसके कारण 'टॉपर' बनने के लिए वे गलत रास्ता अख्तियार कर लेते हैं ! इसबार इंटरमीडिएट परीक्षा इसी बीच है, तो क्या सिर्फ 'प्यार-तकरार' के इस पर्व में बिजी रहकर ही अपने भविष्य को उज्जवल रख पाएंगे ? ऐसे में कैसे युवावर्ग देश का कर्णधार कहला पाएंगे ?
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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