27 साल बाद भारत की ब्लाइंड स्विमर कंचनमाला पांडे ने इतिहास रचते हुए 'वर्ल्ड पैरा स्विमिंग चैंपियनशिप' में गोल्ड मेडल जीता, 26 साल की कंचनमाला ने 200 मीटर मेडले इवेंट की एस -11 कैटेगरी में गोल्ड जीता । वैसे इस मुकाम तक पहुंचने में उन्हें काफी आर्थिक दिक्कतों का सामना करनी पड़ी क्योंकि भारतीय पैराओलंपिक कमिटी ने उन्हें पर्याप्त पैसे नहीं दिए थे, जिस कारण बर्लिन में उन्हें उधार लेकर खेलना पड़ा था । वहीं बिना टिकट यात्रा पर उन्हें जुर्माना भी लगी । उनकी मदद में अभिनव बिंद्रा ने तत्काल 3 लाख की मदद की,लेकिन सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए ताकि अन्य पैरा खिलाड़ियों के साथ ऐसा न हो ! आइये महिला दिवस के अवसर पर मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स होल्डर सुश्री अर्चना कुमारी की लघु आलेख ...
प्रति वर्ष 8 मार्च को महिलायें अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाती हैं । खुशी की तलाश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक भटकते रहते हैं । सबके अपने-अपने टाइप की खुशियां हैं । आव और ताव के मध्य खुद को तलाशने की होड़ और लत जब लगती है, तो लोग सही-गलत की परख नहीं कर पाते हैं । आज के हालात में जिस तरह से आमजनों द्वारा औरत को शवाब की नज़रों से देखी जाती हैं तथा इनकी पुष्टि आए दिनों के समाचार-पत्रों की खबरों में से इनकी पुष्टि भी हो रही है । इतना ही नहीं, औरत भी विलासी बन भोग का आनंद उठा रही है, नारी को इसपर मनन करने की जरूरत है ।
पूरी दुनिया 8 मार्च को 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' के रूप में मनाए जाने की परंपरा को जारी रखे हुए हैं । पहले तो नहीं, परन्तु अब जब यह सोचता हूँ, तो मुझे ताज़्ज़ुब होती है कि वर्ष के 365 दिनों में सिर्फ 1 दिन ही महिलाओं के नाम क्यों ? क्या एक दिन ही उनके लिए गुणगान किये जाकर शेष दिनों के लिए उन्हें टारगेट बना ली जाय ! जयंती या उत्सव के लिए यह समझ में आती है कि ऐसा साल में एकबार ही होती है, किन्तु महिला तो माँ, बहन, बेटी, प्रेयसी अथवा पत्नी इत्यादि के रूप में व्यक्तिगत व संसार ख्यात होकर 'वसुधैव कुटुंबकम' के आदर्शतम-स्थिति में होती हैं ।
एक सुशील माँ किसी परिवार की मानक-रूप होती है । पिता के नहीं रहते भी एक माँ पूरे परिवार को बखूबी संभाल सकती है । माँ की सर्वोच्चता के कई उदाहरण है, वहीं एक बेटी अपनी माँ की गौरवशाली परम्परा को निभाती है । यह नेपोलियन के ही शब्द थे-"मुझे कोई मेरी माँ दे दो, मैं स्वतंत्रचित्त और स्वस्थ राष्ट्र दूँगा।' अपने हिंदी व्याकरण में राष्ट्र या देश शब्द को स्त्रीलिंग मानी गयी है । भूख मिटाने के कारण धरती को माँ, तो अपने आँचल का सान्निध्य देने के कारण अपना देश 'भारत' को भी 'माता' कही जाती है । 'मदर इंडिया' में नर्गिस दत्त की भूमिका को सच्चे अर्थों में एक भारतीय माँ के लिए अतुल्य उदाहरण कही जा सकती है ।
इतना ही नहीं, किसी के मर्दांनगी की तुलना, माँ की दूध पीने से ही लगाई जाती है, वहीं बेटी और प्रेयसी के त्याग को कतई नकारी नहीं जा सकती ! फिर हम नित्य प्रातःस्मरणीय महिलाओं की सिर्फ एक दिन ही पूजा करें, उनकी प्रति ज्यास्ती होगी ! अगर ऐसी ही रही, तब कम से कम 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः' वाले देश में यह प्रथा कालान्तर में अमंगलकारी स्थापित होनी जड़सिद्ध हो जायेगी ।
नमस्कार दोस्तों !
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सुश्री अर्चना कुमारी |
प्रति वर्ष 8 मार्च को महिलायें अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाती हैं । खुशी की तलाश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक भटकते रहते हैं । सबके अपने-अपने टाइप की खुशियां हैं । आव और ताव के मध्य खुद को तलाशने की होड़ और लत जब लगती है, तो लोग सही-गलत की परख नहीं कर पाते हैं । आज के हालात में जिस तरह से आमजनों द्वारा औरत को शवाब की नज़रों से देखी जाती हैं तथा इनकी पुष्टि आए दिनों के समाचार-पत्रों की खबरों में से इनकी पुष्टि भी हो रही है । इतना ही नहीं, औरत भी विलासी बन भोग का आनंद उठा रही है, नारी को इसपर मनन करने की जरूरत है ।
पूरी दुनिया 8 मार्च को 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' के रूप में मनाए जाने की परंपरा को जारी रखे हुए हैं । पहले तो नहीं, परन्तु अब जब यह सोचता हूँ, तो मुझे ताज़्ज़ुब होती है कि वर्ष के 365 दिनों में सिर्फ 1 दिन ही महिलाओं के नाम क्यों ? क्या एक दिन ही उनके लिए गुणगान किये जाकर शेष दिनों के लिए उन्हें टारगेट बना ली जाय ! जयंती या उत्सव के लिए यह समझ में आती है कि ऐसा साल में एकबार ही होती है, किन्तु महिला तो माँ, बहन, बेटी, प्रेयसी अथवा पत्नी इत्यादि के रूप में व्यक्तिगत व संसार ख्यात होकर 'वसुधैव कुटुंबकम' के आदर्शतम-स्थिति में होती हैं ।
एक सुशील माँ किसी परिवार की मानक-रूप होती है । पिता के नहीं रहते भी एक माँ पूरे परिवार को बखूबी संभाल सकती है । माँ की सर्वोच्चता के कई उदाहरण है, वहीं एक बेटी अपनी माँ की गौरवशाली परम्परा को निभाती है । यह नेपोलियन के ही शब्द थे-"मुझे कोई मेरी माँ दे दो, मैं स्वतंत्रचित्त और स्वस्थ राष्ट्र दूँगा।' अपने हिंदी व्याकरण में राष्ट्र या देश शब्द को स्त्रीलिंग मानी गयी है । भूख मिटाने के कारण धरती को माँ, तो अपने आँचल का सान्निध्य देने के कारण अपना देश 'भारत' को भी 'माता' कही जाती है । 'मदर इंडिया' में नर्गिस दत्त की भूमिका को सच्चे अर्थों में एक भारतीय माँ के लिए अतुल्य उदाहरण कही जा सकती है ।
इतना ही नहीं, किसी के मर्दांनगी की तुलना, माँ की दूध पीने से ही लगाई जाती है, वहीं बेटी और प्रेयसी के त्याग को कतई नकारी नहीं जा सकती ! फिर हम नित्य प्रातःस्मरणीय महिलाओं की सिर्फ एक दिन ही पूजा करें, उनकी प्रति ज्यास्ती होगी ! अगर ऐसी ही रही, तब कम से कम 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः' वाले देश में यह प्रथा कालान्तर में अमंगलकारी स्थापित होनी जड़सिद्ध हो जायेगी ।
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'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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