किसी का जीवन बिंदास होता है, तो किसी का उदास ! कोई योजनाबद्ध ज़िंदगी जीते हैं, तो कोई अचानक ही जीवन की राह में आगे बढ़ जाते हैं, तभी तो आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने निबन्ध में जीवन जीने की कला को परानुभवों से सीखने को कहा है । मैंने आजतक अपनी ज़िंदगीनामा में जितनी ही परीक्षाएं दी, उस इम्तहान के पहले स्टेप के रिजल्ट से ही असंतुष्ट हूँ ! जब आप किसी वस्तु व बिम्ब के प्रति समर्पित होते हैं, तब मेहनत के साथ- साथ उनके प्रति प्रेम भी रास आने चाहिए । लेकिन बिना मेहनत किये, अगर रिजल्ट आपके मनमुताबिक आ जाय, तो आपको खुश नहीं होना चाहिए ! क्योंकि यहाँ हमने मेहनत नहीं किया था, न ही प्रेम और समर्पण ! इसलिए यह खुशफहमी भर है । प्रेम और समर्पण के बाद भी जब गम मिलता हो, तो कोई भी दुःखी और द्रवित हो जाते हैं । आइये, प्रेम और समर्पण के बावजूद गम प्राप्त करनेवाली प्रेयसी 'राधा' की दुखांत कथा को आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, श्रीमान सौरभ शर्मा की कविता के रूप में.......
राधा
वो राधा का अंत समय था,
जब कृष्ण उनकी शीश
अपनी गोदी रख बैठे हुए थे !
चारों तरफ निस्तब्ध शांति थी,
राधा अब भी मुस्करा रही थी,
उत्तर में कृष्ण सिर्फ मुस्कुरा भर रहे थे...!
कृष्ण- 'राधा, आज तो कुछ माँग लो मुझसे...?'
राधा- 'नहीं कान्हा,उम्र भर नहीं माँगी, तो अब क्या माँगू !'
कृष्ण- 'नहीं, आज तो माँगना ही पड़ेगा !'
पर कृष्ण जानते थे... वो भले ही भगवान हो,
पर राधा को वो नहीं दे सकते,वो जो चाहती है,
और राधा, उसने कृष्ण के सिवा कुछ नहीं चाही थी।
राधा- 'तो सुनो कान्हा, मेरे लिए फिर एकबार मुरली बजाओगे !'
कृष्ण ने मुरली अपने अधरों पर लगा ली,
और फिर मधुर स्वर लगे गूँजने....
पर,इस मुरली की धुन पर आज,
राधा रचा न पायी रास !
कृष्ण मुरली बजाते रहे,
और राधा उनकी गोद अपनी शीश रख
उसे मुरली बजाते देखती रही...!
वो 'मुरली' भी आज जानती थी,
कि यह अंतिम बार कृष्ण के अधरों पर है,
उसके बाद उसका भी अंत है...!
राधा ने अचानक ही कृष्ण का हाथ थाम ली,
और 'मेरे कान्हा' कह आँखें मूंद ली ।
कृष्ण भी मुरलिया तान बन्द कर
राधा की आभामण्डित मुख देखा,
धीरे से उनकी शीश अपनी गोद से स्नेहपूर्ण उतार,
मुरली को तोड़ अपने से दूर, बहुत दूर फेंक दिया...!
उसके बाद न राधा जागी और न ही कृष्ण ने मुरली बजाई,
और उन दोनों के प्रेम पवित्रता लिए अमर हो गया,
वो कृष्ण आज उन्हीं राधा के संग पूजे जाने लगे,
वो कृष्ण नहीं रहे,राधा के कृष्ण हो 'राधाकृष्ण' हो गए !
यह राधा के प्रेम की पराकाष्ठा थी, महानता थी,
कि मनुष्य होकर भी राधा 'भगवान' को प्रेम सीखा गई !!
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
श्रीमान सौरभ शर्मा |
राधा
वो राधा का अंत समय था,
जब कृष्ण उनकी शीश
अपनी गोदी रख बैठे हुए थे !
चारों तरफ निस्तब्ध शांति थी,
राधा अब भी मुस्करा रही थी,
उत्तर में कृष्ण सिर्फ मुस्कुरा भर रहे थे...!
कृष्ण- 'राधा, आज तो कुछ माँग लो मुझसे...?'
राधा- 'नहीं कान्हा,उम्र भर नहीं माँगी, तो अब क्या माँगू !'
कृष्ण- 'नहीं, आज तो माँगना ही पड़ेगा !'
पर कृष्ण जानते थे... वो भले ही भगवान हो,
पर राधा को वो नहीं दे सकते,वो जो चाहती है,
और राधा, उसने कृष्ण के सिवा कुछ नहीं चाही थी।
राधा- 'तो सुनो कान्हा, मेरे लिए फिर एकबार मुरली बजाओगे !'
कृष्ण ने मुरली अपने अधरों पर लगा ली,
और फिर मधुर स्वर लगे गूँजने....
पर,इस मुरली की धुन पर आज,
राधा रचा न पायी रास !
कृष्ण मुरली बजाते रहे,
और राधा उनकी गोद अपनी शीश रख
उसे मुरली बजाते देखती रही...!
वो 'मुरली' भी आज जानती थी,
कि यह अंतिम बार कृष्ण के अधरों पर है,
उसके बाद उसका भी अंत है...!
राधा ने अचानक ही कृष्ण का हाथ थाम ली,
और 'मेरे कान्हा' कह आँखें मूंद ली ।
कृष्ण भी मुरलिया तान बन्द कर
राधा की आभामण्डित मुख देखा,
धीरे से उनकी शीश अपनी गोद से स्नेहपूर्ण उतार,
मुरली को तोड़ अपने से दूर, बहुत दूर फेंक दिया...!
उसके बाद न राधा जागी और न ही कृष्ण ने मुरली बजाई,
और उन दोनों के प्रेम पवित्रता लिए अमर हो गया,
वो कृष्ण आज उन्हीं राधा के संग पूजे जाने लगे,
वो कृष्ण नहीं रहे,राधा के कृष्ण हो 'राधाकृष्ण' हो गए !
यह राधा के प्रेम की पराकाष्ठा थी, महानता थी,
कि मनुष्य होकर भी राधा 'भगवान' को प्रेम सीखा गई !!
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